इंदौर मध्य प्रदेश
तिलकेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर उपाश्रय में विराजित प्रवचनकार मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने बताया भगवान महावीर स्वामी ने कहा था समय का प्रमाद न करें क्योंकि गया हुआ समय वापस नहीं आने वाला और समय पर की गयी साधना वापस नहीं जाने वाली। जीवन में अंधेरा एवं अज्ञान बिन बुलाए मेहमान हैं अर्थात वे बिना परिश्रम के आते हैं। प्रकाश बिना निमंत्रण के नहीं आता है एवं महँगा मेहमान है जो बिना पुरुषार्थ के नहीं आयेगा। जीवन में प्रयासों की सफलता के लिये कुछ आधार स्तंभ होना आवश्यक है जो निम्न प्रकार से हैं।
1. साधना – हमारे साधन साधना के लिये होना चाहिये न कि भोग के लिये। पर्युषण पश्चात भी हमारी साधना में कोई विराम नहीं आना चाहिये। वैसे तो संपूर्ण जीवन ही साधना का है।
2. स्वाध्याय – यह व्यक्ति को तारों-ताज़ा रखने का कार्य करता है। प्रतिदिन कम से कम 1 घंटा धार्मिक पुस्तक का अध्ययन करना अपेक्षित है।
3. संयम – जीवन में मर्यादा का पालन ही संयम है। वस्तुओं का संयमित होकर उपयोग करना चाहिये। सभी कार्यों के समय निश्चित करके रखना चाहिये कि, कौन सा कार्य कब, क्यों, कहाँ एवं कैसे करना है।
4. सेवा – हमेशा जीवों की सेवा ही हमारा लक्ष्य होना चाहिये। परोपकार करके संसार को अपने वश में कर सकते हैं। गुरु भगवंत की व्यावच्छ करना एवं साधर्मिक भक्ति सबसे उच्च सेवा है। एक कहावत है “परहित सरिस धरम नहिं भाई”
उपरोक्त चारों स्टेप्स जीवन को स्वर्ग बना सकते हैं एवं मोक्ष की ओर प्रयाण करने की प्रेरणा बन सकते हैं। चारों को क्रियान्वित करने के लिये श्रद्धा एवं समर्पण भाव का ईंधन होना अतिआवश्यक है।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘युद्ध भूमि को बुद्ध भूमि बनाओ”
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी
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