राष्ट्रीय ब्यूरो
रायपुर
अभी कुछ ही समय पहले, देश की राजधानी सहित कई बड़े और छोटे शहर तपती गर्मी से त्रस्त थे। दिल्ली में जून का औसत तापमान 42 डिग्री से अधिक रहा, और कई क्षेत्रों में पानी की किल्लत थी। दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी की आपूर्ति को लेकर विवाद की खबरें आम थीं। कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाते हुए नीति-निर्माताओं को पेयजल संकट के समाधान के लिए मिलकर काम करने की हिदायत दी थी। इसके बाद जब दिल्ली में पहली बारिश हुई, तो आठ दशक का रिकॉर्ड टूट गया, और जल निकासी की व्यवस्था ध्वस्त हो गई। सड़कों पर तैरते वाहन और गिरती इमारतें प्रशासन की नाकामी को उजागर कर रही थीं।
ऐसे में सवाल उठता है कि जो दिल्ली कुछ दिन पहले पानी के लिए तरस रही थी, वह अचानक बारिश में क्यों डूब गई? इसका कारण यह है कि मौसम की तीव्रता चाहे गर्मी हो, बरसात हो या सर्दी, साफ नजर आ रही है, लेकिन हम इसके मुकाबले के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं। प्राकृतिक जल निकासी के रास्ते कुछ लोगों और बिल्डरों द्वारा कब्जा लिए गए हैं। नदियों तक पानी पहुंचाने वाले मार्ग और तालाब अवैध निर्माण की भेंट चढ़ गए हैं। जो इलाके पानी का प्राकृतिक अवशोषण करते थे, वे अतिक्रमण से बाधित हो गए हैं।
वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् और मीडिया वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग के खतरे के प्रति चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन हमारे नीति-निर्माता केवल बयानबाजी में लगे रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग ने हमारे खेतों और खाद्य शृंखला को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, लेकिन हमारे नेता अभी भी गंभीर नहीं हैं। मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि हाल के दशकों में जून के चार सबसे गर्म महीनों में से तीन पिछले तेरह वर्षों में रहे हैं। हर साल का जून पहले से ज्यादा गर्म हो रहा है।
गर्मी के बढ़ते तापमान के आंकड़े डराने वाले हैं, सर्दी का समय कम हो रहा है और बारिश अचानक इतनी तेज होती है कि हर तरफ जलमग्न हो जाता है। यह समय तात्कालिक और दीर्घकालिक उपायों की मांग करता है। हमें दीर्घकालिक लक्ष्यों के हिसाब से योजनाएं बनानी होंगी और लू से मरने वाले लोगों की संख्या कम करने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे। खुले में काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों, रिक्शा चालकों और यातायात पुलिसकर्मियों को राहत देने की कोशिश करनी होगी। सार्वजनिक स्थलों पर छांव और पानी की व्यवस्था करनी होगी।
ऑफिस और स्कूल-कॉलेजों के समय में बदलाव करना होगा ताकि गर्मी के पीक समय में काम बंद किया जा सके। फसलों की किस्मों और चक्र में बदलाव कर कम पानी और अधिक तापमान में उगाई जा सकने वाली फसलें अपनानी होंगी। घरों की निर्माण शैली में बदलाव लाकर, छतों और दीवारों पर सफेद पेंट, मोटी दीवारें और पर्याप्त वेंटिलेशन सुनिश्चित करना होगा। खाली जगहों और छतों पर हरियाली बढ़ाकर एसी के उपयोग को कम करना होगा। वर्षा जल संग्रहण और भू-जल स्तर सुधारने के प्रयास करने होंगे। फलदायक और छायादार वृक्ष लगाकर इस संकट का सामना किया जा सकता है। अपनी जीवनशैली को प्रकृति के अनुरूप ढालकर ही हम इस समस्या से निपट सकते हैं।
( राजीव खरे- राष्ट्रीय ब्यूरो)
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