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कजलियाँ (भुजरिया) पर्व क्यों  मनाया जाता है? 

आलेख

रायपुर
कजलियां पर्व का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है। राखी के दूसरे दिन कजलियां मनाया जाता है। इसे भुजलिया या भुजरियां कहा जाता है।  इस में गेहूं के पौधे (भुजरियां) एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं दी जाती है और घर के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता हैं। इसको अच्छी बारिश, अच्छी फसल और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

जा दिन जनम लिओ आल्हा ने
           धरती धंसी अढ़ाई हाथ

मान्यता है कि इसका प्रचलन राजा *आल्हा ऊदल* के समय से है। बताया जाता है कि महोबा की राजकुमारी चंद्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर चढ़ाई कर दी थी। राजकुमारी को पृथ्वीराज से बचाने आल्हा-ऊदल-मलखान ने अद्भुत पराक्रम दिखाया था। आल्हा-ऊदल और राजा परमाल के पुत्र ने पृथ्वीराज की सेना को हराया और भागने पर मजबूर कर दिया।

_बड़े लड़य्या आल्हा ऊदल, जिन से हार गई तलवार_
_खटखट-खट तेगा खड़के, छपक छपक चमके तलवार_
_बड़े लड़य्या महोबा वाले, जिनकी मार सही न जाए_
_एक के मारे दुई मरि जावैं तीसरा खौफ खाय मरि जाए_

महोबे की जीत के बाद पूरे बुंदेलखंड में कजलिया का त्योहार मनाया जाने लगा।
( लेखक- शैलेंद्र कुमार शुक्ला )

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