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साधर्मिक भक्ति, तप, जिन मंदिरों के दर्शन एवं संघ पूजा श्रावक के कर्तव्य है

द्वितीय दिन “भक्ति दिवस”
इंदौर मध्य प्रदेश

प्रवचनकार मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने पर्युषण के दूसरे दिन “भक्ति दिवस” के संबंध में प्रवचन दिया। पर्युषण पर्व पर पाँच कर्तव्यों का विधान बताया गया है उनमें से तीन कर्तव्य प्रथम दिन पूर्ण हुए और आज दो कर्तव्यों एवं 11 वार्षिक कर्तव्यों में से तीन पर चर्चा हुई।
4. अठ्ठम का तप : अर्थात तीन दिवसीय उपवास का तप करना। परमात्मा के जिन शासन का टैक्स तप है। जैसे हम संसार में कोई भी व्यवहार करें तो धन के रूप में टैक्स का भुगतान करते है। एक वर्ष में कुल 30 दिन के उपवास के तप रूपी टैक्स का शस्त्रों में प्रावधान है। केवल धर्म आराधना के लिये ही भोजन का विधान है। एक नवकारसी से लेकर अठ्ठम तक का तप करने पर 100 वर्ष की आयु से लेकर 10 लाख करोड़ वर्ष की आयु तक का नर्क का कर्म का बंध टूटता है।
5. चैत्य परिपाटी : अर्थात मंदिरों के दर्शन। पर्युषण महापर्व के दौरान प्रतिदन शहर के सभी मंदिरों के दर्शन बहुत ठाट-बाट से करने का विधान है। परमात्मा के दर्शन से व्यक्ति मिथ्यात्व से निकल कर सम्यक दर्शन प्राप्त करता है। परमात्मा को देखकर अपार प्रसन्नता का भाव रखना चाहिये। आठ दिन न हो सके तो कम से कम 1 दिन मंदिरों के दर्शन तो करना ही चाहिये। सेठ मोतिशाह की फाँसी भी जिन दर्शन के कारण कामयाब नहीं हो पायी और वह माफ़ हो गई।
श्रावक के वार्षिक 11 कर्तव्य
1. संघ पूजा : संघ का निर्माण साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका से होता है। ऐसे श्री संघ को परमात्मा भी नमन करते हैं। प्रभु भी श्री संघ को नमन करते हैं, संभव है इस संघ में तीर्थंकर बनने वाली आत्मा भी हो। भाव संयम के बिना कोई भी आत्मा मोक्ष नहीं गई है चाहे उसने साधु वेश धारण किया हो या नहीं। संघ की निंदा भूलकर भी नहीं करना है, बल्कि बहुमान करना श्रेष्ठ कार्य है। संघ की अवहेलना साक्षात भगवान की अवहेलना है।
2. साधर्मिक भक्ति : जिनके आराध्य तीर्थंकर परमात्मा एवं नवकार महामंत्र हो उनकी साधर्मिक भक्ति हमेशा करना चाहिये। केवल भोजन करवाना ही साधर्मिक भक्ति नहीं है बल्कि, धन देकर एवं धर्म प्रभावना करके भी की जा सकती है। श्री संभवनाथ भगवान का तीर्थंकर गौत्र का बंध भी साधर्मिक भक्ति के कारण हुआ था। मंदिर में परमात्मा, उपाश्रय में गुरु भगवंत एवं आयंबिल खाते में धर्म के दर्शन होते हैं परंतु साधर्मिक में तीनों (देव,गुरु एवं धर्म) के एक साथ दर्शन होते हैं।
3. यात्रात्रिक : श्रावक का एक कर्तव्य यह भी है वह तीन प्रकार की यात्रा करे (1) अष्टाह्निका महोत्सव – भगवान के पाँच कल्याणक का अठ्ठाई महोत्सव करना, (2) रथ यात्रा – भद्रता व शालीनता से परमात्मा का सुंदर वरघोड़ा जिसमें धर्म का संदेश देती झाँकियाँ हो निकालना चाहिये एवं (3) तीर्थ यात्रा – वर्षभर में एक बार छःरिपालित संघ अवश्य करना चाहिये।
मुनिवर का नीति वाक्य
“जो करे साधर्मिक भक्ति, उस पर है प्रभु की दृष्टि
पर्युषण महापर्व में प्रवचन, प्रतिक्रमण एवं भक्ति बहुत ही उल्लास से चल रही है एवं सभी श्रद्धालु आनंद में लीन हैं। इस अवसर पर श्री दिलीप शाह ने जानकारी दी श्री संघ में कई तपस्या चल रही हैं । श्रीमती शेफाली मेहता को 30 दिन के उपवास की तपस्या चल रही है और आज 24 पूर्ण हो गये हैं। सभी कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में पुरुष, महिलायें व बच्चे उपस्थित होकर हिस्सा ले रहे हैं। रिपोर्ट अनिल भंडारी

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