सुनीता विलियम्स के धरती पर वापस आने की खबर सुनते ही देश में हड़कंप मच गया। मीडिया वाले ऐसे तैयार हो गए, मानो चंद्रयान-3 नहीं, बल्कि उनका खुद का कैमरा चांद से लौट रहा हो। एंकर चिल्लाए—“सुनीता जी धरती पर वापस आ गई हैं! क्या वे भूल गई हैं कि यहां ट्रैफिक जाम, राजनीति और पकोड़े की महंगाई है?”
भव्य समारोह हुआ। मंच सजा, बड़े-बड़े नेताओं ने अपनी स्पीच रट ली। जैसे ही सुनीता जी आईं, तालियों की गड़गड़ाहट हुई—ऐसी गड़गड़ाहट, जैसी किसी नेता को भ्रष्टाचार से बरी होने पर मिलती है। मुख्य अतिथि बोले, “आपका अनुभव जानना चाहेंगे!”
सुनीता मुस्कुराईं, “अंतरिक्ष में शांति थी, कोई शोर नहीं, कोई प्रदूषण नहीं, कोई ‘भाईजान’ की फिल्म का पोस्टर नहीं! वहां रहकर अहसास हुआ कि धरती छोड़ने में ही असली सुकून है!”
पत्रकारों का हमला शुरू हुआ। पहला सवाल—“सुना है, आप चलना भूल गईं?”
सुनीता ने ठहाका लगाया, “हां, लेकिन भारत में तो वैसे भी लोग नियमों का पालन करना भूल चुके हैं, मैं तो सिर्फ चलना ही भूली थी!”
दूसरा सवाल—“आपने अंतरिक्ष में क्या मिस किया?”
“गोलगप्पे!” सुनीता बोलीं, “हमारे खाने में तो पेस्ट ट्यूब में बंद पदार्थ मिलते थे, जिन्हें देखकर लगा कि मैगी भी शाही भोजन है!”
अंत में एक पत्रकार ने पूछा—“अब आगे क्या प्लान है?”
सुनीता मुस्कुराईं, “फिर से उड़ने की तैयारी कर रही हूं… क्योंकि धरती पर ज्यादा दिन रहना अब किसी चुनौती से कम नहीं!”
समारोह खत्म हुआ। नेता अपने बयान गिनवाने में जुट गए, मीडिया वालों ने हेडलाइन बना दी—“सुनीता जी को धरती पर एडजस्ट होने में दिक्कत!” और पब्लिक ने सोचा—“काश, हमें भी ऐसी समस्या होती!”
गनीमत रही कि हमेशा की तरह हर न्यूज़ चैनल का संवाददाता “ग्राउंड ज़ीरो” पर जाकर कवरेज करने नहीं पहुंचा था। नहीं तो आज तक, एबीपी, रिपब्लिक और इंडिया टीवी के रिपोर्टर स्पेस स्टेशन के बाहर खड़े होकर बता रहे होते—“दोस्तों, मैं इस वक़्त पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर मौजूद ISS के ग्राउंड ज़ीरो पर खड़ा हूं, जहां से सुनीता जी ने धरती के लिए उड़ान भरी!” और नीचे ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही होती—“ब्रह्मांड में पहली बार—‘रिपोर्टर ऑन ड्यूटी इन स्पेस!’”
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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