( नोट – इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं इनकी किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से समानता सिर्फ संयोग ही मानी जाए)
पंजाब के एक छोटे से गाँव फिरोज़पुर के पास बसा मल्लेवाल, जहाँ हर घर से कोई न कोई बेटा या भाई अमेरिका या कनाडा में कमाने गया था। वहाँ के लोग उन घरों को सम्मान से देखते थे जिनके बेटे डॉलर भेजते थे। हर माँ-बाप की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा भी विदेश जाकर पैसा कमाए और उनके सपनों को पूरा करे।
गाँव के ही एक साधारण किसान हरनाम सिंह और उनकी पत्नी सुरजीत कौर के भी मन में यही सपना पल रहा था। उनका बेटा जसप्रीत (जस्सी) पढ़ाई में ज्यादा होशियार नहीं था, लेकिन अमेरिका जाकर पैसे कमाने की ललक उसमें भी थी। जस्सी के स्कूल के दोस्त, जो दो साल पहले अमेरिका गए थे, वहाँ से तस्वीरें भेजते थे—महंगी कारों के साथ, ऊँची इमारतों के आगे खड़े, डॉलर के बंडलों की फोटो डालते। ये सब देखकर हरनाम सिंह और सुरजीत कौर का भी दिल चाहा कि उनका बेटा भी उसी ऐशो-आराम की ज़िंदगी जिए।
गाँव में एक दलाल, बब्बू मजीठिया, ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह जस्सी को अमेरिका पहुँचा देगा। लेकिन कानूनी वीज़ा से नहीं, बल्कि “डंकी रूट” से। यह सुनकर हरनाम सिंह घबरा गए, लेकिन जब उन्होंने गाँव के कई लड़कों को इसी रास्ते से अमेरिका पहुँचते देखा, तो हिम्मत कर ली।
उन्होंने अपनी थोड़ी-बहुत ज़मीन गिरवी रखकर, रिश्तेदारों से उधार लेकर, 35 लाख रुपए इकट्ठा किए। जस्सी की माँ ने अपने सोने के कड़े भी बेच दिए। उन्होंने जस्सी को विदा किया, आँखों में आँसू लिए, लेकिन मन में उम्मीद थी कि वह डॉलर भेजेगा और उनका कर्ज़ उतर जाएगा, टूटा घर भी बन जाएगा और बेटी हरप्रीत ( प्रीतो) की शादी भी अच्छे से हो पाएगी ।
जस्सी ने दलाल के निर्देशानुसार यात्रा शुरू की पर उसका सफर आसान नहीं था। वह पहले दुबई गया, फिर वहाँ से ब्राजील, फिर पेरू और कोलंबिया होते हुए पनामा पहुँचा। वहाँ से जंगलों और पहाड़ों से होते हुए मेक्सिको पहुँचना था। दलालों का हर बार नया-नया बहाना, हर जगह नए-नए रुपए देने पड़ते। कई जगहों पर खाने तक को कुछ नहीं मिलता। दलालों के द्वारा धोखाधड़ी आम थी—कुछ लड़कों को तो बीच रास्ते में ही छोड़ दिया गया, लेकिन जस्सी किसी तरह मेक्सिको तक पहुँचने में कामयाब रहा।
मेक्सिको-अमेरिका बॉर्डर पार करना सबसे मुश्किल था। रेगिस्तान की तेज़ गर्मी, पुलिस की रेड, और जान का खतरा। एक रात जस्सी ने एक पुराने ट्रक के पीछे छुपकर अमेरिकी सीमा पार की। वहाँ से वह किसी तरह न्यूयॉर्क पहुँचा, जहाँ उसके गाँव के कुछ लड़के पहले से थे।
अमेरिका पहुँचकर जस्सी को समझ आया कि यहाँ की ज़िंदगी इंस्टाग्राम पर दिखने वाली तस्वीरों से बहुत अलग थी। न रहने का ठिकाना, न ही कानूनी दस्तावेज़। वह एक रेस्टोरेंट में बर्तन धोने लगा, दिन-रात मेहनत कर किसी तरह बचत करने की कोशिश की। खाने-पीने तक के लिए पैसे नहीं बचते थे, लेकिन गाँव में माता-पिता को हर महीने कुछ न कुछ भेजता रहा।
कई बार जस्सी को अवैध कामों में धकेलने की कोशिश की गई—फर्जी कागज़ बनवाने के लिए झूठ बोलना पड़ा, कभी-कभी नकली क्रेडिट कार्ड से खरीदारी भी करनी पड़ी। यह सब उसे पसंद नहीं था, लेकिन मजबूरी थी।
तीन साल में जस्सी ने इतना कमा लिया कि माता-पिता का आधा कर्ज़ उतर गया। बहन प्रीतो की सगाई भी तय हो गई ।घरवालों ने सोचा कि अब जस्सी का भविष्य सुरक्षित है। लेकिन तभी अचानक अमेरिकी इमिग्रेशन विभाग ने अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई तेज़ कर दी।
एक रात पुलिस ने छापा मारा और जस्सी को गिरफ्तार कर लिया। उसने बहुत हाथ-पैर मारे, लेकिन बिना किसी सुनवाई के उसे डिपोर्ट कर दिया गया। उसे हथकड़ियों में बाँधकर प्लेन में बैठाया गया, उसके पास जो भी सामान और पैसे थे, सब वहीं छूट गए। जस्सी को अहसास हुआ कि उसने जो कुछ भी कमाया था, वह अब मिट्टी में मिल चुका था।जब जस्सी वापस भारत आया, तो गाँव वाले पहले तो उससे सहानुभूति जताने आए, लेकिन धीरे-धीरे ताने मारने लगे—
“अरे जस्सी, तू तो अमेरिका कमाने गया था, फिर वापस क्यों आ गया?”
“लगता है वहाँ कोई जुर्म कर दिया होगा, वरना कौन डिपोर्ट होता है?”
माता-पिता के सर पर अभी भी कर्ज का बोझ था ऊपर से बहन की सगाई भी लड़के वालों ने तोड़ दी। माँ-बाप की हालत जस्सी से देखी नहीं गई। उन्होंने जस्सी के लिए जो सपने देखे थे, सब बिखर गए। जस्सी अब गाँव में एक छोटा सी किराने की दुकान खोलने की सोच रहा है। अब वह कभी-कभी अमेरिका में बिताए उन कठिन दिनों को भी याद करता है, जब वह घरवालों के लिए रोता था। लेकिन अब एक और दर्द था—अब वह घर पर रहकर अमेरिका की ज़िंदगी के लिए रोता था।
जस्सी की कहानी सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि देश के उन हज़ारों युवाओं की है, जो “डंकी रूट” के ज़रिए अमेरिका जाने का सपना देखते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि यह रास्ता केवल धोखे, दर्द, और अपमान की ओर ले जाता है। जस्सी ने सीखा कि मेहनत अपने देश में भी की जा सकती है। विदेश जाना बुरा नहीं, लेकिन अवैध तरीके से जाना खुद को बर्बादी की ओर धकेलना है।
( राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)
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