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देशभर के 12 राज्यों में 200 टोल प्लाजा पर फर्जी सॉफ्टवेयर से करोड़ों की ठगी: छत्तीसगढ़ के कई टोल प्लाजा भी शामिल

28 जनवरी 2025

देशभर में 12 राज्यों के 200 टोल नाकों पर फर्जी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर करोड़ों रुपए के घोटाले का मामला सामने आया है। इस घोटाले में छत्तीसगढ़ के कुम्हारी, भोजपुरी, महाराजपुर और मुदियापारा टोल प्लाजा भी शामिल हैं। इस ठगी से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है, जिसमें टोल ठेकेदारों और अन्य जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई है।

इस घोटाले में टोल प्लाजा पर फर्जी सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किए गए थे, जो असली टोल डेटा को छुपाकर फर्जी आंकड़े प्रस्तुत करते थे। इसका फायदा यह हुआ कि टोल प्लाजा पर जो वाहन गुजर रहे थे, उनकी पूरी जानकारी NHAI तक नहीं पहुंच रही थी। फर्जी सॉफ्टवेयर की मदद से वाहनों की संख्या और वसूली गई रकम को कम दिखाया जाता था, जिससे सरकारी खजाने में जाने वाली राशि सीधे टोल ठेकेदारों और अन्य घोटालेबाजों की जेब में जा रही थी।

छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों में इस सॉफ्टवेयर के जरिए टोल प्लाजा पर होने वाली वसूली का बड़ा हिस्सा छुपा लिया गया। अनुमान है कि इस खेल से NHAI को हर महीने करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है।
यूपी एसटीएफ द्वारा उजागर किए गए इस घोटाले में छत्तीसगढ़ के कुम्हारी, भोजपुरी, महाराजपुर और मुदियापारा टोल प्लाजा भी जांच के दायरे में आए हैं। इन टोल प्लाजा पर फर्जी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर बड़ी मात्रा में सरकारी राजस्व को हड़पने का मामला सामने आया है।

उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स ने इस घोटाले का पर्दाफाश करने के लिए कई महीनों तक गुप्त जांच की। टेक्निकल टीम ने टोल प्लाजा पर इस्तेमाल हो रहे सॉफ्टवेयर की गहन जांच की और पाया कि सॉफ्टवेयर में ऐसी सेटिंग की गई थी, जिससे ट्रांजैक्शन के वास्तविक आंकड़े छुपाए जा रहे थे। टोल प्लाजा के बूथ कम्प्यूटर में NHAI के अलावा खुद का बनाया सॉफ्टवेयर भी अपलोड किया था। फास्टैग लगे वाहनों को टोल पर लगा सेंसर कैच कर लेता है और अकाउंट से पैसे कट जाते हैं। पर ये लोग फास्टैग वाले वाहनों से कटे पैसे से खुद की जेब भर रहे थे।
जिन वाहनों पर फास्टैग नहीं लगा होता है या जिनको किसी तरह की छूट मिलती है, ऐसे वाहनों के लिए टोल प्लाजा पर अलग काउंटर होता है जहां पर टैक्स का पैसा कैश के रूप वसूलकर रसीद दी जाती है। बिना फास्टैग वाले वाहनों से NHAI जुर्माने के रूप में दोगुना टोल शुल्क वसूलता है। गैंग के सदस्य NHAI की बजाय अपने इंस्टॉल किए गए सॉफ्टवेयर से रसीद काटते थे। सॉफ्टवेयर के जरिए टोल प्लाजा से बिना फास्टैग के गुजरने वाले वाहनों को फ्री दिखाकर उनसे वसूला गया पैसा खुद के अकाउंट में डाला जा रहा था ।

सॉफ्टवेयर अपलोड करने वालों के अलावा टोल प्लाजा का ठेका लेने वाले, वहां के कर्मचारी भी शामिल हैं। इस जांच में यह भी सामने आया कि यह घोटाला सिर्फ यूपी तक सीमित नहीं था, बल्कि 12 राज्यों में फैला हुआ था। इस फर्जीवाड़े के कारण NHAI को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। राजस्व चोरी के कारण यह पैसा सड़क निर्माण और मरम्मत जैसे जरूरी कार्यों में इस्तेमाल नहीं हो सका। NHAI के अधिकारी अब टोल प्लाजा पर लगे सॉफ्टवेयर की जांच कर रहे हैं और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया है।

जांच में पता चला है कि यह फर्जी सॉफ्टवेयर एक संगठित गिरोह द्वारा बनाया गया था, जो इसे देशभर के विभिन्न टोल प्लाजा पर उपलब्ध कराता था। टोल प्लाजा के ठेकेदार इस सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर वसूली छुपाते थे। गिरोह में कई आईटी विशेषज्ञ भी शामिल हैं, जो इस सॉफ्टवेयर को नियमित रूप से अपडेट कर रहे थे ताकि सिस्टम की जांच से बचा जा सके।यूपी एसटीएफ ने कई संदिग्धों को हिरासत में लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। अन्य राज्यों की पुलिस और NHAI अधिकारियों को भी इस मामले में शामिल किया गया है। यह उम्मीद है कि जांच पूरी होने पर बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां होंगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

इस घोटाले ने टोल प्लाजा पर निगरानी प्रणाली की खामियों को उजागर किया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि NHAI और अन्य संबंधित विभागों ने इस तरह के फर्जीवाड़े को इतने लंबे समय तक कैसे नजरअंदाज किया। यह घटना टोल प्लाजा पर तकनीकी निगरानी को और अधिक सख्त और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। देशभर में टोल प्लाजा पर हुए इस बड़े घोटाले ने न केवल NHAI को वित्तीय नुकसान पहुंचाया है, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाई है। यह जरूरी है कि सरकार, प्रशासन और जांच एजेंसियां इस मामले में दोषियों को जल्द से जल्द सजा दें और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।

( राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)

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