इंदौर मध्य प्रदेश आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक 25/08/2023
समय परिवर्तनशील एवं अनिश्चित है, अच्छे कर्म व धर्म में विलंब न करें
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने आज समय परिवर्तनशील है, धर्म आराधना के लिये तुरंत तैयार रहें विषय पर सारगर्भित प्रवचन दिये। केवल नित्यक्रम का धर्म अस्थायी परिवर्तन है इसलिए स्थायी परिवर्तन के लिये परमात्मा का मार्ग जरूरी है। कल पर कोई भी धर्म क्रिया मत छोड़ो, आज और अभी कर लो। क्योंकि अच्छे कार्यों में बहुत विघ्न आते हैं। जो परिस्थितियाँ प्रातः अनुकूल है ज़रूरी नहीं शाम तक वह कायम रहे। परिवर्तन की शुरुआत सर्वप्रथम स्वयं से करना चाहिये। वर्तमान एवं भविष्यकाल में जो एवं जितना समय हमारे पास उपलब्ध है उसका बिना विलंब उपयोग धर्म कार्य में कर लेना ही समझदारी है। परिवर्तन के लिये मिले काल को तीन चरणों में समझ सकते है।
(1) विपरीत काल – अनंत काल के बाद यह अवसर्पिनी आयी है जिसमें पाँचवाँ आरा चल रहा है। यह काल बहुत खराब एवं विपरीत है जो दस-दस आश्चर्यों (अनहोनी घटनायें जो नहीं होना चाहिये थीं) से दूषित है। यह काल भस्म गृह से पीड़ित रहा है जिसमें अधर्म फैला है। विपरीत काल में श्रावक, साधु, साध्वियों में विवाद, जल में अग्नि पैदा होना, बच्चों का व्यापार, मानव माँस का व्यवसाय जैसे कार्य हो रहे हैं । यह बहुत प्रदूषित समय है एवं इस विषम एवं विपरीत काल में हमको नीचे गिराने वाले कई निमित्त हैं।
(2) विनाश काल – वर्तमान काल में बल, बुद्धि, आयुष एवं तेज की इति हो गयी है। फलों में रस और आदमी में कस व सत्व नहीं है। परस्पर प्रेम एवं सम्प का समापन हो गया है। भगवान आदिनाथ की आयु 84 लाख पूर्व थी परंतु मानव आयु अब केवल 84 वर्ष रह गयी है। पूर्व काल में मानव की लंबाई 500 धनुष से अब केवल 5 फिट रह गयी है। सभी विनाश की ओर अग्रसर हैं।
(3) विरह काल – सूर्य के समान तेजस्वी तीर्थंकर भगवान का अभी अभाव है, चंद्र के समान सोम्य केवली भगवंत अभी रहे नहीं। तारे समान विशिष्ठ लब्धि वाले युग प्रधान आचार्य भी नहीं हैं। भकतांमर जैसे स्त्रोत रचने वाले आचार्य का विरह है। बस दीपक समान प्रकाश देने वाले व धर्म का मार्ग दिखाने वाले आचार्य भगवंत ही रहे हैं।
अनेक काल से भगवान की देशना कई बार श्रवण करते आ रहे है फिर हमारी चेतना जाग्रत नहीं हुई है। फिर भी इस काल में उपलब्ध आचार्य भगवंत की वाणी सुनकर अपना कल्याण कर सकते हैं। बहुत उपयुक्त दृष्टांत देकर मुनिवर ने संघ पर आपत्ति आने पर साधना में विराम संबंधी नियमों की छूट के बारे में बताया।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘काल के ग्रास बनने से पहले धर्म के दास बन जाओ”
राजेश जैन युवा ने बताया की –
श्री दिलीप शाह ने रविवार 27-अगस्त को भगवान पार्श्वनाथ की शक्रसतव पूजा की जानकारी दी एवं बताया कि एक साध्वीजी को आज 42 उपवास हैं, दो अन्य साध्वीजी को भी उग्र तपस्या चल रही है। पूरा संघ चातुर्मास में धर्म आराधना में लीन है। इस अवसर पर तिलकेश्वर पार्श्व जैन युवा संघ एवं पद्मावती वूमन्स ग्रुप के सदस्य सहित कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।
राजेश जैन युवा 92450-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी
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