छत्तीसगढ़
“देखो हमारे ख्वाब कैसे बिखर गए,
हाथ में टिकट था मगर हम घर नही गए ।
सफर शुरू किया था कि घर जायेंगे,
ये किसने सोचा था की मर जायेंगे ।
रो रहा था बहुत परेशान था वह सबसे पूछ रहा था,
एक बाप लाशों के ढेर में अपना बेटा ढूँढ रहा था।”
बालासोर रेल दुर्घटना में तीन ट्रेनों की भिड़ंत में सैंकड़ों लोगों की दुखद मृत्यु हो गई। यह इस सदी की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना है। मृतकों की संख्या के संबंध में सरकारी आँकड़ों और बचाव करने वाले लोगों के दावों में बहुत अंतर है। रेल मंत्री ने यह दावा किया कि बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन में किसी की मौत नहीं हुई है। पर उस ट्रेन के कई यात्री जो अभी तक घर नहीं पहुँचे, उनके परिजनों की परेशानी रेल मंत्री के दावे पर सवालिया निशान लगा रही है। सभी चश्मदीद गवाहों का दावा है कि मौतें ज्यादा हुई हैं।रेल मंत्री से एक्टिव होने की अपेक्षा थी ,पर वो रीएक्टिव दिखे।रेलवे ट्रैक के बाजू में दल बल के साथ बैठ कर यातायात बहाल कराने के दौरान मीडिया ने भी उनकी मेहनत पर ज़्यादा फ़ोकस किया, इससे उन पर ऐसे समय में हेड लाइन मैनेज करने के भी आरोप लग रहे हैं। यातायात बहाल कराया उसके लिये उनको साधुवाद पर दुर्घटना की ज़िम्मेवारी कौन लेगा।
यातायात तो बहाल हो गया पर रेस्क्यू मैनेजमेंट बहुत सी बातों पर सवालिया निशान लगा गया।
तस्वीरों में हमने देखा लाशें खुली पड़ी थीं। ज्यादातर के शरीर पर कपड़े तक नहीं थे। 5 तारीख को शवों को ले जाया गया। हालाँकि ऐसे समय में करना कठिन रहता है पर स्थानीय प्रशासन को लाशों के सम्मान के लिये कपड़े का इंतज़ाम करना चाहिए था। बहुत सी लाशें पास के जिस स्कूल में रखीं थीं । आज भी वहाँ खून पड़ा हुआ है। जल्दबाजी में एक शव का हाथ वहाँ पड़ा पाया गया। स्कूल के बरामदे में खून बिखरा पड़ा था और कमरे बदबू से भरे थे। लोगों को वहाँ डर लग रहा है लोग उस स्कूल में बच्चों को भेजना नहीं चाह रहे । शासन से बच्चों के लिये नये स्कूल भवन की व्यवस्था चाह रहे हैं।
इस सदी की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना क्या महज एक हादसा है या इंसानी गलती या कंट्रोल उपकरणों की ख़राबी या फिर कोई साजिश ? रेल मंत्री ने कहा है कि उनको १००% आशंका है कि बालासोर में हुई रेल दुर्घटना किसी साज़िश के कारण हुई है।बक़ौल रेल मंत्री रेल प्रणाली में इतने संयोग हो ही नहीं सकते कि तीन ट्रेनें एक साथ भिड़ जाऐं ।रेल मंत्री के दावे बहुत से लोगों को ज़्यादा सही नहीं लग रहे । ऊपर से उनके पक्ष में टेलीविजन पर अनेक विशेषज्ञ जिस ढंग से लोहे से भरी मालगाड़ी के वजन और रेलवे सिग्नलिंग प्रणाली की फेल्योर प्रूफ तकनीक की व्याख्या कर रहे हैं उससे तो सरकार की मंशा पर ही संदेह पैदा होने लगा है।
