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मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने नवपद ओलीजी के चारित्र एवं तप पद पर प्रवचन दिया।

इंदौर मध्य प्रदेश

सम्यग्चारित्र (संयम) पुराने कर्मों को खाली करता है। जिस प्रकार से नाव में पानी भरने पर उसको बाहर निकाला जाता है उसी तरह जीवन रूपी नाव में कर्म रूपी पानी भर जाता है तो नाव (जीवन) को बचाने के लिये उसमें भरे पानी (कर्मबंध) को निकालने का कार्य सम्यग्चारित्र करता है एवं आने वाले कर्मों को रोकता है। सम्यग्दर्शन से अधिक शक्तिशाली सम्यग्चारित्र होता है। केवल भावचारित्र में मोक्ष संभव है। अंतर्मुहूर्त जितना भी चारित्र पालन कर लो तो वैमानिक देव योनि प्राप्त हो सकती है।
श्रावक जीवन में चारित्र पालन सामायिक करके भी किया जा सकता है। सामायिक एक तंत्र है जिसको बार-बार करना चाहिये और एक सामायिक से 950 पल्योपम का लाभ मिलता है। आत्मा के कल्याण एवं उद्धार के लिये चारित्र पालन आवश्यक है जिसके लिये पुरुषार्थ करना जरूरी है।
तप
पूर्व भावों के कर्मों का प्रायश्चित तप करने से हो सकता है। तप दो प्रकार के होते हैं
1. बाह्य तप – (1) अनशन – अन्न एवं जल का त्याग। (2) उनोंद्री – अपनी क्षमता से कुछ कम भोजन ग्रहण करना या भरपेट भोजन नहीं करना। (3) वृत्ति संक्षेप – सीमित संख्या में भोज्य पदार्थ का संकल्प लेना। (4) रस त्याग – छः विगई दूध,दही,घी,तेल,गुड़ और कढ़ाई (पकवान) या कम से कम एक विगई का त्याग करना। (5) काया क्लेश – शरीर को कष्ट देना जैसे केश लोचन, नियम पूर्वक गिरिराज की धार्मिक यात्रा। (6) संलिनता – एक स्थान पर बिल्कुल स्थिर होना
2. अभ्यंतर तप – (1) पापों का प्रायश्चित, (2) विनय, (3) स्वाध्याय, (4) ध्यान, (5) कायोत्सर्ग एवं (6) व्यावच्छ
नवपद ओली की आराधना सभी प्रकार से मनुष्य के लिये हितकर है। इसलिए इसको जीवन में एक बार तो अवश्य करना चाहिए। जीवन के कल्याण का सबसे उत्तम मार्ग यही है।
राजेश जैन युवा ने बताया की नवपद ओलीजी के अंतिम दिन सिद्धचक्र पूजन का भव्य आयोजन तिलकेश्वर उपाश्रय हाल में विधि पूर्वक संपन्न हुआ।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘संयम जीवन, मोक्ष का एक्स्प्रेस वे”

राजेश जैन युवा 94250-65959

रिपोर्ट- अनिल भंडारी

 

 

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