आलेख
भारत देश में लोग मोटा मोटी दो पक्ष में विभाजित हैं। एक वे जो सरकार में होने के कारण संवैधानिक धर्मनिरपेक्ष रहने के लिए बाध्य हैं या विचारवश धर्मनिरपेक्ष हैं दूसरे वे जो धर्मावलंबी हैं किसी ना किसी धर्म-कर्म मर्म पंथ आदि के पक्षधर हैं इन्हें धर्म सापेक्ष भी कह सकते हैं। जिस तरह भारत में किसी भी तरह की सरकार में शामिल व्यक्ति सरकार को किसी भी धर्म पंथ का पक्षपाती नहीं रख सकता उसी तरह किसी धार्मिक पद पर बैठा हुआ व्यक्ति अपने कार्यकलाप धर्मनिरपेक्ष नहीं रख सकता उदाहरण के लिए हिंदू धर्म में शंकराचार्य का पद। वर्तमान समय में इन सब का घालमेल करने की कोशिश हो रही है जो कि बहुत बहुत ख़तरनाक है।
धर्म की परिभाषा तो यह है कि जिसे धारण किया जाए या जो धारण करने योग्य है वह उस व्यक्ति,समूह आदि का धर्म है। धर्मनिरपेक्षता को धारण करना भी एक प्रकार का धर्म है जिसे हम संवैधानिक धर्म कह सकते हैं। दुनिया में मनोविज्ञान की सर्वप्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का नाम “गीता” है जिसमें श्री कृष्ण अर्जुन को हतोत्साहित एवं अवसाद ग्रस्त देखकर उसके अंदर उत्साह भरने के लिए उसके प्रश्नों के जवाब देते हैं। धर्म की चर्चा आने पर श्रीकृष्ण कहते हैं कि हर व्यक्ति का धर्म अलग है वह अपनी प्रवृत्ति के अनुसार जिस कार्य को मनोयोग के साथ करना चाहता है वही उसका धर्म है। अर्जुन युद्ध विद्या में न केवल पारंगत था बल्कि वह उस कार्य को पूरे मनोयोग के साथ करता था ऐसा करने में वह अपनी पूरी कुशलता का इस्तेमाल करता था इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं कि उसका धर्म क्षत्रिय है और क्षत्रिय व्यक्ति अन्याय अनाचार के खिलाफ संघर्ष करता है वह मोहग्रस्त होकर अपना धर्म नहीं छोड़ सकता और यदि वह ऐसा करता भी है तो निश्चय ही पूरे जीवन भर अवसाद ग्रस्त ही रहेगा और अवसाद मिटाने छोटी-मोटी लड़ाईयां करता रहेगा।
आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक दल भी अपने अपने धर्म से बंधे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जिन मूल्यों को लेकर स्वतंत्रता संग्राम रत रही वह उसे नहीं छोड़ सकती छोड़ने पर उसके हाथ अवसाद ही आता है। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी जिन मूल्यों को लेकर अपनी परवरिश करती रही वह उन्हें नहीं छोड़ सकती उन मूल्यों को छोड़ने पर वह भी अवसाद ग्रस्त हो जाएगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत देश किन मूल्यों के आधार पर अपने को विकसित करेगा इसका ढांचा भारतीय संविधान के रूप में तत्कालीन मूर्धन्यों ने गढ़ा और इसका मूलाधार इसकी प्रस्तावना के रूप में बनाया। मूलाधार में परिवर्तन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कभी नहीं कर सकती जब भी वह ऐसा करेगी अवसाद ग्रस्त होकर नष्ट हो जाएगी। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी है जिसका पहला नाम जनसंघ था और जो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सोच के खिलाफ रही है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रजातंत्र के खिलाफ था। जब तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल जी ने भारत की सभी रियासतों को भारतीय भारतसंघ में शामिल होने के लिए राजी कर लिया तब तत्कालीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय राजाओं रियासतों को अलग-अलग बनाए रखने के पक्ष में था उनका वही पुराना राजतंत्रीय सोच था कि जो राजा होता है वह जो कह देता है वही कानून है और उसका कथन ब्रह्म वाक्य है। राजा को सलाह देने के लिए सन्मार्ग पर बनाए रखने के लिए एक पुरोहित हमेशा रहना चाहिए जिसकी बात मानने के लिए राजा बाध्य है।
