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प. पू आचार्य श्री जितेन्द्रसूरी जी महाराजा की 18वीं पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा का आयोजन हुआ

इंदौर मध्य प्रदेश जिसमें साधु भगवंतों एवं विशिष्ठ अतिथियों ने अपने-अपने विचार प्रकट किए। सभा का संचालन मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने किया।
1. श्री एकाग्ररत्नविजयजी म.सा. ने कहा कि, एक गुरु अपने सपने को योग्य शिक्षक से संपन्न करवाता है जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण श्री जितेंद्रसूरी महाराजा थे। आचार्य श्री ने कई विपरीत परिस्थितियों में भी 400 मंदिरों की प्रतिष्ठा करवाई थी। वे प्रतिष्ठाकारक एवं दीक्षाकारक थे। उनके समय में अनेक शासन प्रभावना हुई थीं।
2. श्री तीर्थंकररत्नविजयजी म.सा. ने अपने विचार व्यक्त किये कि, एक भव्य इमारत के मूल में उसकी नींव होती है और एक विशाल वृक्ष के मूल में मजबूत जड़ें होती है परंतु दोनों दिखाई नहीं देते हैं। इसी प्रकार से परम पूज्य गुरुदेव संघ के आभारी थे। उनके तीन मुख्य गुण थे (1) हृदय में उदारता, (2) वचन में माधुर्यता एवं (3) मन में चातुर्य।
3. श्री आनंदचन्द्रसागर जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में कहा कि, एक ऐसे महापुरुष जिन्होंने अपने जीवन का एक-एक लम्हा और रक्त की एक-एक बूंद शासन को समर्पित कर दी आज उनके गुणानुवाद का अवसर प्राप्त हुआ है। आत्मा जब तक अकेली है तब तक उसकी वैल्यू नहीं है परंतु जैसे ही वह परमात्मा से जुड़ती है तो मूल्यवान हो जाती है। प. पू आचार्य श्री जितेन्द्रसूरी जी महाराजा उदारता, वात्सल्य, एवं अनंत ज्ञान के मालिक थे। जब धर्म की दृष्टि से मेवाड़ बहुत पीछे था तब वे सभी तरह की समस्याओं का निर्भीकता से सामना करते हुए आगे बढ़ते गये और धर्म को स्थिर किया। उनको शरीर के प्रति कोई ममत्व नहीं था एवं मूल मंत्र था “जो सहन करे वह साधु”।
4. पद्मभूषणरत्नसूरीश्वरजी म.सा ने बताया कि, मेवाड़ में धर्म प्रभावना का बीड़ा गुरु भगवंत ने उठाया था। वहाँ पर चमत्कार को नमस्कार था। उन्होंने वहाँ पर एक मंदिर की प्रतिष्ठा करवायी और उस गाँव में खरे पानी कुआं जो मंदिर प्रतिष्ठा के बाद मीठे पानी का कुआं हो गया। इस क्षेत्र में लोगों को समझाकर कई मंदिरों की प्रतिष्ठा करवायी एवं धर्म की स्थापना की।
5. श्री ऋषभरत्नविजयजी ने आचार्य श्री के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, उनके जीवन में क्या नहीं था, वे 84 वर्ष की आयु में भी बिल्कुल स्वस्थ थे शरीर पर कोई सल नहीं था। सदा प्रसन्न मुद्रा में रहते थे व उनमें अनेक गुणों का सम्मेलन था।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘आचार्य जितेन्द्रसूरी की पहचान, प्रेम,करुणा,तप और ज्ञान”
इस अवसर पर श्री राजेश जैन युवा ने गुणानुवाद में कहा कि, आज श्री जितेन्द्रसूरीजी का स्मृति दिवस है। उनका संदेश था ‘जो त्याग में है वो भोग में नहीं’ । सदियों बीतने के बाद ऐसे महापुरुष जन्म लेते हैं। अल्प आयु में ही अपने आप को जिनशासन को सौंप दिया था।

राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

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