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अंतिम यात्रा में ‘श्रीराम नाम सत्य है’ के ही उच्चारण पर जिज्ञासा-गोष्ठी*जूनागढ़ के महंत ने जिज्ञासा पर दिया जवाब

मिर्जापुर

श्रीराम नाम सत्य है’ की गूंज के साथ ही जीवन की अंतिम यात्रा विषयक प्रश्न-संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बूढ़ेनाथ मन्दिर के महंत डॉ योगानन्द गिरि ने कहा कि ‘राम’ शब्द नहीं बल्कि ब्रह्म तक पहुंचने का सेतु-मन्त्र है, इसलिए जीवन त्याग कर ब्रह्म में समाहित हो रहे ब्रह्मानन्द अंश आत्मा के लिए इसे मन्त्रवत पढ़ते हुए पार्थिव शरीर के साथ लोग चलते हैं। डॉ योगानन्द गिरि ने कहा कि ‘राम’ नाम में सत्य, प्रेम और करुणा का तत्व समाहित है, इसलिए इस नाम की महत्ता ऋषियों-मुनियों ने की है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को जिज्ञासा-समाधान संगोष्ठी आयोजित हुई जिसमें ‘राम’ के अलावा अन्य किसी देवता का नाम न लेने के विषय में सवाल किया गया। समाधान के क्रम में डॉ योगानन्द गिरि ने रामचरितमानस के उत्तर कांड की चौपाई ‘छन महिं सबहि मिले भगवाना, उमा मरम यह काहुँ न जाना’,
‘एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा, आगें चले सील गुन धामा’ का उल्लेख करते हुए कहा कि क्षण मात्र में श्रीराम सबसे इसलिए मिल लिए क्योंकि सब एक दूसरे को राममय मान कर गले मिलने लगे। अंततः भोले नाथ पार्वती से कह बैठे कि राम की इस शक्ति को कोई जान नहीं पाया।
जिज्ञासा गोष्ठी में सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, विंध्यवासिनी प्रसाद केसरवानी, सन्दर्भ पांडेय आदि ने भाग लिया। संचालन सलिल पांडेय ने किया।
इसके उपरांत सांस्कृतिक संध्या में भजन और गीत का दौर चला जिसमें देवी-शक्ति की महिमा का वर्णन जब लोक गायिका श्रीमती रानी सिंह ने ‘बजाई दिहलू, बजाई दिहलू, माई तीनों लोकवा में डंका बजाई दिहलू…अंधरा के अखियां देखाई दिहलू’ के माध्यम से उस दैवी कृपा की महिमा का वर्णन किया गया जिसकी क्षणमात्र की कृपा से अज्ञान का अंधापन दूर हो जाता है।
इसी कड़ी में गायक विंध्यवासिनी प्रसाद केसरवानी ने ‘तुम बिन मोरे कौन खबर ले गोवर्धन गिरिधारी’ भजन से कार्तिक मास में कृष्ण महिमा का चित्र खींचा। इसी के साथ श्रीमती रेखा ने भोलेनाथ को रिझाने के लिए ‘बम लहरी, बम-बम लहरी, गङ्गा की धारा बोले शिवलहरी’ भजन के जरिए कार्तिक मास में गंगा की महत्ता को प्रतिपादित किया। आस्था की बह रही धारा में बाल सन्त सुधानन्द भी उतर पड़े और ‘सारे जहाँ के मालिक अब तेरा ही आसरा है’ भजन के साथ बहते दिखाई पड़े तो प्रभु मालवीय ने ‘हाथी न घोड़ा न कौनो सवारी, कइसे अउब भोलेनाथ ससुरारि’ तथा श्रीमती सरोज ने भोजपुरी भजन महादेव के लोक-स्वरूप का चित्रण किया।
अंत में भगवान के जयकारे और प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

रिपोर्टर-प्रभुपाल चौहान

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