जब भारत स्वतंत्र हुआ उस समय पूरी दुनिया में प्रजातंत्र का बोलबाला बढ़ रहा था वह आने वाले युग का मेरुदंड बनने जा रहा था कांग्रेस ने आने वाले युग को पहचाना और भारत को पुराने राजतंत्रीय पथ पर चलाये रखने की बजाय नवीन प्रजातंत्र पथ पर चलाने का महान निश्चय किया तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का धर्म प्रजातंत्र कह सकते हैं जिसे उसने धारण किया और भारत को उस पथ का सशक्त पथिक बनाया। तत्कालीन जनसंघ बनाम आज की भारतीय जनता पार्टी पुरातन राजतंत्र की ही पक्षधर है और भारत को उसी पुराने पथ पर ले जाना चाहती है जहां राजा होता था उसकी सलाह के लिए बंधनकारी पुरोहित होता था और राजा का कहा हुआ वाक्य ही ब्रह्म वाक्य हुआ करता था। भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान प्रधानमंत्री इसीलिए तानाशाह कहे जाते हैं क्योंकि वह जो सोचते हैं जो कहते हैं वही कानून है और वह स्वयंभू राजा अपने आपको मानते हैं। पुरातन काल में राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि भी मानते थे इसलिए नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अपने आप को ईश्वर का भेजा हुआ बताया जिसे आज की भाषा में नान- बायोलॉजिकल कहते हैं अर्थात उनका जन्म किसी कोख से नहीं हुआ ना तो माता की और ना ही किसी परखनली में।भारत को उसी मनमाने राजतंत्रीय पथ पर भारतीय जनता पार्टी ले जाना चाहती है और उसका यही धर्म है जिसे उसने धारण किया हुआ है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय जनता पार्टी के लिए अधर्म है जिसे वह धारण नहीं कर सकती।
इन दो विपरीत विचारधाराओं की रस्साकसी में भारत घायल हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी भारत को पुरातन काल में ले जाना चाहती है वहीं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत को आगे बढ़ते विश्व के साथ कदम मिलाते हुए आगे ले जाना चाहती है। विश्व पटल पर भारत की पहचान एक सशक्त सर्वव्यापी प्रजातांत्रिक देश के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है इसलिए भारतीय जनता पार्टी की मजबूरी है कि उसकी सरकार इस मत के साथ खड़ी दिखे पर यह मात्र दिखावा है शनै:शनै: वह भारत को हिंदू राष्ट्र के व्यमोह में फंसाकर अपनी चिर आकांक्षा पूरी करना चाहती है वह यह समझ ही नहीं पा रही है कि वर्तमान युग में ऐसा सोचना करना भारत राष्ट्र को कमजोर करेगा इतने पीछे ले जाएगा कि फिर कोई भी आकर एक राजा को जीतकर पूरे भारत को अपने अधीन कर लेगा।
निजीकरण के माध्यम से शत प्रतिशत विदेशी निवेश ने भारत के सभी संस्थानों को विदेशियों की झोली में डालने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। किसी भी देश के सभी संस्थान जिसके कब्जे में हों और वहां की सरकार उनके इशारों पर चलती हो तो वह राष्ट्र स्वतंत्र राष्ट्र तो कतई नहीं कहलाएगा। भारत की जनता ने इस खतरे को भांपकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को राजा बनने से रोक दिया विडंबना पर यह है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जनता की आकांक्षा को नहीं पहचाना और यदि वहां किसीने पहचान भी लिया तो वह नितांत अकेला पड़ गया।धर्मनिरपेक्षता के धर्म से बंधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उन कांग्रेसियों से आक्रांत है जो भारतीय जनता पार्टी के घुसपैठिए हैं और जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अंदर तक इतनी पैठ बना ली है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता अपनेआप को हिंदू धर्म के पक्ष में खड़े करते दिखाई देते हैं और यही एक कारण है कि भारतीय जनता के मन में वह अपना स्थान खो रही है। भारतीय जनता कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष मार्ग से डिगता हुआ नहीं देखना चाहती ऐसा करने पर कांग्रेस भारतीय जनता की नजरों में अधार्मिक हो जाती है वह उन मूल्यों से समझौता करती नजर आती है जिन मूल्यों को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मूर्धन्यों ने जी जान लगाकर स्थापित किया था। मीडिया जगत के मूर्धन्य लोग भारत के विद्वत जन दुनिया के प्रजातांत्रिक देश भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस वैचारिक पतन से निराश हैं और चंद शब्दों में अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी की पिच पर खेल रही है जहां वह कभी सफल नहीं हो सकती क्योंकि वह उस पिच की खिलाड़ी है ही नहीं।
