2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ज़बरदस्त आंदोलन जनलोकपाल हुआ। इस आंदोलन ने देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक नई राजनीतिक चेतना को जन्म दिया और केजरीवाल को एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में स्थापित किया। अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई और 2012 में आम आदमी पार्टी (AAP) का गठन हुआ। AAP ने राजनीति में पारदर्शिता और आम जनता की भागीदारी का वादा किया और 2013 में केजरीवाल के नेतृत्व में पहली बार दिल्ली में सरकार बनाई। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में, आप ने 28 सीटें जीतकर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई । एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह केजरीवाल ने हालांकि यह सरकार केवल 49 दिनों तक चलाई और लोकपाल बिल नहीं बना सकने का ठीकरा कांग्रेस और भाजपा पर फोड़, सरकार खुद ही गिरवा दी। 2015 में, आप ने 70 में से 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया, और 2020 में भी 62 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की।
आरंभ में तो केजरीवाल की सरकार अपने सभी महत्वपूर्ण नेताओं को साथ में लेकर चली, पर धीरे-धीरे पार्टी के भीतर आंतरिक कलह के कारण प्रमुख नेताओं का पार्टी से अलग होना शुरू हुआ। योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, और कुमार विश्वास जैसे संस्थापक सदस्यों ने पार्टी नेतृत्व पर सिद्धांतों से भटकने और आंतरिक लोकतंत्र की कमी के आरोप लगाए, जिसके परिणामस्वरूप वे पार्टी से अलग हो गए। इनके पार्टी छोड़ने से AAP की वैचारिक नींव कमजोर हुई। केजरीवाल के इन करीबी सहयोगियों ने पार्टी के भीतर असहमति को दबाने के आरोप , तानाशाही रवैये और सत्ता केंद्रित राजनीति का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी।
जब 2013 में अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने खुद को एक आम आदमी के रूप में प्रस्तुत किया था। वे मेट्रो से दफ्तर जाते थे, सरकारी बंगले में रहने से इनकार कर दिया था, और यहां तक कि कहा था कि वे बड़े नेताओं की तरह ऐशो-आराम में विश्वास नहीं रखते। लेकिन समय के साथ उनकी इस छवि पर सवाल उठने लगे। केजरीवाल की ‘सादगी’ वाली छवि को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके सरकारी आवास पर 45 करोड़ रुपये खर्च करने का मामला सामने आया। इसे ‘शीशमहल कांड’ कहा गया, जिसमें इटैलियन मार्बल, महंगे परदे, आलीशान इंटीरियर और VIP सुविधाओं पर जनता के टैक्स का पैसा खर्च होने के आरोप लगे। विपक्ष ने इसे ‘AAP का VIP कल्चर’ करार दिया और केजरीवाल की ‘आम आदमी’ वाली छवि को धूमिल कर दिया।
केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों और मोहल्ला क्लीनिकों के जरिये शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार किए, जिससे उन्हें जनता का समर्थन मिला। 2015 और 2020 में उन्होंने भारी बहुमत से चुनाव जीते, लेकिन समय के साथ उनकी राजनीति पर सवाल उठने लगे। दिल्ली की जनता ने भी पहले तो आप सरकार के दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किये महत्वपूर्ण सुधारों को सराहा। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार, मोहल्ला क्लीनिकों की स्थापना, और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार की सराहना कई स्तर पर की गई। पर धीरे-धीरे भ्रष्टाचार के आरोप, कांग्रेस के विरोध से बनी इस पार्टी का खुद कांग्रेस जैसा बन जाना, पार्टी के महत्वपूर्ण नेताओं का भ्रष्टाचार के आरोपों में लंबे समय तक जेल में बंद रहना, केजरीवाल का सादगी की जगह से वीआईपी कल्चर अपना लेना, जेल के दौरान अपनी पत्नी को सरकार में महत्व देना, खालिस्तानियों के साथ मिलकर देश विरोधी काम करने का आरोप और एंटी-इन्कंबेंसी इत्यादि कारणों से लोगों में नाराज़गी आने लगी। केजरीवाल पर खालिस्तान समर्थक समूहों से समर्थन लेने के आरोप लगे, जिनमें ‘सिख फॉर जस्टिस’ जैसे संगठन शामिल थे। शराब नीति में कथित अनियमितताओं के कारण उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी और अरविंद केजरीवाल पर भी जांच की तलवार लटकने को भाजपा ने अच्छे से भुनाया। रही सही कसर केजरीवाल के अति आत्मविश्वास और अहंकार के चलते आप पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन भी नहीं किया। इन सब कारणों के चलते 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में, आप को 22 सीटों पर सिमटकर अपनी सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में, अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से भाजपा के प्रवेश वर्मा से 4,089 वोटों से हार गए। मनीष सिसोदिया जंगपुरा सीट से भाजपा के तरविंदर सिंह मारवाह से 675 वोटों से पराजित हुए। विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन न करना हार का एक बड़ा कारण था, क्योंकि कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले वोट हार-जीत के अंतर से अधिक थे।
चुनाव में बहुमत हासिल करने के बाद, भाजपा ने दिल्ली में सरकार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री पद के लिए कई नाम चर्चा में हैं, लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा। भाजपा की रणनीति में दिल्ली के विकास, कानून-व्यवस्था में सुधार, और भ्रष्टाचार मुक्त शासन पर जोर दिया जाएगा। चुनाव के तुरंत बाद एलजी ने दिल्ली सचिवालय को सील कर दिया और AAP सरकार के कार्यकाल की जांच के आदेश दिए। वहीं आप की इस हार के बाद, पार्टी के लिए आत्ममंथन आवश्यक है। भविष्य में, पार्टी को अपने सिद्धांतों पर पुनर्विचार, आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करना, और जनता के विश्वास को पुनः प्राप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। वहीं, भाजपा की नीतियों और उसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, दिल्ली और देश की राजनीति में नए समीकरण उभर सकते हैं।
केजरीवाल, जो कभी जनता के नायक थे, वे सत्ता में आने के बाद उसी VIP संस्कृति का हिस्सा बन गए, जिसका उन्होंने विरोध किया था। शीशमहल विवाद, भ्रष्टाचार के आरोप, और भाजपा की प्रभावी रणनीति ने AAP को सत्ता से बेदखल कर दिया। अब सवाल यह है कि AAP इस हार से सबक लेकर वापसी कर पाएगी या नहीं?
( राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)
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