भारत में चुनावी राजनीति के बदलते स्वरूप में महिलाओं के विकास के नाम पर लाई जाने वाली लोक लुभावनी योजनाओं का चलन एक महत्वपूर्ण ट्रेंड बन चुका है। हर चुनाव के पहले राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिनका सीधा लक्ष्य महिलाओं के वोट हासिल करना होता है। हालांकि, इन योजनाओं के दीर्घकालिक प्रभाव और उनकी निष्पक्षता पर कई सवाल उठ रहे हैं।
हाल के वर्षों में देखा गया है कि राज्यों में महिलाएं चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण मतदाता बनकर उभरी हैं। चाहे वह मुफ्त सिलाई मशीन, रसोई गैस सिलेंडर, मुफ्त बस यात्रा हो या मासिक नकद सहायता – सभी दल महिलाओं को लुभाने के लिये नई-नई योजनाएं लेकर आते हैं। महिलाओं को ये योजनाएं न केवल राहत का वादा करती हैं, बल्कि उनमें विश्वास पैदा करती हैं कि ये घोषणाएं उनके जीवन स्तर को सुधारने में मददगार साबित होंगी।
इन योजनाओं का उद्देश्य गरीब महिलाओं को सशक्त बनाना है, लेकिन कई बार अपात्र महिलाएं भी इनका लाभ उठाती हैं। सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग, खासतौर पर एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) श्रेणी की महिलाओं द्वारा, एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इस कारण से वास्तविक जरूरतमंद महिलाओं तक योजनाओं का लाभ पहुंचने में बाधा आती है।
इन योजनाओं की लागत करदाताओं की जेब से निकलती है। सरकारें इन योजनाओं के लिए पैसा तो जुटा लेती हैं, लेकिन अक्सर कर्मचारियों की वेतन वृद्धि, पेंशन योजनाओं, और विकास परियोजनाओं के लिए बजट नहीं होने की शिकायत करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रवृत्ति से दीर्घकालिक आर्थिक असंतुलन पैदा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने लोक लुभावनी योजनाओं के दुष्प्रभावों पर चिंता व्यक्त की है और कई बार इनकी समीक्षा के लिए सुझाव भी दिए हैं। कोर्ट का कहना है कि इस प्रकार की योजनाओं से राष्ट्रीय हितों और विकास कार्यों को नुकसान हो सकता है। इसके बावजूद, राजनीतिक दल चुनाव जीतने को प्राथमिकता देते हुए इन योजनाओं को जारी रखते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी योजनाएं जनता की अल्पकालिक समस्याओं को हल करने में मदद करती हैं, लेकिन दीर्घकालिक विकास की अनदेखी करती हैं। एक मजबूत और संतुलित नीति ही देश के विकास को सही दिशा में ले जा सकती है। महिलाओं के सशक्तिकरण के नाम पर दी जाने वाली इन रेवड़ियों को लेकर एक पारदर्शी और निष्पक्ष तंत्र की जरूरत है, ताकि जरूरतमंदों तक ही इसका लाभ पहुंचे।
लोक लुभावनी योजनाएं महिलाओं को राहत प्रदान करती हैं, लेकिन इनसे दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां भी जुड़ी होती हैं। यह समय की मांग है कि राजनीतिक दल राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दें और योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक )
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