राष्ट्रीय समाचार
नई दिल्ली
18वीं लोकसभा में भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े से ज़रा सी दूर रह गई है, लेकिन अपने सहयोगी दलों के साथ किए गए चुनाव पूर्व गठबंधन के माध्यम से उसने बहुमत प्राप्त किया और पार्टी व गठबंधन के नेता का चुनाव और मंत्रिमंडल गठन के मुद्दे को समय पर प्रभावी ढंग से सुलझा लिया। प्रधानमंत्री ने विभिन्न सामाजिक समीकरणों को साधने और गठबंधन के साथियों को संतुष्ट करने के उद्देश्य से एक जम्बो मंत्रिमंडल बनाया है। जिन राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां से ज्यादा मंत्री बनाए गए हैं।
छत्तीसगढ़, जिसने लगातार दो लोकसभा चुनावों में पार्टी को ज़बरदस्त बहुमत दिलाया है, की इस मंत्रिमंडल में उपेक्षा हुई है। मंत्रिमंडल के गठन से ऐसा नहीं लगा कि भाजपा सहयोगियों के दबाव में है। महत्वपूर्ण विभागों को लेकर गठबंधन के साथियों की दावेदारी पर भी कोई टकराव नहीं दिखा। एनडीए सरकार के इस तीसरे कार्यकाल में भाजपा ने पार्टी, सहयोगी दलों तथा जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने की मंशा से मंत्रिमंडल बनाया है।
सरकार के सामने महत्वपूर्ण फैसलों में सर्वसम्मति से निर्णय लेने की चुनौती हो सकती है। इसीलिए 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल में गठबंधन दलों के 12 मंत्री बनाए गए हैं, जिनमें प्रमुख सहयोगी दलों चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी और नीतीश कुमार के जनता दल (यू) के नेता भी शामिल हैं। जातीय समीकरण की बात करें तो 27 ओबीसी, 5 एसटी, और अल्पसंख्यक वर्ग से 5 सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।
हालांकि इस बार सरकार में भाजपा की खुद की सीटें बहुमत से कम होने के कारण उसे अपने सहयोगियों के प्रति उदार रवैया अपनाना होगा, पर सहयोगियों की भी अपने-अपने राज्य की सरकार चलाने में ज्यादा रुचि होने के चलते उनकी भी सरकार के साथ कदमताल करने की मजबूरी होगी।
संशय नीतीश कुमार के विषय में है कि वे बिहार विधानसभा चुनाव के बाद किस करवट बैठेंगे। विपक्ष भी संवेदनशील मुद्दों पर एनडीए सरकार के लिए चुनौती पेश करता रहेगा। फिर भी उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली एनडीए सरकार सहयोगी दलों की आकांक्षाओं को साधकर और विपक्ष की चुनौतियों का सामना कर देश की प्रगति पिछले 10 वर्षों की तरह बरकरार रखने में समर्थ होगी।
( राष्ट्रीय ब्यूरो)
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