नई दिल्ली
भारत की परीक्षा प्रणाली को दशकों से उच्च मान्यता प्राप्त है, इसे कठिन लेकिन निष्पक्ष माना जाता रहा है। भारतीय छात्रों ने इसके माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। हालांकि, हाल के वर्षों में प्रश्नपत्र लीक होने के मामलों ने इस प्रतिष्ठित प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रमुख परीक्षाओं, जैसे आईआईटी और नीट से लेकर विभिन्न राज्य परीक्षाओं तक, लीक होने के मामलों ने संस्थानों की साख को नुकसान पहुंचाया है।
विशेष रूप से 2024 की नीट-यूजी परीक्षा में अनियमितताओं के आरोप लगे हैं, जिसमें 67 उम्मीदवारों को शत-प्रतिशत अंक मिले, जबकि पिछले पांच वर्षों में केवल तीन छात्रों ने पूर्ण अंक प्राप्त किए थे। इस स्थिति से परीक्षार्थियों में भारी रोष उत्पन्न हुआ है और उन्होंने पुन: परीक्षा की मांग करते हुए कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। कोर्ट ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
इसके अलावा, कोचिंग सेंटरों की भूमिका और अंग्रेजी भाषा के वर्चस्व को लेकर भी सवाल उठे हैं। विभिन्न राज्यों, खासकर दक्षिण भारत, ने क्षेत्रीय भाषाओं के छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव के मुद्दे पर आवाज उठाई है। तमिलनाडु सरकार ने इस संबंध में एक कमेटी गठित की है, जो राज्य की भाषा के छात्रों को हो रहे नुकसान की जांच कर रही है।
इस परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए, किसी भी प्रकार की अनियमितताओं को दूर करना आवश्यक है। नीति-निर्माताओं को इन समस्याओं का समाधान करना चाहिए ताकि छात्रों का व्यवस्था पर विश्वास बना रहे और भारतीय प्रतिभाओं का विदेश पलायन रोका जा सके। निष्पक्ष जांच और सुधार के बिना, यह स्थिति लाखों छात्रों के भविष्य को खतरे में डाल सकती है और देश के हित में नहीं हो सकती है।
(राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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