इंदौर मध्य प्रदेश
श्रीराम ताम्रकर से यदि कुछ सीखना हो तो जुनून सीखिए। फिल्म के प्रति उनका जुनून ही उन्हें ‘हिंदी सिनेमा का इनसाइक्लोपीडिया’ लिखने के लिए प्रेरित कर सका और उन्होंने यह मुश्किल कार्य कर दिखाया। यह बात सच्चिदानंद जोशी (मेंबर सेक्रेटरी, आईजीएनसीए) ने हिंदी सिनेमा इनसाइक्लोपीडिया के लांच के अवसर पर उपस्थित लोगों और पत्रकारिता के छात्रों से कही जिसे श्रीराम ताम्रकर ने संपादित किया था। इस मौके पर सिनेमा आर्काइव पर पैनल डिस्कशन भी हुआ जिसमें स्वानंद किरकरे, मयंक शेखर, सोनाली नरगुंदे, संजय द्विवेदी, डॉ. सोनाली नरगुंदे, श्रीमती मंजुषा राजस जौहरी और अनुराग पुनेठा ने हिस्सा लिया।
मयंक शेखर ने सिनेमा के आर्काइव के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम ‘राजा हरिश्चंद्र’ जैसी फिल्म पर गर्व करते हैं, लेकिन यह पूरी फिल्म उपलब्ध नहीं है। लेकिन अब फिल्म से कला, विज्ञान और कॉमर्स जुड़ गया है इसलिए सब कुछ आसान हो गया है। आईजीएनसीए जिस तरह से कला को सहेजने में लगा है वो तारीफ के योग्य है।
स्वानंद किरकरे ने छात्रों से बातचीत करते हुए कहा कि वे इंदौर में जन्मे और यही पर फिल्म के प्रति उनका शौक जागा। वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए और रास्ते खुलते गए। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि आज किसी को संसाधन के लिए परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि ग्लोबल ही लोकल ही है। कोई सी भी महान फिल्म कहीं से भी निकल कर आ सकती है। आप अपने आसपास ही ढूंढिए, आपको रहमान, गुलजार और सलमान मिल जाएंगे। श्रीराम ताम्रकर की फिल्म समीक्षाएं पढ़ कर और फिल्म सोसायटी में कला फिल्में देख कर ही मेरा फिल्म देखने के प्रति नजरिया बदला।
सोनाली नरगुंदे ने कहा कि हम छात्रों को क्लासिक फिल्में दिखाते हैं ताकि उनमें फिल्म देखने की समझ पैदा हो। फिल्म केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं देखी जानी चाहिए बल्कि यह भी जानने की कोशिश की जानी चाहिए कि फिल्मकार क्या कहना चाहता है और फिल्म के निर्माण में निर्देशक, संपादक जैसे तकनीकी विभागों की क्या जिम्मेदारी होती है। इस मौके पर विद्यार्थियों के सवालों के जवाब भी पैनल ने दिए।
रिपोर्ट-अनिल भंडारी
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