आलेख
मणिपुर पिछले कुछ वर्षों से लगातार हिंसा और अस्थिरता से जूझ रहा है। जातीय संघर्ष, माइनिंग नियमों में बदलाव, विद्रोही गतिविधियाँ, और विदेशी ताक़तों का हस्तक्षेप इस अशांति के मुख्य कारण हैं। मणिपुर की स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि राज्य में कब राष्ट्रपति शासन लागू होता है और कब हटता है, यह किसी को पता भी नहीं चलता। इसके बावजूद, मणिपुर की समस्याओं को राष्ट्रीय मीडिया में वह स्थान नहीं मिलता जिसकी वह हकदार है।
मणिपुर में अशांति का एक बड़ा कारण माइनिंग (खनन) नियमों में बदलाव है। हाल के वर्षों में मणिपुर में खनिज संपदा की खोज और खनन को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा नए माइनिंग नियम लागू किए गए। ये नियम स्थानीय समुदायों के हितों और पारंपरिक अधिकारों की अनदेखी करते हुए लागू किए गए, जिससे कई आदिवासी और जातीय समूहों के बीच असंतोष पनपा। इन समुदायों का मानना है कि उनके प्राकृतिक संसाधनों का शोषण किया जा रहा है और उन्हें उनका उचित लाभ नहीं मिल रहा है। खासकर कुकी और नागा जनजातियों ने इस बदलाव का विरोध किया, क्योंकि यह उनके पारंपरिक जीवन और भूमि अधिकारों के लिए खतरा बन गया। माइनिंग विवाद ने जातीय संघर्ष को और भड़का दिया, जिससे हिंसा और अस्थिरता में इजाफा हुआ।
मणिपुर के प्रमुख संघर्षों में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसक झड़पें शामिल हैं, जिनमें 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं। इसके साथ ही, मणिपुर में सक्रिय विद्रोही समूह स्वायत्तता या अलगाव की मांग करते हुए हिंसक गतिविधियाँ बढ़ा रहे हैं।
विदेशी ताक़तों, विशेष रूप से चीन और म्यानमार, का इस अशांति में महत्वपूर्ण योगदान है। चीन पर आरोप है कि वह उत्तर-पूर्व के अलगाववादी संगठनों को समर्थन देता है ताकि भारत की सामरिक स्थिति कमजोर हो। वहीं, म्यानमार से घुसपैठ और हथियारों की तस्करी मणिपुर की सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।
सरकार की असफलता भी मणिपुर की अशांति का एक बड़ा कारण है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर मैतेई समुदाय का पक्ष लेने का आरोप है, जिससे कुकी समुदाय में असंतोष है। अब मैतेई समुदाय के भीतर भी उनके प्रति अविश्वास पनप रहा है। राज्य की पुलिस जातीय आधार पर बँट चुकी है और हालात ऐसे हो गए हैं कि मणिपुर के भीतर जातीय सीमा जैसी स्थिति बन गई है।
इन तमाम गंभीर स्थितियों के बावजूद, राष्ट्रीय मीडिया मणिपुर की समस्याओं को पर्याप्त कवरेज नहीं दे रहा है। यहाँ तक कि ड्रोन और रॉकेट लॉन्चर के इस्तेमाल की खबरें भी मीडिया में सुर्खियाँ नहीं बन पाईं। मणिपुर की समस्याओं को सिर्फ एक स्थानीय मुद्दे के रूप में देखा गया है, जबकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा है।
मणिपुर की समस्या केवल आंतरिक नहीं है, बल्कि इसमें विदेशी हस्तक्षेप, माइनिंग विवाद, और सरकार की विफलताएँ गहराई से जुड़ी हुई हैं। अब मणिपुर को प्राथमिकता देकर स्थायी समाधान के लिए ठोस कदम उठाने का समय आ गया है।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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