राष्ट्रीय ब्यूरो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के मणिपुर पर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में लोकसभा में मिजोरम की जिस घटना का जिक्र किया उसे जानना जरूरी है । मिजोरम में मार्च 1966 में वायु सेना से बमबारी कराने का फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इसलिये लेना पड़ा, क्योंकि 1966 में Mizo National Front के बागी आइज़ॉल पर कब्जा कर चुके थे। उन्हें भगाने के लिए भारतीय वायु सेना से बमबारी कराना जरूरी हो गया था। बमबारी की वजह से ही MNF के बागी भाग खड़े हुए और फिर से वहाँ भारत का आधिपत्य जमा।
मिज़ोरम पहले असम का एक ज़िला हुआ करता था। मिजो नेताओं ने एक संगठन बनाया था मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) जिसका नेता था लालडेंगा जिसने भारतीय सरकार के खिलाफ अलगाववाद की भावना भड़काईं। धीरे-धीरे इस संगठन ने भारत विरोधी विदेशी शक्तियों से संपर्क बढ़ाकर अपनी ताकत काफी बढ़ा ली। 1963 के आसपास एमएनएफ में अतिवादी गुट हावी हो गया। इस गुट के नेता कहने लगे कि अगर मिजोरम को भारत से आजाद करना है तो हिंसक लड़ाई लड़नी होगी। इसके लिए मिजो नेशनल आर्मी का गठन किया गया। इसी की एक शाखा थी ‘मिजो नेशनल आर्मी’ (एमएनए), जिसने 8 मिजो नायकों के नाम पर सशस्त्र बटालियनें खड़ी कर दीं। मिजो नेशनल आर्मी को तैयार करने में तब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) मदद करने लगा। वह मिजो विद्रोहियों को ट्रेनिंग और हथियार देने लगा। विद्रोहियों को ट्रेनिंग दिलाने के लिए एमएनएफ के नेता लालडेंगा ने कई बार पूर्वी पाकिस्तान की यात्रा की।वहां से सीधे उसे सैन्य मदद मिली और उसने हथियारों, ट्रेनिंग का समझौता भी कर लिया। एमएनएफ ने सीधे-सीधे भारत से अलग होकर अलग देश बनाने की मांग शुरू कर दी।
लालडेंगा ने 28 फरवरी, 1966 को एक बड़े विद्रोह का ऐलान किया और 1 मार्च को मिजोरम को एक अलग देश घोषित कर दिया और उसके साथ ही ‘ऑपरेशन’ शुरू करके असम के सरकारी दफ्तरों कब्जा और सुरक्षा बलों पर हमला करना शुरू कर दिया। एमएनएफ के 10,000 मिजो लड़ाकों की फौज ने ऐजवाल में सरकारी खजाने, मिजो डिस्ट्रिक्ट के हथियार डिपो के साथ-साथ पेट्रोल पंप आदि पर भी कब्जा कर लिया। अधिकारियों और कर्मचारियों को बंदी बना लिया गया। मिजो विद्रोहियों की अलग-अलग टुकड़ियों ने आइजोल, लुंगलेई और चम्फाई स्थित असम राइफल्स के कैम्प पर हमला कर दिया। उसके अलावा उन्होंने बीएसएफ के चावंग्ते समेत करीब छह पोस्टों को भी निशाना बनाया। इस हमले के लिए असम राइफल्स और बीएसएफ के जवान तैयार नहीं थे। असम राइफल्स के जवानों ने भी जावाबी फायरिंग की। लेकिन मिजो विद्रोहियों ने छापामार रणनीति अपनाते हुए असम राइफल्स के आइजोल कैंप को चारों तरफ से घेर लिया। आधुनिक हथियारों से लैस करीब एक हजार मिजो विद्रोहियों ने तीन दिन तक घेरा डाले रखा। इसके चलते असम राइफल्स कैंप तक रसद का पहुंचना बंद हो गया। खाने पीने की जरूरी चीजों की आपूर्ति ठप हो गयी।मिजो विद्रोहियों ने 1 मार्च को मिजोरम के मुख्यालय आइजोल पर कब्जा कर लिया। एमएनएफ के नेता लालडेंगा ने 1 मार्च 1966 को मिजोरम की आजादी की घोषणा कर दी। मिजो विद्रोहियों ने एलान किया कि अब मिजोरम भारत के अवैध कब्जे से मुक्त हो गया। मिजो विद्रोहियों और भारतीय सुरक्षाबलों में भयंकर गोलीबारी होती रही। कई लाशें गिरीं।
