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Home Policewala जिस तरह एक महल या इमारत खड़ी करने के लिये बहुत चीजों की आवश्यकता पड़ती है:– मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजय जी
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जिस तरह एक महल या इमारत खड़ी करने के लिये बहुत चीजों की आवश्यकता पड़ती है:– मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजय जी

इंदौर मध्य प्रदेश

जिस तरह एक महालय इमारत खड़ी करने के लिए बहुत चीजों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से धर्म रूपी महल खड़ा करने के लिये भी अच्छी नींव, स्तम्भ छत की आवश्यकता होती है तब धर्म का प्रासाद खड़ा जो जाता है। निर्माण में किसी भी वस्तु की कमी से महल अधूरा रहेगा। महल बनने में स्तम्भ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। धर्म रूपी महल के लिये निम्न पाँच स्तम्भ अहम होते हैं।
1. Join Good Work – अच्छे कार्यों से जुड़ना। जीवन में यह प्रयास हो कि हम सदैव भलाई के कार्यों से जुड़े रहें। जैसा करोगे वैसा पाओगे अच्छे कार्यों का फल अच्छा ही मिलेगा। बाहरी मन भले ही अच्छे कार्य के लिये मना करे परंतु अंतर्मन की आवाज सुनकर अच्छे कार्य कर देना चाहिये। अच्छे आर्यों के लिये अवसर मत तलाशो बल्कि अवसर स्वयं पैदा करो। दूसरों की भलाई के लिये कार्य करने से अंतर्मन प्रसन्न रहेगा और स्वयं के कार्य करने से मन प्रसन्न होगा। अच्छे कार्य स्वप्रमाणित होते हैं।
2. Joyful Nature – हमारा स्वभाव प्रसन्नता का हो एवं संकट की स्थिति में भी हम प्रसन्न रहें। खुश रहना हमारे बस में है परंतु तीन चीजें हमारे हाथ में नहीं हैं – (1) संपत्ति हमेशा बनी रहे ज़रूरी नहीं, (2) संयोग हमेशा सुविधाजनक रहें ज़रूरी नहीं, एवं (3) सामग्री हमेशा काम आये ज़रूरी नहीं। इसलिए सदैव सम्भाव बनाए रखें एवं प्रसन्न रहें। कुमारपाल महाराजा के अंतिम क्षणों में भी जीवन बचाने में उनका धन काम नहीं आया था।
3. Join the Broken Relation – संबंधों को हमेशा जोड़े रखें। रिश्तों की पूंजी सबसे बड़ी पूंजी होती है जिसको बनाए रखना हमारा सबसे बड़ा कार्य है। हम अपने सेवक की आवश्यकताओं का ध्यान रखेंगे तो वे हमारी सेवा के लिये समर्पित रहेंगे। संबंधों को कैसे बनाए रखें यदि यह सीख लें तो कभी भी जीवन में दुःखों का एहसास नहीं होगा।
4. Just Do It – किसी भी कार्य में विलंब न करें। सद्कार्य, धर्म आदि के कार्य बिना विलंब के करना चाहिये। इन कार्यों को प्राथमिकता से करना ही हमारा धर्म है। जीवन में एक पल का ठिकाना नहीं है तो किसी भी कार्य को भविष्य के सहारे मत छोड़ो कहावत है “काल करे सो आज कर आज करे सो अब”।
जीवन को सुखमय एवं धर्ममय बना है तो पाँच उंगलियों के समान उक्त पाँच स्तम्भ का सदैव ध्यान रखें।
राजेश जैन युवा ने बताया की मुनिवर का नीति वाक्य
“‘जैसा विनियोग करोगे वैसा योग मिलेगा”

राजेश जैन युवा 94250-65959

रिपोर्ट- अनिल भंडारी

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