पटना
बिहार में एक सप्ताह के भीतर तीन पुलों का गिरना सार्वजनिक निर्माण में व्याप्त भ्रष्टाचार और धांधलियों को उजागर करता है। इन घटनाओं से ठेकेदारों और उन्हें संरक्षण देने वाले राजनेताओं पर सवाल उठते हैं। मोतिहारी में डेढ़ करोड़ की लागत से बनने वाला पुल एक दिन पहले ही ढला था और रात में गिर गया। सिवान में गंडक नहर पर बना तीस फीट लंबा पुल, जो चार दशक पुराना था, भी ध्वस्त हो गया। अररिया में बारह करोड़ की लागत से बना पुल भी गिर गया था। पिछले पांच सालों में बिहार में दस पुल निर्माण के दौरान या उसके बाद गिर चुके हैं।
पिछले साल भागलपुर में गंगा नदी पर बन रहे पुल के गिरने पर भी हंगामा हुआ था, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ। पुलों के लगातार गिरने से स्पष्ट है कि घटिया सामग्री का उपयोग हो रहा है और ऊपर से नीचे तक कमीशनखोरी का खेल चल रहा है। निर्माण कार्य में गुणवत्ता की निगरानी करने वाला तंत्र नहीं है, जिससे यह समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
यह जरूरी है कि सार्वजनिक निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित हो और समय पर पूरा हो। योजनाओं को इस तरह डिजाइन किया जाए कि कई पीढ़ियों को लाभ मिल सके और दुर्घटनाएं न हों। बिहार के पुल उद्घाटन से पहले ही गिर रहे हैं, जो मोटे मुनाफे के लिए घटिया सामग्री के उपयोग को दर्शाता है। निगरानी करने वाले अधिकारी भी निष्क्रिय हैं, जिससे निर्माण कार्यों में आपराधिक तत्वों की दखल बढ़ गई है।
भारी यातायात के दबाव के कारण पुल अपने ही बोझ से गिर रहे हैं। यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार की भूमिका इसमें प्रमुख है। सार्वजनिक निर्माण की गुणवत्ता की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। राजनेताओं और दबंगों के गठजोड़ से अयोग्य लोगों को ठेके मिल जाते हैं, जिनके पास बड़े निर्माण कार्यों का अनुभव नहीं होता और गुणवत्ता के प्रति कोई प्रतिबद्धता नहीं होती।
यह नागरिकों के जीवन से जुड़ा गंभीर मसला है। सरकार और संबंधित एजेंसियों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। यदि निर्माण कार्य यूं ही ध्वस्त होते रहे तो सरकारी निर्माण कार्य की लागत बढ़ जाएगी और राजस्व का नुकसान होगा। सार्वजनिक निर्माण में भ्रष्टाचार रोकने के लिए सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है।
( राजीव खरे राष्ट्रीय ब्यूरो)
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