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नई दिल्ली में साहित्यिक संगोष्ठी: ‘तिराहे पर तीन’ उपन्यास पर विचार-विमर्श –

नई दिल्ली – सुप्रसिद्ध लेखिका रजनी गुप्त के उपन्यास ‘तिराहे पर तीन’ पर एक साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने उपन्यास की विशेषताओं और उसमें उठाए गए महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन विशाल ने किया। लेखिका गीताश्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि रजनी गुप्त ने कथा-साहित्य में नए प्रतिमान गढ़े हैं। ‘तिराहे पर तीन’ तीन पीढ़ियों की स्त्रियों की कहानी कहता है और स्त्री स्वतंत्रता एवं समानता से जुड़े कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। उन्होंने कहा कि यह रचना स्त्री-पीड़ा की कथा कहने के साथ-साथ महिलाओं को अपने शोषण के खिलाफ लड़ने की जिद और जुनून भी प्रदान करती है। शोभा अक्षर ने उपन्यास की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें जातिवाद, विकलांग विमर्श, स्त्री सशक्तिकरण और सेंसुअलिटी जैसे चार महत्वपूर्ण विमर्श उभरकर सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में नारीवाद रेडिकल फेमिनिज़्म से आगे बढ़कर एक व्यापक दृष्टिकोण की ओर अग्रसर हो रहा है।
स्वयं लेखिका रजनी गुप्त ने अपनी रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्हें बेबाकी पसंद है, चाहे वह जीवन में हो या लेखन में। उन्होंने बताया कि ‘तिराहे पर तीन’ की स्त्रियां कमजोर नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर हैं और अपने संघर्षों के माध्यम से जीवन के यथार्थ को उजागर करती हैं। कार्यक्रम में उपस्थित साहित्य प्रेमियों ने उपन्यास के विचारोत्तेजक विषयों और इसकी सशक्त प्रस्तुति की सराहना की। अंत में मीरा जौहरी ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद किया।

रिपोर्ट – चंद्रशेखर चतुर्वेदी

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