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क्या करोड़ों मनरेगा मजदूर, बैंक अकॉउंट आधार से लिंक नहीं होने के चलते मज़दूरी से वंचित होंगे ?

छत्तीसगढ़ रायपुर
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (नरेगा) नाम से 2006 में कांग्रेस के शासन काल में शुरू हुई थी। इस योजना का नाम 2009 में बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया।इसके तहत ग्रामीण क्षेत्र में काम करने के इच्छुक लोगों को साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी दी जाती है। ग़ौरतलब है कि मनरेगा ने न केवल ग्रामीण बेरोजगारी संकट को कम किया है, बल्कि इसने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण को भी सुगम बनाया है । यह योजना अनिवार्य करती है कि 3% श्रमिक महिलाएं हों , पिछले दशक में रुझान नियमित रूप से देश भर में 52% से अधिक रहा है। मनरेगा कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याण कार्यक्रम है। इसके पहल के परिणामस्वरूप कई लाख ग्रामीण गरीबी से बाहर आए हैं । कोरोना काल में मनरेगा मजदूरों और बेरोजगारों का सहारा बनी थी और इसके जरिए लाखों बेरोजगार और मजदूर अपनी रोजी-रोटी कमा सके थे।



मनरेगा में कुछ खामियां हो सकती हैं लेकिन इस योजना के लाभ और अवसरों की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। यही मूल कारण है कि एनडीए सरकार ने इस योजना की विफलता की आलोचना करने के बावजूद इसे जारी रखने का फैसला किया।हालाँकि एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 फरवरी 2015 को लोकसभा में मनरेगा का मखौल उड़ाते हुए इसे कांग्रेस की नाकामियों का स्मारक बताया था। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था, “मेरी राजनीतिक सूझ बूझ कहती है कि कांग्रेस को मनरेगा कभी बंद नहीं करना चाहिए क्योंकि मनरेगा कांग्रेस की विफलताओं का जीता जागता स्मारक है। आजादी के 60 साल के बाद भी लोगों को रोज़गार के लिये गड्ढे खोदने का काम देना पड़ रहा है और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा।”

मनरेगा और मनरेगा मजूदरों को लेकर मोदी सरकार बहुत सकारात्मक नहीं है। सरकार ने कुछ दिन पहले पेश हुए केंद्रीय बजट में मनरेगा स्कीम के बजट में ऐतिहासिक कटौती की थी। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के सबसे अहम जरिया मनरेगा का बजट 73000 करोड़ रुपये से घटाकर 60,000 करोड़ रुपये कर दिया, जो अभी तक का सबसे कम है।हाल ही में पेश एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस योजना के तहत 100 दिनों का रोजगार देने के लिए मनरेगा में 2023-24 के लिए 2,71,862 करोड़ रुपये का बजट चाहिए था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इससे पहले कम बजट के आवंटन के चलते 100 की जगह मात्र 40 दिनों का ही रोजगार ही मिल पा रहा था। अब इस बार मात्र 60,000 करोड़ रुपए के आवंटन से मनरेगा मजदूरों को महीने भर भी रोज़गार उपलब्ध कराना कठिन हो जाएगा ।ताज़ा जानकारी के अनुसार 14.98 करोड़ मनरेगा मजदूरों का बैंक अकॉउंट अभी भी आधार से लिंक नहीं हुआ है। सरकार ने आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम को अनिवार्य किया है और इसे करने के लिये केवल 31 मार्च 2023 तक ही मोहलत दी है। अब ऐसे में प्रश्न यह है कि क्या इसके बाद इनकी मजदूरी नहीं मिल पाएगी । क्योंकि दोनों पक्षों की अपनी अपनी दलीलें हैं । यह सही है कि मनरेगा में कुछ खामियां हो सकती हैं पर इसके लाभ और अवसरों की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती और आज देश में बढ़ रही बेरोज़गारी को देख ग्रामीण रोज़गार की इस योजना में कुछ विसंगतियों के चलते करोड़ों ग्रामीण मज़दूरों को रोज़गार से वंचित रखना भी उचित नहीं लगता।
(राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़)

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