इंदौर मध्य प्रदेश प्रभु के द्वारा बताया गया एक सिद्धांत है सामायिक जिसको करने से अनेक कर्मों का क्षय होता है। सामायिक पारते समय एक स्रोत बोला जाता है “दस मन के, दस वचन के, बारह काया के ये बत्तीस दोषों में से कोई दोष लगा हो ते सब मन वचन काया से मिच्छामिदुक्कडं”। अर्थात् सामायिक/प्रतिक्रमण करते समय 32 दोषों में से कोई दोष लगने की क्षमा मांगना। मुनिराज ने यहाँ पर इन 32 दोषों का विस्तृत उल्लेख किया है।
10 मन के दोष
(1) शत्रु देखकर मन ही मन द्वेष करना, (2) अविवेक पूर्ण (सांसारिक) बातों का चिंतन करना, (3) तत्व चिंतन नहीं करना, (4) मन में उद्वेग (व्याकुलता) रखना, (5) धर्म क्रिया से यश की आकांक्षा रखना, (6) देव, गुरु एवं धर्म का विनय नहीं करना, (7) मौसम, जीवों आदि से भयभीत होना, (8) व्यवसाय का विचार करना, (9) धर्म क्रिया के फल में संदेह करना एवं (10) धर्म क्रिया के फल की अभिलाषा करना।
10 वचन के दोष
(1) कटु वचन बोलना, (2) आवाज निकालना (हूँ,हाँ,ऊँ), (3) पाप के काम का आदेश देना, (4) बढ़-बढ़ करना, (5) वाद-विवाद एवं झगड़ा करना, (6) स्वागत करना, (7) गाली देना, (8) बच्चों को खिलाना- पिलाना, (9) वि कथा (सांसारिक चर्चा) करना एवं (10) हँसी मज़ाक करना।
12 काया के दोष
(1) बार-बार आसान घुमाना, (2) चारों ओर देखना, (3) पाप का कम करना, (4) आलस्य एवं प्रमाद करना, (5) अविवेक से बैठना, (6) दीवार का सहारा लेकर बैठना, (7) शरीर से मैल उतारना, (8) खुजली करना, (9) पैर पर पैर चढ़ाकर बैठना, (10) जन्तु के भय से शरीर ढंकना, (11) इच्छा से अंगों का प्रदर्शन करना एवं (12) नींद लेना।
सामयिक एवं प्रतिक्रमण करते समय ऊपर दिये गये दोषों का ध्यान में रखना आवश्यक है। हमारा यह पूर्ण प्रयास हो कि कोई भी दोष न लगे।
राजेश जैन युवा ने बताय की –
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘दोष रहित धर्म क्रिया, मोक्ष कि सच्ची प्रक्रिया”
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

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