अशांति और उथल-पुथल से जूझ रहे बंगला देश में नोबल पुरस्कार प्राप्त मोहम्मद युनुस के नेत्रत्व में जो अंतरिम सरकार अगले चुनाव तक के लिये बनी उसमें जो टीम गठित की गई वह शायद किसी भी देश में अभूतपूर्व है। छात्र नेताओं की अनुशंसा पर नेत्रत्व मो. युनूस को तो दिया गया पर टीम में कोई भी परंपरागत नेताओं को सम्मिलित नहीँ किया गया। अनुभवी पूर्व सैनिक अधिकारी, इकानामिस्ट, सोशल वर्कर व आंदोलन कारी तीन छात्र नेताओं को लिया गया है। इन सभी के curriculum vitae (जीवन की कुल प्राप्तियां) को देखें तो अनुभवी बुद्धिजीवीयों का समूह नजर आता है जिससे उम्मीद की जा सकती है कि राजनैतिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त हुए बिना ना केवल आंतरिक समस्या से सफलता पूर्वक निपटें अपितु भारत से संबंध और अधिक सुद्रढ़ कर सकें। क्यों कि यह माना जा सकता है व एक उदाहरण बनना चाहिए कि परंपरागत राजनैतिज्ञों की महत्वाकांक्षा व दुर्गुण ऐसे लोगों में नहीँ होते जैसे लोग वहां अभी जुड़े हैं।
( लेखक डा. अनिल खरे, सागर मध्यप्रदेश के एक प्रसिद्ध सर्जन हैं, बचपन से संघ के आदर्शों को मानते हुए राजनीतिक मामलों के निष्पक्ष जानकार भी )
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