मुंबई।
कहा जाता है कि कलाकार कभी मरता नहीं है। वह अपनी कला के माध्यम से लोगों के दिलों में जीवित रहता है। तीन साल पहले 29 अप्रैल, 2020 को अभिनेता इरफान का मुंबई में एक लाइलाज बीमारी के चलते आकस्मिक निधन हो गया था।
राजस्थान के जैसलमेर की थार मरुभूमि की पृष्ठभूमि पर गढ़ी गई फिल्म की कहानी लोककथा से प्रेरित है। एक प्राचीन मिथक के अनुसार बिच्छू का डंक चौबीस घंटे से भी कम समय में इंसान की मृत्यु का कारण बन सकता है। उसके जीवित रहने का एकमात्र उपाय यह है कि उसका इलाज करने वाला खास गाना गाए जो बिच्छू के जहर के प्रभाव को कम करता है।
बिच्छू के डंक का यह कौशल आदिवासी समुदाय की नूरन (गोलशिफतेह फरहानी) ने अपनी अम्मा (वहीदा रहमान) से सीखा है, जिसने उन्हें अपने गांव में सबसे अधिक मांग वाला पेशेवर बना दिया है। नूरन डंक की खबर मिलने पर इलाज के लिए जाती है।
ऊंट व्यापारी आदम (इरफान खान) उससे निकाह करना चाहता है। फिर एक वीभत्स घटना की वजह से नूरन अपने गाने से दूर हो जाती है। गांव के लोगों द्वारा ठुकराए जाने के बाद वह आदम से शादी करती है। शादी करने के बाद नूरन को अपने साथ हुई घटना का सच पता चलता है। क्या वह प्रतिशोध लेगी? कहानी इस संदर्भ में है।
‘द सांग ऑफ स्कॉर्पियन्स’ का निर्देशन अनूप सिंह ने किया है। वह इससे पहले फिल्म ‘किस्सा-द टेल ऑफ अ लोनली घोस्ट’ में इरफान को निर्देशित कर चुके हैं। अनूप ने जिस तरह से नूरन और आदम के किरदारों को गढ़ा है उससे दर्शकों के लिए उनके उद्देश्यों को समझने या उनके व्यक्तित्वों के नीचे छिपी परतों का पता लगाने की गुंजाइश बहुत कम जगह छोड़ी है।
दरअसल, यह फिल्ममेकर की पसंद होती है कि वह अपने किरदारों की कितनी जानकारी देना चाहता है, जिससे दर्शकों की उनमें दिलचस्पी बनी रही। एकतरफा प्रेम, प्रतिशोध, त्याग और समर्पण की यह कहानी धीमी गति से आगे बढ़ती है। हालांकि, आदम के बैकग्राउंड की पूरी जानकारी न होने से उसके व्यक्तित्व को समझना थोड़ा मुश्किल है।
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