भारत और कनाडा के संबंध बहुआयामी और जटिल रहे हैं, जिनमें समय-समय पर उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। दोनों देश लोकतंत्र, बहुसांस्कृतिकता और मानवाधिकारों के साझा मूल्यों से जुड़े हुए हैं। हालाँकि, उनके बीच कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे भी रहे हैं जो संबंधों को प्रभावित करते रहे हैं, विशेषकर खालिस्तानी आंदोलन और इसके प्रभाव। हाल के वर्षों में दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों में विभिन्न बदलाव और चुनौतियाँ सामने आई हैं, जो उनके संबंधों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं।
भारत और कनाडा के रिश्तों में पिछले एक वर्ष से जो तनाव चल रहा है, वह हाल ही में एक गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है। इस दौरान जो घटनाएं सामने आई हैं, वे न केवल दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संबंधों पर चोट कर रही हैं, बल्कि एक दीर्घकालिक कूटनीतिक संकट की ओर भी इशारा कर रही हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और कनाडा के बीच संबंधों की जड़ें औपनिवेशिक काल में हैं जब दोनों देश ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा थे। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कनाडा ने भारत के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को मजबूत किया। कनाडा ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, विशेषकर कृषि और तकनीकी क्षेत्रों में। हरित क्रांति के दौरान कनाडा ने भारत की सहायता की, जिससे भारत की कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इन आरंभिक वर्षों में दोनों देशों के संबंध सौहार्दपूर्ण रहे।
राजनीतिक संबंध
राजनीतिक दृष्टिकोण से, भारत और कनाडा के संबंध स्थिर रहे हैं, लेकिन समय-समय पर चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। विशेषकर 1980 के दशक में, खालिस्तान समर्थक आंदोलन ने दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाया। कनाडा में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी रहते हैं, जिनमें से अधिकांश पंजाब से हैं। इस कारण पंजाब के राजनीतिक मुद्दे, जैसे खालिस्तान आंदोलन, कनाडा की राजनीति पर भी असर डालते रहे हैं। जब भी कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों को समर्थन मिलता है, तो भारत की ओर से तीखी प्रतिक्रिया होती है।
2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाने से दोनों देशों के संबंधों में और अधिक खटास आ गई। भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया और इसे कनाडा की घरेलू राजनीति से प्रेरित बताया। ट्रूडो की अल्पमत सरकार घरेलू राजनीतिक चुनौतियों से जूझ रही है, और भारत का मानना है कि ट्रूडो ने सिख चरमपंथी तत्वों को खुश करने के लिए इस प्रकार के आरोप लगाए हैं। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में तनाव पैदा हो गया है।
आर्थिक और व्यापारिक संबंध
आर्थिक मोर्चे पर, भारत और कनाडा के बीच व्यापारिक संबंधों में स्थिरता रही है। कनाडा प्राकृतिक संसाधनों का धनी देश है, जबकि भारत एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। दोनों देशों के बीच कृषि उत्पाद, खनिज, उर्वरक, और ऊर्जा संसाधनों का व्यापार होता है। भारत के लिए कनाडा एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता भी है, विशेषकर यूरेनियम के मामले में। दोनों देश एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक तनाव के कारण इस वार्ता में प्रगति धीमी रही है।
यदि यह समझौता सफल होता है, तो दोनों देशों के बीच व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। हालाँकि, खालिस्तानी मुद्दे और ट्रूडो के आरोपों ने इन वार्ताओं को प्रभावित किया है, जिससे दोनों देशों के आर्थिक संबंधों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है।
सांस्कृतिक और प्रवासी संबंध
भारत और कनाडा के सांस्कृतिक संबंध भी बहुत गहरे हैं। कनाडा में 1.6 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी रहते हैं, जो वहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 5% हैं। ये प्रवासी कनाडा की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और साथ ही वहाँ की सांस्कृतिक विविधता को भी समृद्ध करते हैं। भारतीय त्योहार, जैसे दिवाली और होली, कनाडा में बड़े उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। इसके अलावा, बॉलीवुड फिल्में भी कनाडा में लोकप्रिय हैं, और कई भारतीय फिल्मों की शूटिंग के लिए कनाडा के शहर एक प्रमुख स्थल बन चुके हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में भी भारत और कनाडा के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। हर साल हजारों भारतीय छात्र कनाडा के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं, जो दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को और भी मजबूत बनाता है।
सुरक्षा और रक्षा संबंध
सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच सहयोग बना हुआ है। आतंकवाद, संगठित अपराध और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ दोनों देश सहयोग कर रहे हैं। हालांकि खालिस्तानी आंदोलन के कारण सुरक्षा सहयोग पर कुछ सवाल उठते रहे हैं, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत और कनाडा के बीच एक साझा समझ बनी हुई है।
राजनयिक विवाद और खालिस्तानी मुद्दा
खालिस्तानी मुद्दा भारत और कनाडा के संबंधों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियाँ और सरकार का उनके प्रति नरम रवैया भारत के लिए चिंता का विषय है। भारत का मानना है कि कनाडा सिख चरमपंथियों को राजनीतिक प्रश्रय दे रहा है, जिसका उद्देश्य घरेलू राजनीतिक लाभ उठाना है। ट्रूडो की सरकार पर भारत लगातार दबाव डाल रही है कि वह इन चरमपंथी तत्वों पर कड़ी कार्रवाई करे, लेकिन कनाडा की ओर से इस दिशा में अपेक्षित कदम नहीं उठाए गए हैं।
भविष्य की दिशा
इस विवाद ने भारत-कनाडा संबंधों को एक जटिल स्थिति में डाल दिया है, जहां दोनों देशों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। राजनीतिक और कूटनीतिक संवाद को फिर से स्थापित करना और इस मुद्दे का समाधान खोजना दोनों देशों के नेताओं के लिए अनिवार्य है। खालिस्तानी मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच असहमति तो है, लेकिन व्यापार, प्रवास और सुरक्षा जैसे साझा हितों पर आधारित संबंधों को बनाए रखना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है।
यदि कनाडा अपने आक्रामक रुख पर पुनर्विचार करता है और ट्रूडो अपनी घरेलू राजनीति से ऊपर उठकर इस मामले को सुलझाने का प्रयास करते हैं, तो यह दोनों देशों के लिए बेहतर होगा। कुल मिलाकर, भारत और कनाडा के बीच संबंधों में मौजूद असहमति और मतभेदों के बावजूद, दोनों देशों के लिए कूटनीति और संवाद की राह पर चलना जरूरी है, ताकि दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखा जा सके।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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