Policewala
Home Policewala श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर
Policewala

श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर

इंदौर मध्य प्रदेश

इंदौर मध्य प्रदेश आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 06/09/2023

 

धर्म के लिये पुरुषार्थ करना सर्वकालीन सत्य है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने आज बताया जिसे अर्थ में राग है उसको किसी भी रिश्ते मतलब नहीं है। जो काम इच्छा में लगा हुआ उसको भय-लज्जा नहीं है। भोजन के भूखे के पास न तो बल है, न ही तेज है। चिंताग्रस्त को न तो सुख है, न ही निद्रा है। सांसारिक वस्तुओं की चिंता चिता और आत्मा के लिये परमात्मा की चिंता चिंतन समान है। तीन अटल सत्य है। (1) तत्कालीन सत्य – सांसारिक वस्तुओं के उपभोग करते समय आनंद (तुरंत मज़ा) लेते हैं और भविष्य के सुख पर ध्यान नहीं देते हैं। यह काम पुरुषार्थ क्षणिक सुख है जिससे पाँच इंद्रियों की आसक्ति रहती है जो भविष्य में हानिकारक है। (2) समकालीन सत्य – (धन) जिससे जन्म से लेकर मृत्यु तक आनंद की प्राप्ति हो समकालीन सत्य की श्रेणी में आता है। यह अर्थ पुरुषार्थ कहलाता है। समकालीन सत्य केवल एक भव तक सीमित है। (3) सर्वकालीन सत्य – अर्थात धर्म पुरुषार्थ करके धर्म आराधना करना जो भवों तक सुख प्रदाता है। इस सर्वकालीन सत्य की प्राप्ति दान, शील, तप एवं भाव धर्म से संभव है। भाव के बिना सभी व्यर्थ है सभी धर्म में भाव धर्म प्रधान है। भाव धर्म में प्रवेश करने के लिये चार शीलता आवश्यक हैं।
1. श्रवणशील बनो – सबसे पहले अच्छे श्रोता बनो। केवल बोलना ही नहीं हे सुनना भी है। गुरु भगवंत के प्रवचन को ध्यान पूर्वक सुनें क्योंकि धर्म जीवन में स्थिर करने के लिये धर्म ज्ञान का श्रवण आवश्यक है। कई दुर्लभ योगों में से धर्म श्रवण भी एक दुर्लभ योग है जिसको यह मिला है वह पुण्यशाली है।

 

 


2. विचारशील बनो – श्रवण करा हुआ अल्पकालीन के लिये होता अतः विचार/चिंतन करना दीर्घकालीन है। अर्थात सुनो, विचारों व चिंतन करो। श्रवण भौतिक परिवर्तन है और विचारशीलता रासायनिक परिवर्तन जो अपने पूर्व स्वरूप में नहीं जा सकता है।
3. समझशीलता रखो – श्रवण और विचार करने के बाद उसको समझना आवश्यक है। श्रवणशीलता एवं विचारशीलता के सीढ़ी से समझशीलता के घर में प्रवेश करना ज़रूरी है तभी परमात्मा में प्रवेश संभव है।
4. संवेदनशील बनो – दूसरों के दुःख देखकर यदि मन में करुणा का भाव उत्पन्न हो जाये तो यह संवेदनशीलता है जो धर्म की रक्षा के भी काम आती है एवं उसके लिये प्रेरित करती है। व्यक्ति में यह संवेदना होना चाहिये कि वह तपस्वी, दानी, शीलवान से यह प्रेरणा ले कि वह स्वयं भी उनके जैसा क्यों नहीं बन सकता है। इसलिए हृदय को संवेदनशील बनाओ।
5. श्रद्धाशील बनो – बिना श्रद्धा के पहले वाली चारों स्टेप्स निष्क्रिय हैं अर्थात जब तक हृदय में श्रद्धा का भाव उत्पन्न नहीं होगा तब तक अंतिम लक्ष्य ‘प्रभु को पाना’ संभव नहीं है। श्रद्धा के तार टूटने नहीं चाहिये जैसे रावण ने प्रभु भक्ति न रुके तो वीणा के तार टूटने पर शरीर की शीरायें निकालकर वीणा के तार बना दिए थे और तीर्थंकर गोत्र का बंध हुआ था।
मनुष्य को जीवन काल में सदा सर्वकालीन सत्य को भाव पूर्ण अपनाना चाहिये।
मुनिवर का नीति वाक्य “‘जब तक सुनेंगे नहीं तब तक समझेंगे नहीं” राजेश जैन युवा ने जानकारी दी कि, सीमित द्रव्य के विशेष एकासने की तपस्या संपन्न हुई है जिसमें लगभग 80 श्रद्धालु सम्मिलित हुए। इस अवसर पर अजयजी सुराना, रवि बाठीया, सुरेश कोठारी, सुनील मुरडिया, व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।

 

राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

मैहर-2.15 करोड़ के कार्यों का भूमि पूजन कल 24 अक्टूबर को होगा

मैहर मध्य प्रदेश ग्राम पंचायत सेमरा, भमरहा, गोरैया कला, कुशेडी , और...

थाना राघवी पुलिस ने अवैध वसूली करने वाले चारों आरोपियों को चंद घंटों में किया गिरफ़्तार

घटना में शामिल तीन आरोपियों के विरुद्ध पूर्व से अलग अलग थानों...

दिवाली का त्यौहार इस वर्ष 31 अक्तूबर को मनाना शास्त्र सम्मत

सांसद खंडेलवाल ने शेखावत को पत्र भेज सरकारी अवकाश 31 अक्तूबर को...

भारतीय रिज़र्व बैंक के नए कदम: ऋणदाताओं और उधारकर्ताओं के हितों की रक्षा

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) समय-समय पर बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में सुधार...