बहरहाल केंद्र सरकार इस घटना की सीबीआई जाँच करा रही है । लगभग पौने तीन सौ लोगों की जान लेने वाली इस रेल दुर्घटना की जांच जब खुद रेल मंत्रालय और भारत सरकार रेलवे के विशेषज्ञों की जगह सीबीआई से करवा रही है, तो सवाल अपने आप उठने लगे हैं । सूत्रों के अनुसार सीबीआई IPC की धारा 337, 338, 304-A, 34 तथा रेलवे की धारा 153, 154, एवं 175 के तहत कार्यवाही कर रही है ।
आश्चर्यजनक यह है कि इन में से सिर्फ़ 153 धारा में सब से ज्यादा 5 साल की सजा का प्रावधान हैं। बाक़ियों में 2 साल या उस से कम ! हालाँकि धारायें पूर्वानुमान से नही लगाई जा सकतीं । जांच के समय साक्ष्य के आधार पर धारायें परिवर्तित भी होती हैं। कई बार न्यायालय में भी भी धारा बदलती हैं । अतः इस स्टेज मे पूरा निष्कर्ष नहीं लगाया जा सकता इसलिये अब इस पर टिप्पणी करने के स्थान पर इसे पाठकों के विवेक और समय पर छोड़ना ही उचित होगा।
रेलवे यार्डों में कई लाइन होती हैं जिन्हें आपस में जोड़ने के लिए ‘पाइंट्स’ होते हैं। इन पाइंट्स को चलाने के लिये हर पाइंट पर एक मोटर लगी होती है। इसके बाद आते हैं सिग्नल। सिग्नल के द्वारा इंजन के ड्राइवर को अनुमति दी जाती है कि वह अपनी ट्रेन के साथ रेलवे स्टेशन के यार्ड में प्रवेश करे।पाइंटस् और सिग्नलों के बीच में एक लाकिंग इस प्रकार से होती है कि पाइंटस् सेट होने के बाद जिस लाइन का रूट सेट हुआ हो उसी लाइन का सिगनल आये। इसी लाकिंग को सिगनल इंटरलॉकिंग कहते हैं।
बालासोर स्टेशन में कुल चार लाइनें हैं। इनमें से दो मेन लाइन और दो लूप लाइन हैं ।मेन लाइन में टर्न नहीं होता, वो सीधे जाती है, जबकि लूप लाइन इसी लाइन के साइड में होती है । जब ये दुर्घटना हुई, उस समय बालासोर स्टेशन के दोनों लूप लाइनों पर मालगाड़ियाँ खड़ी थीं । रिपोर्ट्स के अनुसार हावड़ा से आ रही कोरोमंडल एक्सपेस के ड्राइवर को ग्रीन सिग्नल मिल चुका था, याने उसे मेन लाइन पर सीधे जाना था । लेकिन कोरोमंडल अचानक लूप लाइन पर चली गई, जहां पहले से ही लोहे से भरी मालगाड़ी खड़ी थी। रेलवे बोर्ड के अनुसार कोरोमंडल के ड्राइवर की कोई गलती नहीं थी और दुर्घटना के बाद बेहोश होने से पहले उसने जो आखिरी लाइन कही थी, वो यही थी कि सिग्नल ग्रीन था ।बाद में अस्पताल में उसकी मृत्यु भी हो गई । याने प्रथम दृष्टया इस दुर्घटना का कारण सिग्नल फ़ाल्ट व इंटरलॉकिंग की समस्या लगता है। सिग्नल ग्रीन था, एक्सप्रेसों के ड्राइवर अनुभवी होते हैं यदि लूप लाइन पर जाना था तो सिग्नल यलो होता ।
बहरहाल दुर्घटना के वास्तविक कारणों का पता लगाया जाना बहुत ज़रूरी है ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को यथासंभव टाला जा सके। पर यक्ष प्रश्न देश के सामने बजट के उपयोग का है , कि बरसों से भारत की गरीब व मध्यम वर्ग की जनता के आवागमन की साथी हमारी रेलवे की प्राथमिकता क्या होनी चाहिये ।
( राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़ एवं उप राष्ट्रीय संपादक )
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