असम के मुख्यमंत्री विमला प्रसाद चालिहा ने 1 मार्च 1966 को बताया कि मिजो विद्रोहियों ने आइजोल के ट्रेजरी और लुंगलेई इलाके में हमला कर दिया है। उस समय संसद का सत्र चल रहा था। इस घटना से पूरे देश में हलचल मच गयी । जब संसद में मामला उठा तो तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने कहा था कि आइजोल, लुंगलेई समेत छह जगहों पर मिजो अलगवादियों ने विद्रोह कर दिया है मिजो विद्रोहियों की घेराबंदी से भारतीय सुरक्षा बलों के जवान तीन दिन से भूखे थे। कोलासिब में करीब 250 सरकारी अधिकरियों, पुलिस कर्मियों और निर्माण कार्य में लगे लोगों को बंधक बन लिया गया था। उन्हें भी भूखा-प्यासा रखा गया था। तब केन्द्र सरकार ने सेना को हेलीकॉप्टर से रसद पहुंचाने को कहा लेकिन विद्रोहियों के लगातार फायरिंग के चलते वे लैंड नहीं कर पाये। तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विद्रोहियों से निबटने के लिए एयर स्ट्राइक का फैसला लिया।
4 मार्च 1966 को भारतीय वायु सेना के जेट लड़ाकू विमानों ने मिजो विद्रोहियों के टारगेट पर बमबारी शुरू कर दी। सबसे पहले आइजोल की घेराबंदी पर हमला किया गया। मिजो विद्रोहियों ने तब हमले से बचने के लिए आरोप लगाया कि बमबारी में कई नागरिक मारे गये हैं। इसके अगले दिन भारतीय लड़ाकू विमानों ने और जोरदार हमला बोला। करीब छह घंटे तक एयर स्ट्राइक जारी रही। भयंकर तबाही हुई। कई घर जमींदोज हो गये। इस हमले से मिजो विद्रोहियों के पांव उखड़ने लगे। तब मिजोरम में यह बात कही जाती थी कि भारतीय वायुसेना की बमबारी करने वाले विमानों में राजेश पायलट और सुरेश कलमाडी पायलट के रूप में तैनात थे। वायु सेना के हमले बढ़ते गये। 25 मार्च 1966 तक मिजोरम के सभी प्रमुख इलाके विद्रोहियों के कब्जे से मुक्त करा लिया गया।
आजादी के बाद का यह पहला और आखिरी मामला है, जब अपने ही देश की वायुसेना ने अपने ही देश के नागरिकों पर बमबारी की हो । आख़िरकार, एमएनएफ को भी यह एहसास हुआ कि उनकी मांग पूरी नहीं हो सकती और वह यह लड़ाई जीत भी नहीं सकती तो उन्होंने केंद्र सरकार के साथ बातचीत शुरू करने की कोशिश की बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी शांति बहाल करने के लिए एमएनएफ के अलगाववादियों और मुख्यमंत्री लालडेंगा से बातचीत की। 1986 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मिजोरम समझौते पर हस्ताक्षर किए । इस शांति समझौते ने 1986 में मिजोरम विद्रोह को समाप्त कर दिया और 1987 में मिजोरम का गठन हुआ।
( राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़ एवं राष्ट्रीय उप संपादक)
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