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बुलडोजरी न्याय – न्याय या अन्याय और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्यों में बुलडोजर के उपयोग पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जिसमें बिना न्यायिक प्रक्रिया के संपत्तियों को ध्वस्त करने की प्रथा की कड़ी आलोचना की गई है। भाजपा शासित राज्यों में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में, गंभीर अपराधों और अवैध कब्जों के खिलाफ बुलडोजर का तेजी से उपयोग हो रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून और न्याय के मानकों के खिलाफ बताया है।

भाजपा शासित प्रदेशों में बुलडोजर का उपयोग विवादास्पद बन गया है। समर्थकों का मानना है कि यह कानून व्यवस्था बनाए रखने का एक आवश्यक कदम है, जिससे अपराधियों और अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होती है। उनका तर्क है कि इससे अपराधियों के मन में कानून का डर पैदा होता है और अनधिकृत गतिविधियों पर काबू पाया जा सकता है।

वहीं, आलोचक इसे संविधान और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन मानते हैं। खासकर यूपी में, जहां ज्यादातर मामलों में मुस्लिम आरोपियों के घरों पर ही बुलडोजर चलाया गया, इसे धार्मिक भेदभाव का उदाहरण माना जा रहा है। यह कार्रवाई अमानवीय और अन्यायपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि इससे निर्दोष परिवार के सदस्य भी प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, इस तरह की कार्रवाइयों का राजनीतिक दुरुपयोग होने की संभावना रहती है, जिससे समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिना न्यायिक प्रक्रिया के संपत्ति को नष्ट करना न केवल अवैध है बल्कि अमानवीय भी है। भले ही व्यक्ति दोषी हो, न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त करना अनुचित है। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि अवैध निर्माण को संरक्षित नहीं किया जा सकता, लेकिन कानून की सभी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।

इस संदर्भ में, सरकार पर पक्षपात का आरोप भी लगता रहा है, जिससे यह सवाल उठता है कि यह कार्रवाई कानूनी और निष्पक्ष है या फिर एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने का प्रयास। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तरह की कार्रवाइयों पर सवाल उठाए हैं, जहां बिना न्यायिक प्रक्रिया के सीधे बुलडोजर का उपयोग किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी हितधारकों से सुझाव मांगे हैं ताकि बुलडोजर के इस्तेमाल के लिए एक समान और तार्किक दिशा-निर्देश तैयार किए जा सकें, जो पूरे देश में लागू हो सकें। अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल चुनावी या अन्य लक्षित समयों में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि यह एक निरंतर प्रक्रिया होनी चाहिए।

इस निर्णय का उद्देश्य प्रशासनिक अधिकारियों को राजनीतिक दबाव में आकर नहीं, बल्कि विवेक और न्याय के सिद्धांतों के साथ निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि अवैध निर्माण हटाने की प्रक्रिया धर्म, जाति, और राजनीति से परे हो और इसका उपयोग निहित स्वार्थों के लिए न किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख देश में कानून के शासन और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो प्रशासन को उनकी जिम्मेदारियों और सीमाओं के प्रति सचेत करता है।

कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर के उपयोग पर चिंता जताते हुए इसके लिए देशव्यापी दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि कानून का पालन सुनिश्चित हो और मानवाधिकारों का हनन न हो। निष्पक्षता और न्याय की दृष्टि से, सभी आरोपियों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, ताकि समाज में न्याय और समरसता बनी रहे।

( राजीव खरे- राष्ट्रीय उप संपादक)

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