भारत और अमेरिका को बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद एक संयुक्त रणनीति की आवश्यकता है ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला किया जा सके। चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियों से अधिकांश पड़ोसी देशों को अपने पाले में ले लिया है, और बांग्लादेश भी इस सूची में शामिल हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और अमेरिका को बांग्लादेश के प्रति अपनी नीति में बदलाव करना होगा, क्योंकि यह देश अब चीन और पाकिस्तान की ओर झुक रहा है, जिससे दक्षिण एशिया की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का आरोप है कि उनकी सरकार को अस्थिर करने में अमेरिका का हाथ है। भारत को नई बांग्लादेशी सरकार से दूरी नहीं बनानी चाहिए, भले ही उसका नेतृत्व भारत-विरोधी मानी जाने वाली खालिदा जिया ही क्यों न करें । क्योंकि खालिदा जिया और कट्टरपंथियों के सत्ता में आना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
भारत को अपनी ‘पड़ोसी पहले’ नीति में बदलाव की जरूरत है। चीन लगातार सीमा पर तनाव पैदा करने के साथ भारत-विरोधी ताकतों को समर्थन देकर भारत को कमजोर करने की कोशिश करता आ रहा है। भारत को स्वतंत्र विदेश नीति पर जोर देना चाहिए, लेकिन कई क्षेत्रों में अमेरिका के साथ सहयोग बढ़ाना भी जरूरी है। भारत और बांग्लादेश के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर जो बातचीत चल रही थी, अब अनिश्चित हो गई है।
हालाँकि शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद उत्पन्न अराजकता के बीच, नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस का अंतरिम सरकार का नेतृत्व संभालना नई उम्मीदें जगाता है। 84 वर्षीय यूनुस की निर्विवाद लोकप्रियता और गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि उन्हें इस चुनौतीपूर्ण समय में एक विश्वसनीय विकल्प बनाती है। उनकी प्राथमिकताएं देश में शांति बहाल करना, कानून और व्यवस्था में सुधार लाना, और कमजोर समूहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होंगी। यूनुस के नेतृत्व से उम्मीद है कि बांग्लादेश कट्टरपंथियों और सेना के प्रभाव से मुक्त होकर एक नई शुरुआत की ओर बढ़ सकेगा।
भारत के साथ बेहतर संबंधों की आवश्यकता पर जोर देते हुए, यूनुस ने हिंसा के क्षेत्रीय प्रभावों के प्रति आंदोलनकारियों को चेताया है। भारत के लिए भी, बांग्लादेश में स्थिरता महत्वपूर्ण है, और यूनुस का नेतृत्व दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने में सहायक हो सकता है। यूनुस के प्रगतिशील और उदार दृष्टिकोण से बांग्लादेश के लोकतांत्रिक संस्थानों में सुधार, स्वतंत्र चुनाव, और चरमपंथियों पर अंकुश लगाने की उम्मीद है। उनके नेतृत्व की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वे देश को किस हद तक अराजकता से निकालकर सामान्य स्थिति में ला सकते हैं।
पर क्षेत्र में चीन की दख़लंदाज़ी को रोकने के लिये भारत और अमेरिका को संयुक्त रूप से एक कार्ययोजना बनानी चाहिए, जिसमें रणनीतिक साझेदारी, क्वाड सहयोग, व्यापार एवं बुनियादी ढांचे के विकल्प, संयुक्त सैन्य अभ्यास, और कूटनीतिक सहयोग शामिल हो, ताकि चीन के प्रभाव को कम किया जा सके और एक स्वतंत्र, मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित किया जा सके।
( राजीव खरे अंतरराष्ट्रीय ब्यूरो)
Leave a comment