हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक महत्वपूर्ण दौरे के तहत पाकिस्तान का दौरा किया। यह दौरा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शासनाध्यक्षों की परिषद की बैठक में हिस्सा लेने के लिए किया गया, जो इस्लामाबाद में आयोजित की गई थी। इस दौरे की खास बात यह है कि यह पिछले 9 सालों में किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली पाकिस्तान यात्रा थी। इससे पहले 2015 में सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का दौरा किया था।
SCO एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसमें भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, और मध्य एशिया के कई देश शामिल हैं। इस संगठन का उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना है। जयशंकर का यह दौरा इसी संदर्भ में अहम था, क्योंकि भारत के साथ पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, भारत ने इस बैठक में भाग लेने का निर्णय किया। भारत ने यह साफ कर दिया था कि जयशंकर के इस दौरे का उद्देश्य केवल SCO की बैठक में हिस्सा लेना था और इस दौरान कोई द्विपक्षीय वार्ता निर्धारित नहीं थी।
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते कश्मीर मुद्दे और पाकिस्तान से होने वाले सीमापार आतंकवाद के कारण लंबे समय से तनावपूर्ण बने हुए हैं। 2019 में पुलवामा हमले और भारत की बालाकोट स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और बिगड़ गए थे। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान से साफ कर दिया कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकते। इस दौरे को इसी पृष्ठभूमि में देखा जा सकता है, जिसमें भारत ने साफ संदेश दिया है कि अगर पाकिस्तान को रिश्ते सुधारने हैं, तो उसे पहले आतंकवाद पर कठोर कदम उठाने होंगे।
जयशंकर के इस दौरे में SCO के महत्व पर बल दिया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के प्रति गंभीर है। भारत की यह नीति पाकिस्तान को यह दिखाने के लिए थी कि वह क्षेत्रीय कूटनीतिक मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट और सुदृढ़ रखना चाहता है, जबकि पाकिस्तान को पहले अपनी समस्याओं को हल करने की आवश्यकता है।
पाकिस्तान में जयशंकर के इस दौरे को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। वहां के मीडिया ने इसे क्षेत्रीय स्थिरता और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम बताया। पाकिस्तान की सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया ने इसे भारत और पाकिस्तान के संबंधों में एक सकारात्मक मोड़ के रूप में देखा। हालांकि, भारत की ओर से कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं करने का निर्णय यह स्पष्ट करता है कि दोनों देशों के संबंध अभी भी बहुत संवेदनशील स्थिति में हैं।
चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग और अन्य प्रमुख नेताओं के इस्लामाबाद में होने के बावजूद, भारत ने अपने कूटनीतिक एजेंडे को स्पष्ट रखा और इस यात्रा को क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग पर केंद्रित रखा। चीन और रूस जैसे बड़े देशों की उपस्थिति के बावजूद, भारत ने अपने एजेंडे को अलग रखते हुए SCO के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया।
जयशंकर का यह दौरा दोनों देशों के संबंधों में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाएगा, लेकिन यह दर्शाता है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत की प्राथमिकता सीमा पार आतंकवाद को समाप्त करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने पर है। अगर पाकिस्तान को भारत के साथ रिश्ते सुधारने हैं, तो उसे पहले आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ा कदम उठाना होगा।
पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक अशोक सज्जनहार का मानना है कि अब गेंद पाकिस्तान के पाले में है। उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को अपने हस्तक्षेप से बचना चाहिए, क्योंकि यह भारत का आंतरिक मामला है। पाकिस्तान के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि वह आतंकवाद और द्विपक्षीय संबंधों पर अपनी नीति में बदलाव लाए ताकि भविष्य में कोई सकारात्मक संवाद स्थापित हो सके।
जयशंकर का पाकिस्तान दौरा SCO के अंतर्गत एक कूटनीतिक अवसर था, जिसका उद्देश्य भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की नीति को आगे बढ़ाना था। हालांकि यह यात्रा द्विपक्षीय मुद्दों को सुलझाने के लिए नहीं थी, लेकिन इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और पाकिस्तान के साथ संबंधों पर उसका रुख स्पष्ट हुआ। अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह कैसे आगे बढ़ता है और क्या वह अपने आंतरिक और बाहरी नीतियों में बदलाव लाकर इस अवसर का लाभ उठाता है या नहीं।
( राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़)
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