वाराणसी/चोलापुर
भले ही उसे दुर्रदांत या आतंक का पर्याय कहा जाता था लाख बुराइयां रही होगी उस इंसान के अंदर लेकिन कुछ अच्छाइयां ऐसी थी जो सबके अंदर नहीं होती। कोरोना काल जैसी भयंकर महामारी में चोलापुर क्षेत्र के लिए अन्नदाता बने कन्हैया विश्वकर्मा पुत्र टगर विश्वकर्मा लखनपुर चोलापुर वाराणसी उस भयंकर महामारी में गाड़ियों के गाड़ियां अनाज गरीबों के लिए उपलब्ध कराने वाले इस हस्ती को कितने गलत बताते हैं और कुछ लोग सही बताते हैं,
अगर देखा जाए तो जिस इंसान को लोग आतंक का पर्याय बताते हैं वह इंसान अपने क्षेत्र में कोरोना काल में अन्नदाता था।
इंसान के कर्म चाहे जैसे हो लेकिन लेकिन प्रायश्चित सबसे बड़ी दवा है। और शायद यही प्रायश्चित कितने गरीबों के मुंह के लिए निवाला बन गया।
सरकारी गाड़ी पलटने से पहले उस भयंकर महामारी में पता नहीं कितने गरीबों के पेट की आग बुझाने वाले इस अन्नदाता को भले ही समाज चाहे जैसा समझता हो लेकिन सही में कन्हैया विश्वकर्मा उर्फ डॉक्टर गिरधारी विश्वकर्मा ने कभी भी अपने क्षेत्र में कोई अपराध नहीं किया किसी गरीब दुखिया को नहीं सताया ना ही किसी को परेशान किया।
इस इंसान की आपराधिक पृष्ठभूमि भले रही हो लेकिन कुछ ऐसे भी कर्म थे जो भूलने योग्य नहीं है।
और कुछ ऐसी ही अच्छी पहल कोरोना काल में गरीबों के मुंह के लिए निवाला पहुंचना था जिससे पता नहीं कितने गरीबों के पेट की आग शांत हुई होगी।
रामायण को लिखने वाले वाल्मीकि जी भी डाकू थे। इसका हिंदी अनुवाद करने वाले तुलसीदास जी का भी जीवन सभी लोगों को याद होगा।
वाल्मीकि ने अपराध का रास्ता छोड़कर धर्म का मार्ग चुना और रामायण लिख डाली, खुद की पत्नी से धिक्कार पाए तुलसीदास ने भी धर्म का मार्ग चुना और रामायण का हिंदी अनुवाद कर डाला, जरा सोचिए एक डाकू ने खुद के अंदर सुधार करके रामायण लिख डाली
ठीक उसी प्रकार से सुधार एवं प्रायश्चित की राह चलते हुए यह इंसान भी कोरोना काल में गरीबों के लिए अन्नदाता बना हुआ था। वह तो विडंबना हुई कि सरकारी गाड़ी पलट गई नहीं तो प्रायश्चित की राह पर चल रहे इस इंसान के द्वारा और भी कुछ अच्छे कर्म हुए होते।।
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