इंदौर मध्य प्रदेश मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने मनुष्य जीवन में वाद-विवाद के कारणों पर प्रवचन दिया। इनका मूल कारण आत्मा पर लगे कर्म बंध है। वाद-विवाद का मुख्य कारण हँसी है क्योंकि किसी को देखकर व्यंग्यात्मक हँसना प्रायः विवाद का कारण बन जाता है। हँसी मोहनी कर्म का प्रकार भी है। आपस में झगड़े का एक और कारण है मनुष्य की जिव्हा । ‘झगड़े का मूल हाँसी, रोग का मूल खाँसी”।
मौन के नौ गुण बताये गये है।
1. संघर्ष और क्लेश का अंत – जब वार्तालाप बहस बन जाती है तब संघर्ष और विवाद उत्पन्न हो जाता है जिसको केवल मौन से रोका जा सकता है।
2. हाथापाई न होना – अक्सर वाद-विवाद मारामारी तक पहुँच जाती है जो बहुत अशोभनीय स्थिति है परंतु मौन रहकर इस स्थिति से बचा जा सकता है।
3. सुखी होना – त्वरित प्रतिक्रिया से कभी-कभी दुःखी भी होना पड़ता है एवं हमारा सुख-चैन छिन जाता है। मौन रहकर हम सुखी भी रह सकते हैं।
4. सत्य की प्राप्ति – वाद-विवाद की स्थिति में यदि हम मौन हो जायें तो कुछ देर बाद में वास्तविकता से भी परिचित हो जाते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि, जो देखा सुना है वह सत्य हो। इसलिये मौन रहकर इंतजार करने से सत्य का पता लग सकता है।
5. सहिष्णुता का गुण विकसित होना – मौन के कारण मन में समता भाव आता है जो सहिष्णुता को पुष्ट करता है।
6. वाणी के विलास में कमी – मौन अधिक बोलने की आदत के लिये लगाम का कार्य भी करता है।
7. मन दुखाने की हिंसा से बचना – कटु प्रतिक्रिया से किसी का मन दुख सकता जो कि हिंसा का एक अंग है अतः मौन रहकर ऐसे कटु वार्तालाप से भी दूर रह सकते हैं।
8. असत्य के दोष से मुक्ति – कभी-कभी अधिक बोलने के कारण असत्य भी मुंह से निकाल जाता है या बात बढ़ा-चढ़ाकर बोल देते हैं जो पाप का कारण बनता है। मौन इस पाप से भी छुटकारा देता है।
9. समय और शक्ति की बचत – फालतू बातों में लगने वाले समय की बचत होती है कम बोलने से शक्ति की बचत होती है जिसको तप में लगाया जा सकता है।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘सुखी जीवन का राज, मौन का साथ”
राजेश जैन युवा 94250-65959
रिपोर्ट – अनिल भंडारी
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