सफलता की कहानी -1
इंदौर मध्य प्रदेश
वन स्टॉप सेंटर इंदौर पर आने वाले कमोबेश सभी प्रकरणों में पति द्वारा पत्नी पर हाथ उठाना एक आम बात है। दुख की बात यह है की महिलाएं भी “मेरी गलती हो तब मारे तो ठीक है, बेवजह तो न मारे” इस भयानक सामाजिक अवधारणा से अभी भी बाहर नहीं निकल पा रही हैं।
वन स्टॉप सेंटर पर घरेलू हिंसा के कई प्रकरण दैनिक रूप से दर्ज होते है, अधिकतर प्रकरणों में महिला कोई कार्यवाही न चाहकर सिर्फ परामर्श द्वारा अपने दैनिक जीवन में बस इतनी राहत चाहती है की उसपर हाथ न उठाया जाए।
ज़िला कार्यक्रम अधिकारी रामनिवास बुधौलिया और उनके अधीनस्थ अधिकारियों एवम स्टाफ हर संभव प्रयास करता है की यह सोच बदले और महिलाओं को राहत मिले।
प्रशासक डॉ वंचना सिंह परिहार के निर्देश पर एक प्रकरण में परामर्श दात्री अलका फणसे द्वारा परामर्श कर मामला सुलझाया गया।
आवेदिका के विवाह को ५ वर्ष हो चुके थे, दो बेटे थे ५ और ३ साल के।
मां के घर रह रही थी और बेटो को पिता रोज रात में लेकर जाता था और सुबह छोड़ जाता था। पांच माह से यही सिलसिला चल रहा था।
दोनो पक्षों की सारी व्यथा सुनने पर समस्या पर विमर्श शुरू हुआ।
पति का कहना था की पत्नी बाकी तो सब अच्छी है, मैं भी परिवार के लिए दिन रात मेहनत करता हूं, पर घर में आते ही इतना मुंह चलाती की मुझे हाथ उठाना पड़ता है इसे चुप करवाने केलिए।
सास को भी बुलाया गया, ये पूछने पर की बेटा बहु पर हाथ उठाया है यह सही है क्या? उनका कहना था की में भी रोकती हूं बेटे को पर बहु की जबान बहुत गंदी है। बाकी उसमे कोई खराबी नही, सब कुछ अच्छे से सम्हालती है।
युवती का भी कहना था पति यूं तो बहुत अच्छा है , हर बात का ख्याल रखता है पर शराब पीता है, और में कुछ सवाल करू तो हाथ उठता है।मेरी गलती हो तब मारे फिर भी ठीक है पर बेवजह नही।
इस पर सभी को पहले तो यह हिंसा होकर इसके खिलाफ सख्त सजा का कानूनी प्रावधान है इस बात से अवगत करवाया गया।
दोनो ही रिश्ता खतम नही करना चाहते थे फिर भी पांच माह से अलग रह रहे थे। दोनो के माता पिता और बच्चे परेशान हो रहे थे।
तब दोनो ही पक्षों को किस तरह संयमित भाषा और संयमित व्यवहार होना चाहिए और कैसे यह किया जा सकता है इसके लिए कोपिंग स्ट्रैटजीस पर बात हुई। दोनो का साथ रहना तय हुआ। पुनः कुछ अंतराल बाद कुल चार सत्र हुए और अंततोगत्वा दोनो ने ही अपने पक्ष को सुधाकर आगे से हर तरह परिवार का माहौल स्वस्थ बनाये रखने की मंशा जताकर प्रकरण समाप्त हुआ।
सफलता की कहानी -2
आवेदन में प्रत्यर्थी की परेशानी को भी समान रूप से सुनकर समाधान निकालना वन स्टॉप सेंटर का धर्म
सास बहू विवाद के एक प्रकरण में
कम्मो ने वन स्टॉप सेंटर पर प्रकरण दर्ज करवाया जिसमे मुख्य त: सास से समस्या होना बताकर निराकरण की मांग की गई।
प्रशासक डा वंचना सिंह परिहार ने युवती से सविस्तार चर्चा की, युवती थोड़ी असमंजस में , थोड़ी जिद्दी सी बात करती रही।
उसने अपनी कहानी कुछ ऐसे सुनाई की मेरा विवाह 10 वर्ष पूर्व हुआ था। एक बेटा है जो सास के पास रहता है।पति सास को 3000 रू महीना खर्च देता है। घर का दूध दही, घी रहता है।
