इंदौर मध्य प्रदेश मुनिराज श्री तीर्थंकररत्नजी ने पहले आगम आचारंग सूत्र पर प्रवचन भाग-2 प्रस्तुत किया। जैन धर्म पाने के बाद धर्म के प्रति वफादारी और ईमानदारी रखना जरूरी है। आचारंग सूत्र नकारात्मक सोच को समाप्त कर सकारात्मक सोच में बदलने का कार्य करता है।
1. भविष्य में दुःख से दुखी नहीं बनना है तो क्या करना चाहिए। No formality, only feeling धर्म औपचारिकता से न करके भाव पूर्वक करना चाहिए। बिना भाव के चाहे कितनी माला गिन लो, बिना चित्त स्थिर किये सामायिक/प्रतिक्रमण कर लो, बिना मन से कितनी भी केसर पूजा कर लो किन्तु बिना भाव के आत्म कल्याण संभव नहीं है। साधु-साध्वी को भाव से गोचरी करवाओ।
2. वर्तमान में दुःख से दुखी नहीं बनना है तो क्या करना चाहिए। No reaction, but action जीवन में दुःख आने पर उसको सहन करने की शक्ति होना चाहिए अर्थात् दुःख होने पर तुरंत (reaction) प्रतिक्रिया नहीं होने से दुःख की तीव्रता कम होती है। दुःख आने पर भगवान महावीर के जीवन को अपने सम्मुख रखो (Action)।
3. वफादार एवं ईमानदार बनो। जैन धर्म एवं जिनशासन प्राप्त करने के बाद धर्म, साधु भगवंत एवं समाज के प्रति वफादारी रखो। जिस तरह एक सैनिक अपने देश के लिये वफादार होता है वैसे ही हमको अपने धर्म के प्रति वफादार एवं ईमानदार होना चाहिए। जैन धर्म पालने वाला व्यक्ति परमात्मा को खमासणा देते समय अपना सम्पूर्ण शरीर समर्पित कर देता है। अपने धर्म के प्रति सच्ची वफादारी ईसी में है कि, अपने वेज भोजन के नाम नानवेज भोजन के नाम पर मत रखो, जीव जन्तु की आकृति की वस्तु का सेवन न करें। वेज-नानवेज होटल में भोजन न करें, रात्रि भोजन का त्याग करें। राजेश जैन युवा ने बताया
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘धर्म के प्रति वफादारी में ही समझदारी है”
उपस्थित लोगों के उत्साह वर्धन के लिये लकी ड्रॉ में सोने चांदी के सिक्के दिए गये। इस कार्यक्रम के लाभार्थी श्री शांतिलालजी, दिलीपजी, रविजी एवं रिदांश बांठिया परिवार थे एवं कार्यक्रम में दिलीप शाह, प्रमोद जैन, विकास जैन, गोलू कोठारी, मनीष सकलेचा सहित 500 से ज़्यादा लोग आज के विशेष प्रवचन में उपस्थित हुए।
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी
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