इंदौर मध्य प्रदेश आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 07/09/2023
आत्मा को परमात्मा से मिलाने के लिये पुण्यों की राशी चुकानी पड़ती है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने प्रवचन में बताया कि, स्वयं के गुणों को प्रसारित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिये वे अपने आप लोगों को पता चल जाते हैं। कोई भी कार्य हो या कोई दुर्लभ वस्तु प्राप्त करना हो तो उसका मूल्य चुकाना पड़ता है। इसी प्रकार से परमात्मा को प्राप्त करने के लिये भी अनंत पुण्यों की राशी चुकानी पड़ती है। बिना नमक के नमकीन, बिना शक्कर के मिठाई और बिना भाव की भक्ति किसी काम की नहीं होती है। परमात्मा तक पहुँचने की चार स्टेप्स हैं।
1. संबंध होना (कनेक्शन) : संबंध केवल परमात्मा से रखना है क्योंकि उनकी भक्ति का साक्षात फल “मन की शांति” मिल जाता है। सभी धर्मों में धर्म आराधना का अंतिम फल मोक्ष है। संसार के सभी संबंध स्वार्थ से जुड़े हैं अर्थात “काम है तब तक नाम है”। परमात्मा से वास्तविक संबंध बने तो जीव को अनोखी सौगात (प्रभु) मिलती है जिसको अनुभव किया जा सकता है। प्रभु से संबंध होने की बाद तीन चीजों का सृजन होता है। (1) आनंद का अनुभव, (2) उल्लास के अश्रु एवं (3) आत्मीयता का भाव।
2. संग्रह (कलेक्शन) : संग्रहण गुणों का करना चाहिये, वस्तु का नहीं। वस्तु संग्रह के लिये किये गये पाप में कोई भी सहभागी नहीं होता है और संग्रह कार्य से होने वाले दुःख को स्वयं ही भुगतना पड़ता है। इसलिए परमात्मा से जुड़े गुणों का संग्रह करो तो कभी पाप और दुःख नहीं होगा। प्रभु आपमें पूनम की रात में दिखने वाले तारे समान गुण हैं और मेरे में अमावस्या के अंधकार को गिनने वाले अवगुण हैं इसलिए आपके गुणों का संग्रह करके मेरे अंधकार के अवगुणों को मिटाना है।
3. सुधारना (करेक्शन) : अपनी गलतियों की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिये अर्थात जो हो चुका उसको सुधारो और फिर से गलती नहीं करो। पिछली गलतियों से जीव भटक रहा है उसको सुधारकर आगे बड़ना है। दोषों को दूर करके भूल सुधार करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिये। अपने आप को सुधरना सद्गुण है। पूर्व काल में एक प्रताड़ना में संतान मान जाती थी परंतु आजकल “चोरी ऊपर से सीनाजोरी” का युग है।
4. स्वीकारना (कनफेशन) : व्यक्ति में स्वीकार भाव होना भी आवश्यक है। गलती होने पर उसको स्वीकारना बुद्धिमानी की निशानी है। परमात्मा की अनुपस्थिति में वर्तमान में आचार्य भगवंत के सम्मुख अपनी गलती स्वीकारो और आलोचना लो। हमको भव-आलोचना (भूलों का कनफेशन) लेनी चाहिये जिससे जीवन की शुद्धि होती है। अपने जीवन को साफ स्वच्छ करना हो तो भूल को स्वीकारना सबसे उत्तम साधन है।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘गलती-भूल का इकरार करो इंकार नहीं”
राजेश जैन युवा ने जानकारी दी कि, एकलठाना अर्थात शरीर की एक ही मुद्रा एक बार ही भोजन करने की विशेष तपस्या संपन्न हुई है जिसमें लगभग 100 श्रद्धालु सम्मिलित हुए। इस अवसर पर अशोकजी कोठारी, विकास जैन, राजकुमारी कोठारी (बनारस साड़ी), दिव्या शाह, सुनीता पोरवाल व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी
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