नानी सा और जेठ की बेटी सास के साथ रहती है, सास ने कहा उसका खर्च भी तुम उठाओ। तब मैने कहा की हम अलग हो जाते हैं। , एक माह पहले सास से अलग हुई हूं। ऊपर दो कमरों में से एक कमरा मुझे मिला है। निचे से रास्ता है सास आने जाने नही देती। जेठानी मैं मुझे सब्जी लाकर देती तो उसे भी मना करती है। सास ने मेरा ताला तोड़ दिया। सास लेट बात भी यूज नहीं करने देती। सास छोटी छोटी बात पर झगड़ा करती है, पति को भड़कती है, मेरे कमरे का सामान फेंक दिया जिससे सास को चोट लगी, मुझे भी चोट लगी पर मेरे शिकायत करने से पहले उसने थाने में शिकायत कर दी।सास रकम का भी आरोप लगाती है। सास उस घर में रहने नही दे रही। में पति के साथ रहना चाहती हूं पर पति सास के साथ रहना चाहता है।
प्रित्यर्थी सास को बुलाया गया , साथ ही कम्मो के पति और बेटे को भी बुलाया गया।
प्रशासक डा परिहार के निर्देश पर परामर्शदात्री अलका फणसे द्वारा परामर्श सत्र लिया गया।
कम्मो से ये पूछने पर की बेटा तुम्हारे पास क्यों नहीं है? क्या सास नही रहने देती? कम्मो ने बताया की नही मेरी तबियत ठीक नहीं रहती, मुझसे ज्यादा कम नहीं होता तो सास ही बेटे को सम्हलती है। इसमे मुझे कोई ऐतराज नहीं।
जुबली बेटे का कहना था मां मुझे बहुत मारती है, दादी बहुत प्यार से रखती है।
सास का पक्ष था की बहु कॉमन लेट बात साफ नही करती, मुझे कहती है तुम ही करो, कुछ बोलो तो विवाद करती है। घर के सामने भी हमारे चार कमरे हैं, जहां बाकी तीन बेटे अलग रहते हैं, कम्मो से कहा तुम भी वहीं रहो ताकि झगड़े न हों, पर वो कहती है यहीं रहूंगी, ये मकान मुझे दो। मैं और मेरा बेटा भी परेशान हैं।पोते को भी मैं ही सम्हाल रही हूं। मैं शांति से रहने चाहती हूं। सारा काम में खुद ही करती हूं, बहु मुझे बिक बात बात पर धेमकी देती है की देने बैठे दूंगी।
कई बार हमे थाने वालों ने बुलाया।बहु अलग हुई पर खाना नही बनाती, बेटा मेरे पास आकर खाता है।
सभी पक्षों को सुनकर जम कम्मो से पूछा गया की तुम जब अलग रह रही हो और सास परेशान कर रही तो सामने कमरे में क्यों नहीं शिफ्ट होती। तू कम्मो के पास कोई जवाब नही था।
कम्मो को समझाया गया की सास का मकान है , वह चाहे तो तुम्हे न भी रखे पर वह तुम्हे सामने कमरा दे रही है तो तुम्हे वहां रहना चाहिए ताकि तुम शांति से रह सको। साथ ही कम्मो को ताकीद दी गई की बेटे से मारपीट न करे अन्यथा कार्यवाही की जाएगी, साथ ही बच्चे से प्यार से पेश आने और बच्चे की जिम्मेदारी स्वयं उठाने की सलाह दी गई।
सास के बाद सास खुशी से जो देना चाहे, पर अगर तुम अधिकार समझकर दुर्व्यवहार और झगड़ा करोगी तब कुछ भी हासिल नहीं होगा। इस तरह विवाद का हल निकलकर बहु सामने कमरे में बाकी जेठ और देवरों के साथ रहने पर सहमत हुई। उसने घर में शांति बनाए रखने जिससे पति भी अपना व्यवसाय ठीक तरह कर सके और कम्मो अच्छा जीवन व्यतीत कर सके इस बात की भी समझाइश दी गई। बेवजह , हर छोटे विवाद पर थाने जाना ठीक नहीं, थाने के भरोसे रिश्ते नही निभ सकते, हमें समझदारी से विवाद टालना चाहिए।अंततः कम्मो पति के साथ रवाना हुई।
