आलेख
भारत में बाबा और संतों का प्रभाव कोई नई बात नहीं है, और वे केवल भारत तक ही सीमित नहीं हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। हाथरस जिले में भोले बाबा के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई, जिनमें अधिकतर निर्धन दलित महिलाएं थीं। इस घटना ने बाबाओं की अपार लोकप्रियता और उनके अनुयायियों की संख्या को उजागर किया। भगदड़ इसलिए मची क्योंकि प्रचारित किया गया था कि बाबा की चरणरज से रोग ठीक हो सकते हैं।
भारत में सैकड़ों बाबा हैं, जिनकी ख्याति अलग-अलग क्षेत्रों में है। कुछ बाबा जैसे आसाराम बापू और गुरमीत राम रहीम इंसान बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल में हैं। वहीं, बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर जैसे बाबा भी हैं जिनपर विवादास्पद आरोप लगे हैं। बाबाओं की संख्या और प्रभाव में तेजी से वृद्धि हुई है, जो धर्म की राजनीति से भी संबंधित है। अन्य देशों में भी बाबाओं की तरह के लोग हैं, लेकिन भारत में उनका प्रभाव विशेष रूप से ज्यादा है।
बाबाओं की ओर लोगों का आकर्षण उनकी समस्याओं और असुरक्षा के कारण होता है। बाबाओं की मार्केटिंग और उनके अनुयायियों की कमजोरियां उन्हें सफल बनाती हैं। राजनेताओं से सांठ-गांठ भी उनकी सफलता में योगदान देती है। असुरक्षित लोगों में बाबाओं के प्रति अधिक श्रद्धा होती है, जिससे विवेक और तार्किकता कम हो जाती है।
दूसरे देशों में आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के कारण धर्म का प्रभाव कम होता जा रहा है। मिशिगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रोनाल्ड इंगोहार्ट के अनुसार, 2007 से 2019 तक 49 देशों में धार्मिकता में कमी आई है। अमरीका भी अब धर्म से दूर जा रहा है।
बाबाओं के साम्राज्य से निपटना आसान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 51क के अनुसार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सुधार की भावना का विकास करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है, लेकिन बाबा और उनके संरक्षक इस प्रावधान का उल्लंघन करते हैं। महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसी संस्थाएं बाबाओं का पर्दाफाश करती हैं। डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद, महाराष्ट्र विधानसभा ने अंधश्रद्धा और चमत्कारिक इलाज के खिलाफ कानून पारित किया। ऐसे कानून पूरे देश में लागू करने की आवश्यकता है।
हमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना होगा और नागरिकों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी। वर्तमान असमानता को दूर करके, हम समाज में सुरक्षा का भाव स्थापित कर सकते हैं।
( राजीव खरे- राष्ट्रीय ब्यूरो)
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