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राजनीति में धनबल, बाहुबल और आपराधिक पृष्ठभूमि: भारतीय लोकतंत्र की चुनौती

भारतीय लोकतंत्र, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, आज कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। एक समय था जब राजनीति समाज सेवा का माध्यम हुआ करती थी, और आम आदमी के लिए यह एक सम्मानजनक पेशा माना जाता था। परंतु आज की स्थिति बिलकुल अलग है। धनाढ्य लोगों, बाहुबलियों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की राजनीति में सक्रिय भागीदारी भारतीय लोकतंत्र की नई वास्तविकता बन गई है।

हरियाणा चुनाव और रिपोर्ट की चौंकाने वाली सच्चाई

हाल ही में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनावों की एक रिपोर्ट ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया। इस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 96% विधायक करोड़पति हैं। यह आँकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करता है। करोड़पतियों के साथ ही, लगभग 13% विधायकों की आपराधिक पृष्ठभूमि है, जिनमें से कई गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं।

यह स्थिति केवल हरियाणा तक सीमित नहीं है। देश के लगभग हर राज्य और केंद्र में ऐसे नेता हैं जो धनबल और बाहुबल के दम पर राजनीति कर रहे हैं। इन नेताओं का राजनीति में प्रवेश न केवल जनतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है, बल्कि जनता के प्रति उनके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों पर भी सवाल खड़े करता है।

राजनीति में धनबल और बाहुबल का प्रभाव

धन और बाहुबल का राजनीति में प्रभाव अब इतना बढ़ चुका है कि आम आदमी के लिए चुनाव लड़ना और जीतना लगभग असंभव सा हो गया है। पहले, राजनीति में प्रवेश करना और चुनाव लड़ना एक साधारण व्यक्ति के लिए भी संभव था, लेकिन अब चुनावी प्रक्रिया इतनी महंगी हो चुकी है कि बिना धन के चुनाव में सफल होना मुश्किल है।

राजनीति में धन का प्रवेश केवल एक नैतिक सवाल नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर भी प्रभाव डालता है। जब करोड़पति और बाहुबली सत्ता में आते हैं, तो उनका मुख्य उद्देश्य अपनी संपत्ति बढ़ाना और अपने प्रभाव को मजबूत करना होता है। वे जनता की भलाई से ज्यादा अपने स्वार्थ को महत्व देते हैं।

इस स्थिति का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि राजनीति में ईमानदारी और पारदर्शिता की कमी होती है। भ्रष्टाचार बढ़ता है, और नीतियाँ उन लोगों के पक्ष में बनाई जाती हैं जो सत्ता में बैठे लोगों को लाभ पहुंचा सकते हैं।

मतदाताओं की जिम्मेदारी

धनबल और बाहुबल का प्रभाव केवल नेताओं तक सीमित नहीं है। इसके लिए मतदाताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जब मतदाता छोटे-छोटे प्रलोभनों के कारण अपने वोट का दुरुपयोग करते हैं, तो वे अनजाने में उस राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं जिससे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर होती है।

यह सच है कि हर चुनाव में बड़े राजनीतिक दल अपने-अपने तरीकों से शुचिता की बात करते हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा कम ही देखने को मिलता है। चुनावी प्रक्रिया में धनबल और बाहुबल की भूमिका को खत्म करने के लिए, मतदाताओं को भी जागरूक होना पड़ेगा।

मतदाता यदि अपने विवेक से काम लें और केवल उन्हीं उम्मीदवारों को चुने जो वास्तव में जनहित में काम कर सकते हैं, तो राजनीति में सुधार संभव है।

लोकतंत्र की दिशा

यदि भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाना है, तो हमें राजनीति से धनबल, बाहुबल और अपराधियों का वर्चस्व खत्म करना होगा। इसके लिए एक सशक्त चुनावी सुधार की आवश्यकता है, जिसमें चुनाव लड़ने की लागत को कम किया जाए, और अपराधियों को राजनीति में प्रवेश करने से रोका जाए।

साथ ही, जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि हम अपने बेशकीमती वोट का सही इस्तेमाल करें और केवल उन्हीं नेताओं को चुनें जो वास्तव में जनहित में काम कर सकते हैं, तो भारतीय लोकतंत्र को उसकी सही दिशा में ले जाना संभव है।

यह समय आत्ममंथन का है। यदि हम इस दिशा में सही कदम नहीं उठाते, तो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर धनबल और बाहुबल का काला साया हमेशा मंडराता रहेगा, और हमारे सपनों का भारत केवल एक कल्पना बनकर रह जाएगा।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)

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