सफ़लता की कहानी -3
रिश्तों में राहत और रिश्तों की सेहत दोनों ही सुधारते महिला बाल विकास के अधिकारी एवम् कर्मचारी
वन स्टॉप सेंटर पर प्रशासक डा वंचना सिंह परिहार के मार्गदर्शन में महिलाओं को हर तरह कि सहायता दी जाती है। साथ ही निष्पक्ष हो मामले का समाधान ढूंढा जाता है।
आवश्यकता पड़ने पर परामर्श भी दिया जाता है।
इसी कड़ी में एक युवती मेघा ने osc पर संपर्क किया,की पति और ससुराल वालों ने प्रताड़ित किया है। ससुर बिना कहे मेरे करे में घुस आते हैं। किचन में भी दबे पांव आ जाते हैं।कच्चा घर था, मेरे पिता का construction की ठेकेदारी का काम है, ससुराल की ऊपरी मंजिल जहां हम पति पत्नी रहते हैं वहां टाइल्स लगवाने का काम करवाया,पर मेरे पिता के पैसे नहीं लौटा रहे। मैं मायके में रह रही हूं , प्रेगनेंसी का पता चला तब भी पति को कोई फर्क नहीं पड़ा। अभी मैं पति के पास नही जाना चाहती। मेघा से पूछने पर की हमसे क्या मदत चाहती हो उसने कहा की मेरे परिवार को समझाया जाए।
मेघा के पति, सास ससुर सभी को बुलाया गया। सभी का पक्ष सुनने पर दूसरा पहलू भी सामने आया।
सभी का कहना था कि मेघा को बहुत गुस्सा आता है। बात बात मरने की धमकी देती है। मेरी वाशिंग मशीन को हाथ मत लगाओ ऐसा बोला तो सास ने कहा की ठीक है अपने कमरे में रख लो, तब मेघा ने कह दिया की ठीक है ऊपर मेरा घर है,ऊपर पाव मत रखना।
फिर सास ससुर भी नाराज हो गए, तब मेघा ने चिल्ला कर बोला मार दो मुझे , मुझे नहीं रहना यहां।
टाइल्स केलिए भी हमने कहा था कि थोड़ा रुक के लगवा लेंगे पर मेघा ने जिद की मेरे पापा लगवा देंगे। फिर अचानक कहने लगी की मेरे पिता का पैसा वापस करो, तुम्हारी नीयत नही है।
हालांकि दोनो का प्रेम विवाह था पर अनबन खत्म जी नही हो रही थी। दोनों में विवाद होकर मेघा घर चली गई और वापिस आने से मना कर दिया। फिर पति जिद पर अड़ गया की तुम्हे आना है तो आओ मैं नही मनाऊंगा। मेघा जनम दिन के
बाद गिफ्ट मिला फोन भी फेंक कर चली गई।कुल मिलाकर बेमतलब की बातों पर तूल देकर दोनो पक्षों की और से मामला बिगड़ रहा था।
सास ससुर दोनो ने ही कहा की आप बहु से पूछ लो, हमने तो कहावही की दोनो अलग रह लो पर अच्छे से रहो। पर इकलौता बेटा होने से मेघा का पति खुद जी मां बाप को छोड़कर नही रहना चाहता था।
प्रकरण मुख्यता पति पत्नी के मध्य समस्या का जान परामर्शदात्री अलका फणसे ने दोनो के संयुक्त परामर्श सत्र लिए।
चर्चा के दौरान मेघा को इस बात का एहसास करवाने का प्रयत्न किया गया की उसका क्रोध शायद रिश्ता बिगड़ रहा है। तुम सही हो लेकिन तुम्हारा अपनी बात रखवाने का तरीका बदलने की जरूरत है। मेघा ने भी कहा की मैं जानती हूं मुझे बहुत गुस्सा आता है, मुझसे कंट्रोल नही होता, इसलिए बात बढ़ जाती है।
विवाद के मुद्दों का सविस्तर चर्चा कर हल निकाला गया साथ ही मेघा को अपने गुस्से पर काबू पाने के लिए कुछ मनोवैज्ञानिक तरीको पर चर्चा हुई। अगर फिर भी गुस्सा अधिक आता है तो चिकित्सकीय परवमर्श लेने की सलाह दी गई जिसे मेघा ने भी स्वीकारा।
