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जिस धरती पर हमने जन्म लिया वह आर्य भूमि है:- मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजय जी म. सा.

इंदौर मध्य प्रदेश वीरमणि स्वर्णिम चातुर्मास 2023, तिलक नगर, इंदौर

मुनिराज श्री ऋषभ रत्नविजयजी ने यह बताया कि जिस धरती पर हमने जन्म लिया है वह आर्य भूमि है क्योंकि यह तीर्थंकरों, वासुदेवों, चक्रवर्ती राजा एवं अनेकानेक महापुरुषों, साधु-संतों ने इसी धरती पर जन्म लेकर कल्याण किया है। यहाँ उत्थान है और मोक्ष की प्राप्ति है तो पतन भी है। यह राजग्रही नगरी है जहाँ पर भगवान महावीर ने 14 चातुर्मास किये, भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के चार कल्याणक हुए थे। इस नगरी के गर्भ में कई इतिहास छिपे हुए हैं। इस भूमि पर नाटक करते-करते भी केवल ज्ञान प्राप्त हुआ है। भाव की ऊँचाइयाँ भव पर लगा देती है। यह वह धरती है जहाँ पूर्व काल में राजा भर्तुहरी नाटक को देखकर भी लोग वैराग्य धारण कर रहे थे। यह शालीभद्र का स्थान है जहाँ पर प्रतिदिन 99 पेटियाँ उतरती थीं।
तीन तरह के लोग हैं जो धर्म क्रिया को अलग-अलग प्रकार से अपनाते हैं। एक व्यक्ति साधु-संत से यह अपेक्षा रखता है कि उसकी मन-पसंद अनुसार धर्म क्रिया हो, दूसरा व्यक्ति चाहता है कि जैसी धर्म क्रिया करनी चाहिये वह न करके सामान्य धर्म ही हो और तीसरा व्यक्ति चाहता है जो उचित धर्म क्रिया है वह ही उसको करना है। कर्म बंध को समाप्त करने के लिये तीसरे प्रकार का व्यक्ति होना आवश्यक है।
इस धरती से आध्यात्मिक तरंगें भी निकलती हैं जो हमको परमात्मा के समीप होने का एहसास देती हैं। और आत्मविश्वास एवं द्रड़-संकल्प से ही सभी कार्य में सफलता मिल सकती है। इस भूमि पर ही सिद्धाचल है जहां पर 84 ऐसे आध्यात्मिक स्थान हैं जहां पर साधना करके मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
राजेश जैन युवा ने बताया कि जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिये कई प्रकार की वृत्ति हैं परंतु परमात्मा को प्राप्त करने की बस एक ही लाइन है वह है आध्यात्म एवं संयम जो शांति एवं सुख दिलवाती है। जिनवाणी श्रवण भी बहुत आवश्यक कार्य है जिसके लिये भी समय निकालना वृत्ति का एक अंग होना चाहिये। यह कभी भी जीवन में आश्चर्यजनक बदलाव ला सकती है। साधु-संतों की संगत एवं प्रवचन से व्यसन से मुक्ति हो सकती है।
मुनिवर का नीति वाक्य
“दृढ़ संकल्प पुरुषार्थ का आधार है”
राजेश जैन युवा 94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

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