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महिला सुरक्षा की विफलता- कानूनी व सामाजिक ढाँचे में प्रभावी सुधार की चुनौतियाँ

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध एक गंभीर और लगातार चिंता का विषय है, जो लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय की प्रगति को बाधित कर रहा है। हाल की घटनाओं ने महिला सुरक्षा उपायों में गहरी कमियों को उजागर किया है, जिनमें सबसे हालिया कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ हुई यौन हिंसा और हत्या की घटना है। इसने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं और सुप्रीम कोर्ट को केंद्र और राज्य सरकारों को ठोस कदम उठाने की दिशा में प्रेरित किया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 2022 में 4,45,256 थी, जो प्रति घंटे 51 प्राथमिकी के बराबर है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 4% अधिक है। इनमें घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज अपराध और मानव तस्करी शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर सबसे अधिक है। इसके बावजूद, अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और न्याय की त्वरित प्रक्रिया की कमी बनी हुई है।

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए कई विधिक ढांचे और न्यायिक पहलें लागू की गई हैं। 2013 का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम, दंड विधि (संशोधन) अधिनियम 2013, और POCSO अधिनियम ने यौन अपराधों के खिलाफ सख्त दंड का प्रावधान किया है। विशाखा दिशानिर्देश, एसिड हमलों पर रोकथाम और अन्य न्यायिक फैसलों ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनी ढांचे को मजबूत किया है। लेकिन इन पहलुओं के प्रभावी क्रियान्वयन की कमी और सुरक्षा उपायों की अनदेखी ने समस्याओं को जस का तस बनाए रखा है।

सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। ‘निर्भया फंड’ महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने वाली परियोजनाओं को समर्थन देता है। ‘वन स्टॉप सेंटर’ और महिला हेल्पलाइन हिंसा से प्रभावित महिलाओं को सहायता प्रदान करते हैं। ‘महिला पुलिस स्वयंसेवक’ और ‘स्वाधार गृह योजना’ जैसी योजनाएं संकटग्रस्त महिलाओं को सहायता और आश्रय प्रदान करती हैं। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना लैंगिक भेदभाव और बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देती है। यौन अपराधों की जाँच के लिए ट्रैकिंग प्रणाली और सुरक्षित शहर परियोजना भी लागू की गई हैं। इन पहलाओं के बावजूद, इनकी जमीनी स्तर पर प्रभावशीलता पर प्रश्न उठते हैं।

महिलाओं की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए मौजूदा कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन आवश्यक है। इसमें कानून प्रवर्तन कर्मियों का प्रशिक्षण, फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना, और लिंग संवेदीकरण कार्यक्रम शामिल हैं। पुलिस प्रशिक्षण में सुधार और विशेष पुलिस इकाइयों का गठन भी महत्वपूर्ण है। उत्तरजीवियों के लिए बेहतर सहायता प्रणाली, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण, और प्रौद्योगिकी के उपयोग से रिपोर्टिंग में सुधार किया जा सकता है। न्यायपालिका और विधि प्रवर्तन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना और नियमित प्रभाव आकलन करने पर भी जोर दिया गया है। मीडिया को जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

भारत में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों की चुनौती से निपटने के लिए एक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। NCRB की रिपोर्ट और हाल की घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए और अधिक प्रभावी प्रयासों की आवश्यकता है। सभी हितधारकों को मिलकर लिंग-आधारित हिंसा के मूल कारणों को दूर करने, मौजूदा कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने, और उत्तरजीवियों के लिए व्यापक सहायता सेवाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। समाज के सभी क्षेत्रों से निरंतर और ठोस प्रयासों के बिना महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा अधूरी रहेगी।

( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक )

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