मेघा सास ससुर के साथ ही रहने को सहर्ष सहमत होकर पति के साथ रहने के लिए रवाना हुई
सफ़लता की कहानी -4
परिवार और रिश्तों को बचाने के कार्य में अव्वल वन स्टॉप सेंटर इंदौर
महिला बाल विकास विभाग के अंतर्गत जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री रामनिवास बुधौलिया के मार्गदर्शन में केंद्र सरकार की योजना वन स्टॉप सेंटर सखी को सफलता पूर्वक संचालित किया जा रहा है।
प्रशासक डा वंचना सिंह परिहार का भी भरसक प्रयास रहता है की हर महिला की समस्या का समाधान हो सके।
केंद्र पर माया का आवेदन आया की पति शराब पीता है,मारपीट करता है, बच्चों पर ध्यान नहीं देते। जुआ खेल कर कर्ज कर रखा है, कहते हैं की घर से निकल जाओ घर बेचकर कर्ज चुकाऊंगा।
पति के साथ रहना मुश्किल हो गया है, मुझ पर शक भी करता है।परामर्श चाहती हूं।
पति को बुलाकर कथन हुए,पति ने भी परामर्श केलिए हामी भरी।
दोनो का पहले एकल और फिर तीन संयुक्त परामर्श सत्र हुए।
माया की हर समस्या और शिकायत पर सिलसिलेवार चर्चा हुई।
माया के पति ने बताया की पत्नी के नाम से लोन लेकर घर बनाया पर किश्ते में ही चुका रहा हूं। पत्नी कहती है मेरा घर है । मेरा एक्सीडेंट हुआ था , पत्नी को कोरोना तब काफी खर्च हुआ। ऑटो डील का काम है, करोना में वह भी बंद पड़ा था था। मैं मानता हूं की कुछ समय के लिए में भटक गया था पर कर्ज तो बीमारी के कारण भी हुआ। 6 लाख में से 3 लाख चुका दिए है।बाकी भी उतार दूंगा। कभी कभी शराब पीता हूं पर पत्नी से मारपीट नही करता। किसी आदमी से मुझे बताए बिना माया ने पैसे लिए थे, उससे बात करते हुए मैने पकड़ा तब मुझे बुरा लगा तब चरित्र पर बात कही, यहां मैं गलत हूं। मुझे पत्नी पर विश्वास है, मैने गुस्से में कह दिया।
गरम मामला परामर्श के दौरान ठंडा होने लगा। माया ने कहा की मुझे वन स्टॉप सेंटर के बारे में पता चला था, मैने सोचा रिश्ते की समस्या अत्यधिक बढ़ जाए उससे पहले ही परवमार्श से सुलझ जाए तो अच्छा है। माया के पति को समझाया गया की किसी भी परिस्थि में पत्नी पर हाथ उठाना, उसे घर से निकालने की बात कहना गलत है। यह सब प्रताड़ना का हिस्सा है और कानूनन भी गलत है।
माया ने भी समझा की पति की समस्या को समझने का प्रयत्न करना चाहिए। करोना से पहले पति शराब नहीं पीता था, अभी पीना भी गलत है, पर विवाद से आदत नही बदलेगी, पति के साथ समस्या पर चर्चा कर दोनो को मिलकर साधन ढूंढना होगा।
दोनो अपने व्यवहार में बदलाव लाकर बेटे के भविष्य पर काम करने पर सहमत हुए। माया पढ़ी लिखी होने से उसके पति को समझाया गया की उसे job करने दे।
पत्नी का job करना यह सिद्ध नहीं करता की पति अक्षम है, बल्कि पत्नी भी सक्षम है यह सिद्ध होता है। दोनो मिलकर कर्ज से बाहर आओ ताकि जिंदगी पहले जैसी गुजर सके।
जिला कार्यक्रम अधिकारी: रामनिवास बुधौलिया रिपोर्ट अनिल भंडारी
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