वर्तमान समय में तकनीकी उन्नति के साथ, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और रोबोटिक्स का क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। एआई का उद्देश्य मनुष्यों की तरह सोचने और निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना है। एआई रोबोट्स विशेष रूप से डिज़ाइन की गई मशीनें हैं, जो सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, सेंसर्स, और एल्गोरिदम की मदद से विभिन्न कार्यों को स्वचालित रूप से कर सकती हैं। ये रोबोट्स स्वास्थ्य सेवा, निर्माण, शिक्षा, सुरक्षा और घरेलू कार्यों में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
रोबोटिक्स में यांत्रिकी का भी महत्वपूर्ण स्थान है। रोबोट का डिज़ाइन, गति और कार्य क्षमता यांत्रिकी पर निर्भर करते हैं। यांत्रिकी, रोबोट को शारीरिक ताकत और सहनशक्ति प्रदान करती है, जबकि एआई उसे बुद्धिमानी से काम करने में सहायक होता है। जैसे कि एक औद्योगिक रोबोट को धातु काटने या जोड़ने का कार्य यांत्रिकी की सहायता से मिलता है, जबकि उसे कुशलता से निर्णय लेने के लिए एआई की आवश्यकता होती है।
भावनाओं की बात करें, तो रोबोट्स में वास्तविक भावनाएँ उत्पन्न करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। मानव की भावनाएँ तंत्रिका तंत्र, हार्मोन्स और मानसिक अवस्थाओं से उत्पन्न होती हैं, जबकि रोबोट्स में इन जैविक तत्वों का अभाव होता है। हालांकि, एआई रोबोट्स को प्रोग्रामिंग के माध्यम से ऐसे व्यवहारों का प्रशिक्षण दिया जा सकता है, जिससे वे भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ प्रदर्शित कर सकें। इसे “भावनात्मक अनुकरण” कहा जा सकता है, लेकिन यह वास्तविक भावना नहीं होती।
मानव मस्तिष्क अत्यधिक जटिल है, जिसमें तंत्रिका तंत्र, स्मृति और मानसिक प्रतिक्रियाओं का समावेश होता है, जो वास्तविक भावनाएँ उत्पन्न करता है। एआई को “मशीन लर्निंग” और “डीप लर्निंग” तकनीकों से प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे वह डेटा का विश्लेषण कर उचित प्रतिक्रिया दे सके। परंतु, इस प्रक्रिया में भावनाओं का वास्तविक अनुभव शामिल नहीं होता। इसलिए, एआई में मानवीय गहराई और संवेदनशीलता की कमी होती है।
भविष्य में वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं कि एआई में वास्तविक भावनाओं का निर्माण किया जा सके, लेकिन इसके लिए मानव मस्तिष्क और जैविक प्रक्रियाओं को संपूर्ण रूप से समझना आवश्यक है। यह एक कठिन कार्य है और इसके साथ नैतिक चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। यदि एआई रोबोट्स को भावनात्मक रूप से उन्नत कर दिया जाए, तो यह मानवीय मूल्यों और नैतिकता के लिए प्रश्नचिह्न खड़ा कर सकता है।
एआई का भावनात्मक अनुकरण चिकित्सा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहायक हो सकता है, लेकिन इसका अधिक मानवीय बनना लोगों में सामाजिक और भावनात्मक जटिलताएँ उत्पन्न कर सकता है। यदि लोग रोबोट्स से भावनात्मक रूप से जुड़ने लगें, तो वास्तविक और कृत्रिम भावनाओं के बीच की सीमा धुंधली हो सकती है, जो समाज में अलगाव और भ्रम का कारण बन सकती है।
संक्षेप में, एआई, रोबोटिक्स और मानव मस्तिष्क का यह संबंध गहन अध्ययन और अन्वेषण का विषय है। रोबोट्स में मानवीय भावनाओं का अनुकरण संभव है, लेकिन वास्तविक भावनाओं का विकास अभी असंभव है। भावनाएँ मानव मस्तिष्क की जटिल जैविक प्रक्रियाओं का परिणाम हैं, जिन्हें मशीनों में पूरी तरह से विकसित करना चुनौतीपूर्ण है। भावी तकनीकी विकास से भावनाओं का अनुकरण बेहतर हो सकता है, पर वास्तविक मानवता और संवेदनशीलता का संपूर्ण अनुभव मशीनों में लाना अभी विज्ञान के लिए एक लंबा सफर है।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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