नई दिल्ली – प्रसिद्ध लेखक हरिराम मीणा की पुस्तक ‘जल, जंगल, ज़मीन’ का लोकार्पण राजपाल एंड संज़ के स्टाल पर हुआ। भारत मंडपम में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में इस अवसर पर साहित्य, समाज और आदिवासी विमर्श से जुड़े कई विद्वानों और लेखकों ने पुस्तक पर अपने विचार रखे। वरिष्ठ इतिहासकार प्रो रतनलाल ने कहा कि यह पुस्तक आदिवासी समाज के संघर्ष की ऐतिहासिक गाथा को प्रस्तुत करती है। उन्होंने विशेष रूप से आदिवासियों के धर्म और वर्तमान संघर्ष पर पुस्तक में की गई गहन पड़ताल को महत्त्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि पुस्तक में आदिवासी समाज से जुड़े मीडिया और राजनीति के मुद्दों को भी प्रभावी रूप से उठाया गया है। मणिपुर के मूल निवासी और मोतीलाल नेहरू कालेज के शिक्षक डॉ. पीटर हिदाम ने बताया कि यह पुस्तक ब्रिटिशकालीन आदिवासी संघर्षों के साथ-साथ विलुप्त होती आदिवासी भाषाओं की चिंता को भी सामने लाती है। उन्होंने कहा कि मीडिया आदिवासी समाज के मुद्दों को उपेक्षित करता है, जिसे यह पुस्तक उजागर करती है। वरिष्ठ विद्वान रामशरण जोशी ने कहा कि हरिराम मीणा ने आदिवासी संघर्ष को रचनात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। उन्होंने शेक्सपियर की प्रसिद्ध कृति ‘टेम्पेस्ट’ का उदाहरण देते हुए कहा कि जल, जंगल और ज़मीन पर कॉरपोरेट कब्जे की प्रवृत्ति वैश्विक समस्या है। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समाज में निजी संपत्ति की अवधारणा नहीं होती, बल्कि वे जल, जंगल, ज़मीन को अपना सामूहिक हिस्सा मानते हैं और उसकी रक्षा करते हैं। वक्ताओं ने इस बात पर भी चर्चा की कि आदिवासी समाज के उत्थान के लिए कई सरकारी योजनाएँ बनाई जाती हैं, लेकिन वे ज़मीनी स्तर पर प्रभावी नहीं हो पातीं। इस पुस्तक के माध्यम से हरिराम मीना ने आदिवासी समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाने का प्रयास किया है। कार्यक्रम का संचालन साहित्यिक पत्रिका ‘बनास जन’ के संपादक पल्लव ने किया।
कार्यक्रम में साहित्य, समाज और अकादमिक जगत से जुड़े कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। अन्य में प्रकाशक मीरा जौहरी ने आभार व्यक्त किया।
रिपोर्ट – चंद्रशेखर चतुर्वेदी
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