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विशुद्ध_देशना चर्या शिरोमणि अध्यात्म योगी श्री 108 आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज

इंदौर मध्य प्रदेश

इंदौर मध्य प्रदेश भावों के अनुसार कर्म का बंध होता है जैसा बंध होता है ठीक उसी तरह कर्मों का उदय होता है सत्ता के उदय से सुख तथा असत्ता के उदय से दुख होता है जीवन में सुख व दुख दो पहलू होते हैं यानी कभी सुख तो कभी दुख। अशुभ उदय के काल में जीवन रूद्रन दुखित व कष्ट प्राप्त करता है आचार्य श्री ने कहा जीव स्वयं ही पाप करता है स्वयं ही कष्टों को भोगता है। आंखों की पलक उठाने में भी शक्ति लगानी पड़ती है और इसका एहसास वृद्धावस्था में होता है कभी पहलवानी करने वाले की शक्ति क्षीण होने पर एक कदम उठा भी नहीं पाते हैं जीव स्वयं बंधता है तथा स्वयं मुक्त भी होता है जब जीव के भाव भाषा व कार्य बुरे होते हैं तो समझा जा सकता है कि उसके साथ बुरा होना है प्रज्ञावंत मनुष्य को संभलकर जीवन जीना चाहिए जीवन में आत्म जागृति आवश्यक है पल भर की भी असावधानी नहीं करनी चाहिए क्योंकि क्षण भर का भी प्रमाद व आलस जिंदगी भर का भी दुख दे सकता है जिस तरह एक बीज वृक्ष के रूप में विस्तृत हो जाता है ठीक उसी तरह एक अशुभ भाव व् पाप जीवन को पतीत कर देता है सुखद जीवन के लिए उमंग उत्साह के साथ जीवंत जीवन जीना चाहिए निराश होकर जीने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।

#नमोस्तु_शासन_जयवंत_हो

रिपोर्ट अनिल भंडारी

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