खेल और राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। क्रिकेट की आखिरी बाल ही निर्णायक साबित होती है।
चंदला विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित युवा विधायक दिलीप अहिरवार पहली बार ही “मोहन ” को भा गये और उन्हें मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया है। इससे राजनीतिक पंडित भी हतप्रभ हैं। जबकि डाक्टर मोहन यादव के मुख्यमंत्री घोषित होते ही यह तय लग रहा था कि दिलीप का भाग्योदय होने जा रहा है। क्योंकि मोहन यादव के साथ ही ब्राह्मण वर्ग से राजेन्द्र शुक्ला और दलित वर्ग से देवड़ा जी पहली खेप में ही सामने आ गये थे। भोपाल कोटे से कृष्णा गौर का मंत्री बनना निश्चित था। इसलिए छतरपुर जिले के सभी समीकरण गड़बड़ा गये। बहरहाल चंदला से दिलीप अहिरवार के मंत्री बनने के साथ ही चंदला छतरपुर जिले की एकमात्र विधानसभा सीट बन गई जिसने सबसे ज्यादा मंत्री जिले को दिए हैं।
चंदला विधानसभा क्षेत्र में दो पीढ़ियों तक एक ही राजनीतिक घराने का वर्चस्व रहा है।1972 में यहां से निर्वाचित पंडित बाबूराम चतुर्वेदी पहली बार पंचायत राज्य मंत्री बनाए गए थे।1980 में उनके सुपुत्र सत्यव्रत चतुर्वेदी निर्वाचित हुए थे और उन्हें सिंचाई राज्य मंत्री बनाया गया था। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के कारण उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।1990 में यहां से निर्वाचित भाजपा प्रत्याशी मोहम्मद गनी अंसारी सुंदर लाल पटवा सरकार में मंत्री रहे।जब यह सीट आरक्षित हो गई थी तो यहां से निर्वाचित भाजपा प्रत्याशी रामदयाल अहिरवार को मंत्रीमंडल में शामिल किया गया था। और अब 46 वर्षीय दिलीप अहिरवार को मंत्रीमंडल में शामिल होने का सौभाग्य मिला है।
जिस प्रकार से राजस्थान में पहली बार निर्वाचित भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया है। जब पहली बार निर्वाचित विधायक मुख्यमंत्री बन सकता है तो मंत्री क्यों नहीं।
दिलीप अहिरवार का टिकट घोषित होते ही उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर विष-वमन किया गया।जहर बुझे शब्दभेदी बाण छोड़े गए थे आज वही ज़हर उनके लिए अमृत बन गया है। उनके पिताश्री लक्ष्मी प्रसाद अहिरवार कांग्रेस से पार्षद रहे हैं। राजनीति उन्हें विरासत में मिली है।अब जिले के चहुंमुखी विकास का दायित्व दिलीप के कंधों पर आ गया है। उम्मीद है कि वह अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए इतिहास रच सकते हैं।
पुलिस वाला न्यूज़
जिला ब्यूरो
शिवम अग्रवाल
छतरपुर
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