सन् 1977 में भारत की जनता ने जब अजेय समझी जाने वाली इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनाव में हराया तो एक प्रसिद्ध ब्रिटिश चुनाव विश्लेषक ने कहा कि भारत के वोटर को समझना बहुत मुश्किल है।काश् भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारतीय वोटर के मन को समझ पाती।भारत का वोटर जहां एक ओर अपनी धार्मिक मान्यताओं से बंधा है वहीं वो भारत सरकार और उसके अंग अवयवों को धर्मनिरपेक्ष आचरणों से मजबूती से बंधा देखना चाहती है।भारत की जनता धर्म अधर्म और धर्मनिरपेक्षता को जितनी अच्छी तरह से समझती है उतना बड़े-बड़े समझदार नहीं समझते।
इसी समझदार जनता ने भाजपा के दस वर्षीय आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री को एनडीए का दो बैसाखी के सहारे चलने वाला प्रधानमंत्री बना कर भाजपाई हिंदू एजेंडे में धर्मनिरपेक्षता का छौंक लगा कर उसे जीरा फ्राई कर दिया। सकल राजनीति विज्ञान के स्वनिर्मित विषय के स्नातकोत्तर डिग्रीधारी दस वर्षीय प्रधानमंत्री को समझ में आ गया हिंदूवाद से जितना हासिल किया जा सकता था मिल गया, दाहिना हाथ जितना वजन उठा सकता था उठा लिया अब बायें हाथ का सहारा पदभार उठाने जरूरी है इसलिए महोदय पहुंच गये रूस और बताये कि काली टोपी नहीं सर पर लाल टोपी रूसी याद रखना है।रूसी पुतिन बाबा ने टोपी पहनाने के पहले उसकी कीमत थोरियम धातु की बढ़ी खेप पाकर ली।दस वर्षीय ने ऐलान किया कि परमाणु ऊर्जा पर और आगे के समझौते इस यात्रा की उपलब्धि है रूस हमें और अधिक यूरेनियम देगा।
पाठकों को शायद पता हो कि परमाणु ऊर्जा सस्ते में बहुत आसानी से बहुत बहुत कम विकरण में थोरियम से प्राप्त होती है। पूरी दुनिया में थोरियम का जो कुल भंडार अभी तक खोजा गया है उसका दो तिहाई भारत में रामसेतु के पास कन्याकुमारी में समुद्र तट पर बिखरा पड़ा है और मनमोहन सिंह ने *अमेरिका भारत परमाणु संधि*के माध्यम से इस थोरियम के सहारे भारत को विश्व की सर्वशक्तिमान शक्ति बनने से रोक दिया संधि के कारण अमेरिकी सहमति के बिना थोरियम से परमाणु शक्ति प्राप्त करना भारत के लिए संभव नहीं रहा। परमाणु संधि की शर्तें सिर्फ प्रधानमंत्री की जानकारी में रहती हैं। मनमोहनसिंह ने रूस फ्रांस जर्मनी को विश्वास दिलाया था कि इस संधि से उन्हें भी फायदा होगा इसीलिए ये सब देश भारत के प्रधानमंत्री को चने के पेड़ पर चढ़ाये रखते हैं।अब सोचिए थोरियम के कारण फ्रांस ने राफैल सौदे को मोदी महोदय की इच्छा अनुसार संशोधित किया भारतीय सेना को एक सौ छप्पन राफैल की जगह छत्तीस मात्र ही मिले और कीमत वही 156 वाली….फ्रांस ने छत्तीस का पैसा लिया बाकी रकम बिना जेब वाले कुर्ते में डाल दी।इस सौदे की न्यायिक जांच फ्रांस में चल रही है पर भारत में सीलबंद लिफाफे ने सर्वोच्च न्यायालय में बंद करा दी।खैर…तो किस्सा अब यह है कि हम रूस से बहुत मंहगा यूरेनियम ले रहे हैं और रूस को बहुत सस्ता थोरियम दे रहे हैं बदले में बैसाखियां महोदय की दोनों कांखों में दबी रहेंगीं।यू ट्यूब चैनल में तो तीसरी बार बने के लड़खड़ाने की खबरें गरम रहतीं हैं पर हकीकत यह है कि सब मैनेज है और पुराने मैनेजर ‘भागवत’ कथा सुनाने के अलावा कुछ करने लायक नहीं रहे।कुल मिलाकर हिंदूवादी मलाई जितनी निकल सकती थी निकल चुकी अब टोंड दूध चाय की दुकान के काम आता रहेगा। धर्मनिरपेक्षता नीतीश नायडू बैसाखी नाम से कांख में घुसी हिंदू पसीने की बू सूंघ रही है।दस वर्षीय ने वादा किया है कि बस पंद्रह अगस्त तक नाक बंद किये रहो इसके बाद हम पसीना बहाना बंद कर देंगे वैसे भी पछत्तर बरस की उमर राष्ट्रपति पद पर ज्यादा भली लगेगी भाग दौड़ बंद तो पसीना भी बंद।। बैसाखी चाहे तो नई कांख ढूंढ़ ले चाहे तो चेले का सहारा बनी रहे।।महोदय का ट्रंप कार्ड “हिंदू धरम” कभी अधर्म तो कभी निरपेक्ष रह दल-दल में कमल खिलाने में कभी पीछे नहीं रहेगा।धर्म अधर्म धर्मनिरपेक्षता सकल राजनीति के अंग अवयव मात्र हैं और रहेंगे।
( लेखक श्री सुधीर कुमार खरे, मोबाइल:-9404038766. कटनी का एक जाना पहचाना नाम हैं । ये गायत्री परिवार से जुड़े हैं एवं “मन आंदोलन” के संयोजक हैं)
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