आलेख
“रेल जिहाद” शब्द हाल ही में कुछ घटनाओं , सोशल मीडिया और कुछ मंचों पर तेजी से में उभरा है, जिसमें ट्रेन दुर्घटनाओं और तोड़फोड़ के मामलों को जिहादी साजिश से जोड़ने की कोशिश की गई है। इस शब्द का इस्तेमाल ट्रेन हादसों या रेलवे ट्रैक पर तोड़फोड़ की घटनाओं को एक संगठित धार्मिक साजिश के रूप में दिखाने के लिए किया गया है। हालांकि, अब तक इन घटनाओं में न तो व्यापक रूप से जिहादी तत्वों की संलिप्तता ही साबित हुई है और न ही और अधिकांश मामलों में ऐसी साजिश के प्रमाण मिले हैं।
उदाहरण के लिए, वंदे भारत ट्रेन की एक खिड़की तोड़ने का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसे मीडिया ने “रेल जिहाद” के रूप में प्रस्तुत कर दिया, लेकिन बाद में यह स्पष्ट हुआ कि वह व्यक्ति रेलवे कर्मचारी था और मरम्मत का काम कर रहा था, ना कि कोई साजिश ।
गुजरात के सूरत में तीन रेलवे कर्मचारियों ने अधिकारियों को ट्रैक पर “साबोटेज” की सूचना दी। जाँच में पाया गया कि इन कर्मचारियों ने ट्रैक से फ़िश प्लेट निकाल ली थीं ताकि इसे एक साजिश की तरह दिखाया जा सके। इनका उद्देश्य यह था कि वे रात की ड्यूटी जारी रख सकें, जिससे उन्हें दिन में आराम करने का समय और पुरस्कार भी मिले। उन्होंने इस घटना का वीडियो भी बनाकर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा था, जिससे उनका झूठ पकड़ा गया। इन कर्मचारियों को निलंबित और गिरफ्तार कर लिया गया है और इनके खिलाफ गंभीर धाराओं में केस भी दर्ज किया गया है, जिसमें रेल सुरक्षा कानून के तहत कड़ी सजा हो सकती है।
इसी प्रकार कानपुर में हाल ही में तीन हिंदू युवकों को रेलवे ट्रैक पर खंबा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। यह घटना एक बड़े हादसे की कोशिश के रूप में देखी जा रही है। पुलिस ने इस मामले की गंभीरता से जांच शुरू की है और इसे रेलवे सुरक्षा अधिनियम के तहत तोड़फोड़ और जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के प्रयास के रूप में दर्ज किया गया है। ऐसी घटनाएं पहले भी सामने आई हैं, जहां जानबूझकर रेलवे ट्रैक पर वस्तुएं रखकर दुर्घटना की कोशिश की गई है। इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लिया जा रहा है, खासकर जब हाल के दिनों में इस तरह के मामलों में वृद्धि हुई है, पर ये घटनाएँ शरारती तत्वों के द्वारा की जाना ज़्यादा लग रही हैं और धार्मिक साज़िश कम।
हालांकि, कुछ मामलों में कट्टरपंथी तत्व शामिल पाए गए हैं, जैसे कोझीकोड ट्रेन आगजनी का मामला, जिसमें शाहरुख सैफी ने कथित तौर पर जिहादी प्रेरणा से ट्रेन में आग लगाई थी, जिससे तीन लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना में NIA की जांच में सैफी को “स्व-प्रेरित जिहादी” पाया गया, जो ऑनलाइन कट्टरपंथी सामग्री से प्रभावित था।
इस प्रकार कुछ मामलों में कट्टरपंथी तत्वों की मौजूदगी तो मिली है, लेकिन अधिकांश “रेल जिहाद” के दावों में पर्याप्त सबूत नहीं हैं। कानपुर में एक ट्रेन को पटरी से उतारने की एक अन्य प्रकरण में साजिश के मामले में भी संदिग्ध व्यक्ति के ISIS से संभावित संबंधों की जांच की जा रही है । जाँच में भी यह मामला “रेलवे जिहाद” से संबंधित न होकर एक अलग-थलग आतंकवादी कृत्य पाया गया ।
वैसे भी हमारे देश में कई बार अपराध भी भेडचाल में होते हैं। जब वंदे भारत ट्रेन में पत्थर फेंकने की घटना हुई तो अमूमन हर सप्ताह ये घटना होने लगी, क्योंकि फ़ुरसत में बैठे विघ्न संतोषी तत्वों को इसी में मज़ा आ रहा था। उनको इस बात का इल्म नहीं था कि यह अपराध है और इससे किसी को गंभीर चोट भी लग सकती है। इसी तरह कुछ प्रकरणों में अब ऐसे कुछ तत्व रेल की पटरी पर कुछ सामान रखने लगे हैं। ये लोग इसकी गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं। हालांकि, कुछ घटनाओं में जिहादी तत्व पाए गए हैं। उदाहरण के लिए, कोझीकोड ट्रेन आगजनी मामला, जिसमें शाहरुख सैफी ने कथित तौर पर जिहादी विचारधारा से प्रभावित होकर ट्रेन में आग लगाई थी, जिससे तीन लोगों की मौत हो गई थी।
इस तरह, “रेलवे जिहाद” के व्यापक दावों में सच्चाई और अफवाहों का घालमेल नजर आता है। कई मामलों में व्यक्तिगत स्वार्थ या अन्य कारण हो सकते हैं, जबकि कुछ घटनाओं में कट्टरपंथी विचारधारा भी शामिल हो सकती है, लेकिन इसे एक बड़े पैमाने पर साजिश के रूप में प्रमाणित करने के लिए अभी ठोस सबूत नहीं हैं।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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