उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में भेड़ियों का आतंक छाया हुआ है, जहाँ हाल के दिनों में दस लोग, जिनमें नौ बच्चे शामिल हैं, इन आदमखोर भेड़ियों का शिकार बने हैं। भय इतना बढ़ गया है कि कुछ गांवों से लोगों ने पलायन शुरू कर दिया है। हालांकि, वन विभाग अब तक चार भेड़ियों को पकड़ चुका है, पर अंधेरा होते ही अफवाहें और डर का माहौल फिर से फैल जाता है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार ने भेड़ियों को गोली मारने का आदेश दिया है।
बहराइच में भेड़ियों के बढ़ते हमलों की वजह मानव-वन्यजीव संघर्ष है। जंगलों की कमी, अतिक्रमण, और गन्ने जैसी घनी फसलों में आश्रय लेने के कारण भेड़िये बस्तियों के करीब आ गए हैं। भोजन की कमी होने पर ये छोटे जानवरों के बजाय बच्चों पर हमला करने लगे हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और नई बीमारियों ने उनके व्यवहार में आक्रामकता बढ़ा दी है। रैबीज जैसी बीमारियां भी भेड़ियों के आक्रामक होने का कारण हो सकती हैं।
भेड़ियों का हमला करना प्राकृतिक रूप से भोजन या भय की प्रतिक्रिया होती है। कोई भी जानवर या तो वह भोजन के लिए या फिर भय के चलते ही हमलावर होता है। जंगलों के कम होने से मांसाहारी जानवर इंसानी बस्तियों के करीब आ रहे हैं। जब इन्हें छोटे जानवर नहीं मिलते, तो वे बच्चों को शिकार बनाते हैं। एक बार मानव-रक्त का स्वाद लगने के बाद, भेड़िये आक्रामक हो जाते हैं। भेड़िये समूह में रहते हैं और जटिल सामाजिक संरचना के साथ आक्रामक और चंचल दोनों तरह का व्यवहार दिखाते हैं। भेड़िये के व्यवहार में आ रहे बदलाव का कारण रैबीज के अलावा कोई रोग भी हो सकता है।
बहराइच का इलाका भेड़ियों को इसलिए भाता है क्योंकि यह झाड़ीदार जंगल और घास के मैदान का मिश्रण है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते तराई क्षेत्रों में पर्यावरणीय असंतुलन हो रहा है, जिससे भेड़ियों को नए पर्यावास और भोजन के साधन ढूंढ़ने में कठिनाई हो रही है। यह समस्या उनके आक्रामक व्यवहार का कारण बन सकती है।
भेड़ियों का जंगल और पारिस्थितिक संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन जंगलों के कटने से इंसान और जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। इस चुनौती का समाधान यही है कि जंगलों को संरक्षित किया जाए और जानवरों के लिए स्वाभाविक आहार की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, ताकि उन्हें नरभक्षी बनने से रोका जा सके।
( राजीव खरे- राष्ट्रीय उप संपादक)
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