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डॉलर की मार से लड़खड़ाता रुपया पहुँचा निचले स्तर पर, गिरावट की वजहें और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव *

छत्तीसगढ़

भारतीय रुपया एक बार फिर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 87.60 के पार चला गया, जो अब तक का सबसे कमजोर स्तर है। रुपये में आई इस गिरावट से आयात महंगा हो सकता है, महंगाई बढ़ सकती है और विदेशी निवेशकों का रुझान प्रभावित हो सकता है। वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये की इस गिरावट के पीछे वैश्विक आर्थिक कारक, घरेलू मौद्रिक नीतियां और विदेशी निवेश प्रवाह में अस्थिरता मुख्य कारण हैं।

रुपये में गिरावट की प्रमुख वजहें इस प्रकार हैं-
1. डॉलर इंडेक्स में मजबूती
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मजबूत संकेतों और फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती टालने के फैसले से डॉलर मजबूत हुआ है। डॉलर इंडेक्स लगभग 110 के पास है, जिससे अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है।

2. विदेशी निवेशकों की निकासी (FPI आउटफ्लो)
भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने बड़ी मात्रा में धन निकाला है। इससे डॉलर की मांग बढ़ी और रुपये पर दबाव पड़ा। बाजार विश्लेषकों के मुताबिक, वैश्विक अस्थिरता के कारण निवेशक सुरक्षित संपत्तियों (डॉलर, गोल्ड) में निवेश कर रहे हैं, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं प्रभावित हो रही हैं और रुपये पर दबाव बढ़ा है।

3. कच्चे तेल की कीमतों में उछाल
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत के व्यापार संतुलन पर दबाव बढ़ा है। चूंकि भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए 70% से अधिक तेल आयात करता है, इस वजह से डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ना भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए चिंता का विषय है। महंगा तेल भारत के व्यापार संतुलन को प्रभावित करता है और डॉलर की मांग बढ़ाकर रुपये को कमजोर करता है।

4. वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव
रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-गाजा संघर्ष और चीन-ताइवान विवाद जैसी भू-राजनीतिक घटनाएं वैश्विक बाजार को अस्थिर कर रही हैं। इस कारण डॉलर को ‘सुरक्षित मुद्रा’ माना जा रहा है, जिससे निवेशक डॉलर में निवेश कर रहे हैं और रुपये जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दबाव बढ़ रहा है। अमेरिका द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन से आयातित वस्तुओं पर नए शुल्क लगाने से वैश्विक व्यापार तनाव बढ़ गया है, इससे भी रुपया और कमजोर हो सकता है।

5. भारत का व्यापार घाटा बढ़ना
भारत का आयात लगातार बढ़ रहा है, जबकि निर्यात धीमा हो गया है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ रहा है। इससे डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया कमजोर होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर निर्यात को बढ़ावा नहीं मिला तो रुपये पर दबाव बना रहेगा।

रुपये की कमजोरी का असर आम आदमी की जेब पर भी पड़ सकता है। इससे महंगाई बढ़ेगी – आयातित वस्तुएं (ईंधन, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाएं) महंगी होंगी। विदेश यात्रा महंगी होगी – डॉलर महंगा होने से विदेश यात्राओं पर खर्च बढ़ेगा। छात्रों पर असर – विदेशों में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों के खर्च में बढ़ोतरी होगी। स्टाक मार्केट पर असर – निवेशकों के लिए विदेशी निवेश पर असर पड़ेगा, जिससे शेयर बाजार में अस्थिरता बनी रह सकती है।

रुपये की गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) समय-समय पर बाजार में डॉलर की आपूर्ति करता है। इसके अलावा, सरकार आर्थिक सुधारों, निर्यात को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए नई नीतियों पर काम कर सकती है। रुपये की तेज गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सरकारी बैंकों के जरिए डॉलर बेचकर हस्तक्षेप किया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक वैश्विक बाजार स्थिर नहीं होते, रुपये पर दबाव बना रहेगा। अगर वैश्विक कारक प्रतिकूल बने रहे और घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो रुपये में और गिरावट संभव है। हालांकि, कुछ वित्तीय विश्लेषकों का कहना है कि आरबीआई के हस्तक्षेप और कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता आने पर रुपये में कुछ सुधार हो सकता है।

रुपये की रिकॉर्ड गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती है। हालांकि, सरकार और आरबीआई द्वारा उचित नीतियों के जरिए इसे स्थिर किया जा सकता है। निवेशकों और आम जनता को सतर्क रहने और आर्थिक घटनाओं पर नजर बनाए रखने की जरूरत है।
( राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)

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