भारत का न्यूज़ीलैंड से हारना खेल प्रेमियों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है। एक ऐसा देश जिसे क्रिकेट के लिए जाना जाता है और जहां क्रिकेट को एक धर्म की तरह पूजा जाता है, वहाँ इस प्रकार की हार कई सवाल खड़े कर रही है। टीम की लापरवाही, बड़े खिलाड़ियों का घरेलू मैचों में हिस्सा न लेना, पैसे वाली लीग जैसे आईपीएल का अति प्रभाव और भारतीय क्रिकेट बोर्ड द्वारा खिलाड़ियों को मनचाहे समय पर अवकाश देना जैसे कारक इस हार के प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।
टीम के कई बड़े खिलाड़ियों का अपने प्रदर्शन के प्रति उदासीनता और लापरवाही की भावना दिख रही है। खेल के प्रति उनमें जुनून की कमी साफ झलकती है। खिलाड़ी जब अपने स्टारडम को खेल से बड़ा समझने लगते हैं, तो टीम की एकता और सामूहिक प्रयास पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारतीय टीम में कई दिग्गज खिलाड़ी हैं, जो अपने प्रदर्शन से ज्यादा अपने स्टार पावर के लिए जाने जाते हैं। यह स्थिति खेल को प्राथमिकता देने की जगह स्वयं को प्राथमिकता देने की मानसिकता को दर्शाती है, जिससे टीम का प्रदर्शन प्रभावित होता है।
भारतीय खिलाड़ी अपने व्यस्त शेड्यूल के चलते घरेलू क्रिकेट में बेहद कम हिस्सा लेते हैं। घरेलू क्रिकेट वह आधार है, जहां खिलाड़ी अपनी तकनीक, फिटनेस और मैच प्रैक्टिस को निखार सकते हैं। घरेलू मैचों में शामिल न होने से खिलाड़ी परिस्थितियों का आदी नहीं हो पाते और इसका सीधा प्रभाव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रदर्शन पर दिखता है। घरेलू टूर्नामेंटों में खेलकर ही खिलाड़ियों को पिच, मौसम और विभिन्न परिस्थितियों का अनुभव मिलता है, जो मैदान में उनके प्रदर्शन को और भी मजबूत बनाता है।
आईपीएल ने भारतीय क्रिकेट को एक नई दिशा और आर्थिक ताकत दी है, लेकिन इसका उल्टा असर भी देखने को मिल रहा है। आईपीएल में अधिक समय और पैसा लगाने के कारण खिलाड़ी मुख्य अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में थके हुए दिखाई देते हैं। उनकी प्राथमिकता आईपीएल से कमाई और टी20 फॉर्मेट की ओर झुकी रहती है, जो उन्हें टेस्ट और वनडे जैसे लंबे फॉर्मेट में कमजोर बनाता है। आईपीएल के दौरान खिलाड़ी अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर देते हैं, जिससे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मैचों में उनकी ऊर्जा और ताजगी का अभाव होता है।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) बडे खिलाड़ियों को आराम देने में अत्यधिक उदारता दिखाता है। इन खिलाड़ियों को अपनी सुविधा और इच्छा अनुसार अवकाश मिल जाता है, जिससे वे लगातार मैच खेल पाने की स्थिति में नहीं रहते। बड़े खिलाड़ी अक्सर व्यक्तिगत कारणों से या आराम के नाम पर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स से बाहर रहते हैं, जिससे टीम का संतुलन और ताकत कमजोर हो जाती है। बोर्ड का यह रवैया खिलाड़ियों के प्रति अत्यधिक लचीलापन दिखाता है, जो उनके अनुशासन और फोकस पर असर डालता है।और घरेलू क्रिकेट टूर्नामेंट जैसे रणजी ट्रॉफ़ी में ना खेलना इनकी लय को कमजोर करता है।
भारतीय क्रिकेट को इस हार से सबक लेना होगा। खिलाड़ियों को अपने स्टारडम से परे जाकर खेल को प्राथमिकता देनी होगी। घरेलू क्रिकेट में भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी और बोर्ड को अवकाश देने के मामले में सख्ती बरतनी होगी। साथ ही, आईपीएल का समय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स के बीच संतुलन बनाए रखना भी जरूरी है ताकि खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार रह सकें।
इस हार के बाद सवाल यह उठता है कि भारतीय क्रिकेट का भविष्य क्या होगा। भारतीय टीम के प्रशंसक और क्रिकेट विशेषज्ञ इस हार को केवल एक अस्थायी झटका मानते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब खिलाड़ी और बोर्ड इस हार से सीख लेकर आवश्यक सुधार करें।
( राजीव खरे राष्ट्रीय उप संपादक)
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