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श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर


इंदौर मध्य प्रदेश आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक 22/08/2023
निर्जल उपवास का तप पाप-कर्म के प्रायश्चित का सर्वोत्तम उपाय है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने श्री सिद्धि तप करने वाले तपस्वियों के सम्मान में तप की महिमा व्यक्त करते हुए बताया कि तप से चारों दिशायें अनुकूल हो जाती हैं। सभी तपस्वी धन्य हैं क्योंकि 36 उपवास कोई सामान्य तप नहीं है। परमात्मा स्वयं तप के मार्ग पर चलते हुए सभी को इसकी प्रेरणा देते हैं। सभी 24 तीर्थंकरों ने उग्र तपस्यायें की हैं । श्री आदिनाथ भगवान ने 13 माह के उपवास किये, 22 भगवानों ने भी कई बड़ी तपस्यायें की हैं। भगवान महावीर स्वामी ने साडे बारह वर्ष की तपस्या में से केवल 349 दिन पारणा किया शेष समय चौवीहार उपवास थे। इतने उग्र तप का एक मात्र कारण था, तप के बिना कर्मों की निर्जरा नहीं है। तप निकाचित एवं अनिकाचित दोनों कर्मों को समाप्त करता है।
आज भगवान नेमिनाथ का दीक्षा कल्याणक है जिन्होंने सांसारिकता का त्याग करके संयम को स्वीकार किया था। उनके त्याग की अनुमोदना में हमको कम से कम अभक्ष और रात्री भोजन का त्याग करना धर्म प्रेरणा है। तप एवं त्याग का धर्म सर्वप्रधान है जिससे सभी को जुड़ना चाहिए तभी कर्मों की निर्जरा संभव है। मुनिवर ने यह बताया कि, आठ दिन के उपवास का एक बार में ही संकल्प लेने से एक करोड़ उपवास का लाभ मिलता है। सोया हुआ व्यक्ति 100 विचार करता है, बैठा हुआ व्यक्ति 72 विचार करता है, खड़ा हुआ व्यक्ति 18 विचार करता है और चलता हुआ व्यक्ति 1 विचार करता है कि उसको चलना है। इसलिये धर्म रूपी पानी की पाल पर बैठ कर विचारने से नदी (धर्म) की गहराई नहीं नापी जाती है, उसमें तो डुबकी लगानी ही पड़ेगी।
धर्म उत्कृष्ट मंगल है जिसकी नींव मजबूत होना आवश्यक है। धर्म रूपी महल की नींव अहिंसा है, संयम दीवार है और तप शिखर है। जिस व्यक्ति का मन अहिंसा, तप एवं संयम में लगा हो तो देवता तो क्या परमात्मा खुद उसको नमस्कार करते हैं।
मुनिवर का नीति वाक्य
“तप से जिसने काया को तपाया, उसके कर्मों का हुआ सफाया”
युवा राजेश जैन ने बताया की –
श्री सिद्धि तप के तपस्वियों का विशाल वरघोड़ा बैंड-बाजे के साथ तिलकनगर के मुख्य मार्गों से निकला। जिसमें सभी दस तपस्वी बग्गी में सवार थे। विशाल संख्या में साधु-साध्वी एवं सजे-धजे पुरुष,महिलायें और बच्चे झूमते नाचते वरघोड़ा की शोभा बड़ा रहे थे। तपस्वियों के प्रति सबके मन में बहुत उत्साह दिख रहा था। सभा के अंत में आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय पद्मभूषणरत्नसूरीश्वरजी ने मांगलिक श्रवण करवायी। दिलीप शाह ने सभा को संबोधित किया एवं अन्य गतिविधियों की जानकारी दी।
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

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